पांच मार्च से शुरु होने वाले हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस द्वारा केंद्र के कृषि कानून पर भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार को घेरने की तैयारी है। दरअसल कांग्रेस इस मसले पर सरकार के खिलाफ विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रही है जिससे जजपा की धड़कने बढ़ गई हैं। केंद्र के कृषि कानूनों के पक्ष में भाजपा के सभी 40 विधायक एकजुट हैं जबकि जजपा के 10 विधायकांे मंे से 4 अंसतुष्ट विधायक ऐेसे हैं जो सावर्जनिक रुप से केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध मंे मुखर रहे हैं। जजपा के इन विधायकों ने उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की चिंता बढ़ा दी है। जजपा पर भाजपा से गठबंधन तोड़ने का इन विधायकांे का भी किसान संगठनांे के साथ दबाव रहा है। नारनोंद से विधायक रामकुमार गौतम,शाहबाद से रामकरण काला,गुहला से ईश्वर सिंह,बरवाला से जोगी राम सिहाग जजपा के ऐसे विधायक हैं जो गठबंधन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस का साथ दे सकते हैं।
केंद्र के कृषि कानूनों से पहले 2016 में भाजपा सरकार के लिए जाट आंदोलन सिर दर्द बना और अब कृषि कानूनों को लेकर चल रहा आंदोलन गले की फांस बना हुआ है। आंदोलित किसानों के साथ कांग्रेस ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार के खिलाफ विधानसभा सत्र के पहले दिन ही अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा। इस पर विधाानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता का कहना है कि विपक्ष की ओर से उनके पास सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने पर ही यह विचार किया जाएगा कि वह विधानसभा में कब पेश होगा। किसानों के साथ कांग्रेस लगातार दुष्यंत पर दबाब बना रहे हैं कि वो समर्थन वापस ले लें. ताकि प्रदेश में भाजपा सरकार गिर जाए और इसी दबाब में केंद्र तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर दे।
विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अध्यक्षता में हुई बैठक में कांग्रेस ने तय किया है कि राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य के बजट अभिभाषण के बाद खट्टर सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाएगी। इससे पहले दो बार हुड्डा अपने विधायकों के साथ राज्यपाल से मिलने के लिए भी जा चुके हैं लेकिन राज्यपाल ने दोनों ही बार मिलने का समय नहीं दिया। कांग्रेस द्वारा लाए जा रहे प्रस्ताव को अगर विधानसभा अध्यक्ष स्वीकार करते हैं तो दस दिन के भीतर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करानी जरूरी होगा। खट्टर सरकार को भले ही संख्या के आधार पर कोई खतरा ना हो लेकिन जेजेपी के लिए ये एक परीक्षा की घड़ी होगी क्योंकि सदन में दुष्यंत को बोलते हुए देखना दिलचस्प होगा। सरकार के साथ रहते हुए दुष्यंत किसानों को कैसे खुश रखेंगे, ये बड़ी बात होगी। अगर दुष्यंत ने सरकार का साथ दिया तो किसानों की भारी नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर किसानों के साथ खड़े हुए तो गठबंधन सरकार को कटघरे में खड़ा करेंगे।
किसानों की पार्टी होने का दावा करने वाली जजपा नेता दुष्यंत चौटाला लगातार खुद को चौधरी देवीलाल के असली सियासी वारिस बताते हुए किसान नेता के तौर पर हरियाणा में अपनी सियासी जगह बनाना चाहते थे, वंही इंडियन नेशनल लोकदल के पूर्व विधायक व दुष्यंत के चाचा अभय चौटाला ने किसानों के समर्थन में अपने विधायक पद से इस्तीफा देकर दुष्यंत को यहां एक बड़ी चुनौती दे दी है। एक तरफ अभय चौटाला खुद को देवीलाल के पद चिह्नों पर चलने वाला नेता बताते हैं तो दूसरी तरफ उनके भतीजे दुष्यंत चौटाला। विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर इनेलाे के एकमात्र विधायक अभय चौटाला ने दुष्यंत के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी है।
2019 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा को पूर्व बहुमत नहीं मिला तो माना जा रहा था कि हरियाणा में हुए जाट आंदोलन के चलते भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ है जिसका फायदा कांग्रेस के साथ-साथ जजपा को हुआ। 2019 के विधानसभा चुनाव से करीब एक साल पहले बनी जजपा प्रदेश में नई पार्टी थी फिर भी उसके 10 विधायक बने। 10 विधायकों वाली जजपा ने भाजपा को समर्थन दे दिया और सत्ता में आ गए। इसलिए कांग्रेस और इनेलो पहले से ही दुष्यंत पर लोगों की भावनाओं के खिलाफ जाकर भाजपा को समर्थन देने के मुद्दे पर घेरते रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष हुड्डा पहले दिन से ही कह रहे हैं कि वोट किसी की स्पोर्ट किसी की।
जिस जींद जिले में दिसंबर 2018 में जजपा का गठन हुआ था वहां की ही कई खाप पंचायतों ने जजपा विधायकों को बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का दबाव बनाया था। खट्टर सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने किसानों के समर्थन में ना सिर्फ अपना समर्थन वापस लिया बल्कि चेयरमैन के पद को भी छोड़ दिया। वहीं महम से निर्दलीय विधायक भी भरष्टाचार का मुद्दा उठाकर पहले ही सरकार से अलग गए थे।
कृषि कानून को लेकर हरियाणा में गांव-गांव पंचायत हो रही हैं जिससे दुष्यंत चौटाला के खिलाफ माहौल बनता जा रहा है. हालांकि, दुष्यंत चौटाला आश्वासन दे चुके हैं कि उनके रहते किसानों के हितों पर आंच नहीं आने दी जाएगी, लेकिन किसान संगठन और खाप पंचायतें उन पर बीजेपी से अलग होने के लिए लगातार दबाव बना रही हैं.
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    