संसद में चल रहे गतिरोध में विपक्ष की एकता कब तक बरकरार रहेगी, यह एक यक्ष प्रश्न की तरह केंद्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने मंडरा रहा है। आज कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान से यह साफ है कि वे विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और दोनों मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे के बिना संसद नहीं देंगे। अब सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राह निकालने की जुगत बैठा रहे हैं, उसका क्या हश्र होगा।
अभी तक दोनों सदनों में विपक्ष अपनी मांग को लेकर अडिग रहा है। वह सत्ता पक्ष के तमाम वारों का यही जवाब दे रहा है कि जब यूपीए की सरकार थी तो भाजपा ने इसी तरह से तब तक संसद नहीं चलने की थी, जब तक यूपीए के मंत्रियों के इस्तीफे नहीं हो गए थे। अब वे भी भाजपा के दिखाए रास्ते पर ही चल रहे हैं। इस बारे में आज सोनिया गांधी ने सीधे प्रधानममंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मन की बात कहने वाले ने क्यों मौन व्रत धारण किए हुए है। उन्होंने जिस तरह से इसे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की संज्ञा दी, उससे जल्द गतिरोध समाप्त होने के आसार नहीं नजर आते। हालांकि, विपक्षी दलों के कई नेताओं को सीबीआई के गलत इस्तेमाल का अंदेशा सता रहा है। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के सुषमा स्वराज पर बयान को इसी तरह के दबाव से जोड़कर देखा जा रहा है।
वैसे विपक्षी एकता अभी तक पुख्ता नजर आ रही है। इस बारे में जनता दल (यू) के सांसद के.सी. त्यागी का कहना है कि इस बार मोदी सरकार के लिए हमें तोड़ना मुश्किल है। हमने पिछली कांग्रेस सरकार को भी भ्रष्टाचार के मसले पर घेरा था, मंत्रियों का इस्तीफा हुआ था। इस बार भी इतने भीषण भ्रष्टाचार, देश के हित के विरुद्ध काम करने के मामले सामने आए हैं। विदेश मंत्री और वसुंधरा राजे देश के भगोड़े की मदद करती हैं, आर्थिक लाभ लेती हैं और शिवराज चौहान आकंठ भ्रष्ट्राचार में डूबे है, व्यापमं मौत का साया बन गया है और भाजपा तथा क्लीन छवि का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौन समर्थन देते रहते हैं। ये तो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। ये हमें बर्दाश्त नहीं। हम इसका विरोध करेंगे। हम सब साथ हैं।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव और सांसद सीताराम येचूरी ने भी आउटलुक को बताया कि इस मुद्दे पर विपक्ष लंबी लड़ाई के लिए तैयार है। यह बड़े घोटालों और लोकतांत्रिक परंपराओं का सवाल है। अगर कोई भी विपक्षी पार्टी झुकी तो उसकी साख पर सवाल खड़ा होगा।
जिस तरह से विपक्षी पार्टियां और खासतौर से क्षेत्रीय पार्टियां अपने-अपने राज्यों में भाजपा के साथ सीधे टकराव में हैं, उसे देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि संसद में वे झुकेंगी नहीं। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में 2016 और 2017 में चुनाव होने हैं। बिहार में इसी साल चुनाव है। इन तीनों राज्यों में तृणमूल कांग्रेस हो या समाजवादी पार्टी या फिर जनता दल परिवार, सबकी टक्कर भाजपा से ही है। लिहाजा, उनके लिए संसद में भाजपा को छोड़ना राजनीतिक समझदारी तो नहीं ही कही जा सकती। उधर इस्तीफे पर भाजपा रत्ती भर झुकने को तैयार नहीं है। यानी, फसान बरकरार रहने की ही संभावना है, बशर्ते कोई बड़ी डील न हो जाए।