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गुजरातः गढ़ में ही घिरे मुख्यमंत्री विजय रुपाणी

गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा को कितनी तगड़ी चुनौती मिल रही है इसका अंदाजा लगाने के लिए...
गुजरातः गढ़ में ही घिरे मुख्यमंत्री विजय रुपाणी

गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा को कितनी तगड़ी चुनौती मिल रही है इसका अंदाजा लगाने के लिए राजकोट पश्चिम से बेहतर कोई सीट नहीं हो सकती। भाजपा के इस परंपरागत किले में आरएसएस की मजबूत पकड़ है। 1985 से भाजपा के अलावा यहां कोई नहीं जीत पाया है। मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस बार मुख्यमंत्री विजय रुपाणी यहां से चुनाव लड़ रहे हैं।

इस तरह की स्थिति सामान्य तौर पर जीत की गारंटी मानी जाती है। लेकिन, सबसे सुरक्षित सीट से विधानसभा पहुंचने की रुपाणी की राह इतनी आसान नहीं दिख रही। यही कारण है कि चुनाव की घोषणा के बाद से वे लगातार क्षेत्र में बने हुए हैं। माना जा रहा है कि पाटीदार और जीएसटी व नोटबंदी से परेशान व्यापारी भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। पहले चरण में नौ दिसंबर को यहां वोट डाले जाएंगे।

कांग्रेस ने यहां से इंद्रनील राजगुरु को मैदान में उतारा है। राजकोट पूर्व से विधायक इंद्रनील प्रदेश के सबसे अमीर प्रत्याशी हैं। उनके मैदान में उतरने से जातीय समीकरण बदल गए हैं। 3.15 लाख मतदाताओं वाली इस सीट का फैसला पाटीदार, व्यापारी और ब्राह्मण मतदाता करते हैं। सबसे ज्यादा 62,000 मतदाता पाटीदार हैं। करीब 28 हजार व्यापारी, 26 हजार ब्राह्मण, 14 हजार राजपूत और 25 हजार ओबीसी मतदाता हैं। इनके अलावा लगभग 11 हजार दलित और 12 हजार मुस्लिम मतदाता हैं।

पिछले चुनाव में रुपाणी को 56 फीसदी और कांग्रेस उम्मीदवार को 40 फीसदी वोट मिले थे। उस समय पाटीदार भाजपा के साथ थे। लेकिन, आरक्षण आंदोलन के बाद से यह समुदाय भाजपा से नाराज है। अनामत आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल का समर्थन भी कांग्रेस को हासिल है। राजगुरु इसी को भुनाने में जुटे हैं। ब्राह्मण राजगुरु के स्वजातीय मतदाताओं की संख्या करीब 26 हजार है। इसके उलट रुपाणी जैन समुदाय से आते हैं जिनकी संख्या महज कुछ हजार ही है।

पाटीदारों की नाराजगी वोट में तब्दील हुई तो रुपाणी की राह मुश्किल हो सकती है। यही कारण है कि नामांकन दाखिल करने से पहले उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज पाटीदार नेता केशुभाई पटेल से आशीर्वाद लेकर समुदाय के लोगों को रिझाने की कोशिश की थी। केशुभाई के नेतृत्व में ही पटेल भाजपा के साथ आए थे और आरक्षण आंदोलन से पहले तक पार्टी के प्रबल समर्थक माने जाते थे।

दूसरी ओर, पाटीदारों की नाराजगी ही कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण है। राजगुरु पाटीदार, मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित मतों के सहारे जीत की उम्मीद लगाए हैं। राजगुरु का दावा है कि रुपाणी से शुरुआती लड़ाई वे जीत चुके हैं। वे कहते हैं चुनावों की घोषणा के बाद से रुपाणी को इसी क्षेत्र में व्यस्त रखकर मैंने नैतिक जीत हासिल कर ली है। हालांकि रुपाणी अब भी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। उनका कहना है कि सरकार के कामकाज खासकर नर्मदा का पानी राजकोट पहुंचाने के कारण लोग भाजपा के साथ हैं।

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