पिछले कुछ माह से शांत बैठे गुर्जर यकायक गुरुवार को सड़कों पर आ गए। इससे पहले गुर्जरों ने कोई एक पखवाड़े तक पूर्वी राजस्थान के गांव देहातों में न्याय यात्रा निकाली और भरतपुर के समोगर में जमा हुए। समोगर में गुर्जरों ने दिन भर महा पंचायत की और सरकार को एक घंटे का समय दिया। किन्तु जब कोई जवाब नही मिला तो वे तीखे तेवर के साथ पीलूपुरा तक मार्च करते हुए गए। पीलूपुरा उनका जाना पहचाना स्थान है। पीलूपुरा में गुर्जरों ने दिल्ली मुंबई रेल मार्ग को जाम कर दिया। इससे कोई पचास गाड़ियों का मार्ग बदलना पड़ा और कुछ गाड़ियां रद्द करनी पड़ी।
पीलूपुरा वो मक़ाम है जहां वर्ष 2008 में इन्हीं दिनों 23 मार्च को आंदोलनकारी गुर्जर और पुलिस में टकराव हो गया था। इसमें सौलह लोग मारे गए थे। गुर्जर नेताओ ने सरकार पर उनकी मांगों की उपेक्षा का आरोप लगाया है।दरअसल गुर्जर आरक्षण का मामला राजस्थान हाई कोर्ट में लम्बित है। गुर्जरों की मांग थी कि सरकार उनके हितों की पैरवी के लिए भारत के महान्यायवादी मुकुल रोहतगी की सेवाएं ले। गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के प्रवक्ता हिंम्मत सिंह कहते हैं सरकार ने आठ माह पहले इस बारे वाद किया था। मगर सरकार इस पर खरी नही उतरी। गुर्जर नेताओ ने तब आहत महसूस किया जब महान्यायवादी हाई कोर्ट में जाट आरक्षण के मामले में पक्ष रखने आए। गुर्जरं नेता पूछते हैं उनकी बिरादरी के साथ ये भेदभाव क्यों और एक जाति विशेष के प्रति इतना अनुराग क्यों।
यह महज इतेफाक ही था कि जिस दिन गुर्जर अपनी पूर्व घोषित न्याय यात्रा के 21 मई को समापन के लिए समोगर में जमा हुए, उसी दिन जयपुर में जाट आरक्षण पर अदालत में सुनवाई थी। इसके लिए महान्यायवादी रोहतगी जयपुर पहुंचे। इसकी गुर्जर सामुदाय में तीखी प्रतिक्रिया हुई। श्री रोहतगी जयपुर आने के बावजूद अदालत की सुनवाई में शामिल नही हुए। इस पर अटकलें लगाई जा रही हैं।
राज्य के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया सरकार की बेबसी बयान करते हुए कहते हैं, 'मामला अदालत में लम्बित है और हम पैरवी के लिए पर्याप्त मदद देने के लिए तैयार हैं। सरकार गुर्जरों से बातचीत को तैयार को है।' मगर गुर्जर इस पर भरोसा नहीं कर रहे है। गुर्जर नेता बैंसला कहते हैं, 'आखिर हम कब इंतजार करें। जब हम पंद्रह दिन से न्याय यात्रा निकाल रहे थे, तब सरकार को क्या पता नही था। अब मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे को खुद मामले को अपने हाथ में लेना चाहिए।'
गुर्जर प्रवक्ता हिम्मत सिंह कहते है कि ओ. बी. सी. आरक्षण में एक खास जाति के वर्चस्व के कारण यह छोटी जातियों के लिए बेमानी हो गया है। जब अदालत उस पर सवाल उठा चुका है, अनेक बार इस आरक्षण में तार्किक विभाजन की बात उठ चुकी हैं, फिर क्या कारण है सरकार इस पर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। इस बीच राजस्थान में ओ. बी. सी. में शामिल कुम्हार,रावणा राजपूत और दीगर जातियां जाटों को इस सूची से बाहर करने के लिए सभा सम्मलेन करते रहे हैं। जानकारों का कहना है कि यह मामला अब तूल पकड़ रहा है।
राजस्थान में गुर्जर 2006 से आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। क्योंकि जाट बिरादरी के ओ. बी. सी. में शामिल करने के बाद उन्हें लगा कि उनके लिए अवसर पूरी तरह सिकुड़ गए हैं। गुर्जरों ने अपने इस आंदोलन में गाड़िया लुहार, पशुपालक रेबारी और बंजारा समुदाय को भी साथ जोड़ लिया है। गुर्जर ये भी कहते है कि बीजेपी ने वर्ष 2003 में अपने चुनाव अभियान के वक्त गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का वाद किया था। मगर सत्ता में आते ही इसे भूला दिया गया।
गुर्जर वर्ष 2007 में फिर सड़कों पर निकले और आंदोलन हिंसक हो गया। इसमें 26 लोग मारे गए। फिर 2008 में आंदोलन हुआ और 37 लोगों को जान गमानी पड़ी। अब तक ये आंदोलन 72 मौतें देख चुका है। बीजेपी सरकार ने जुलाई 2008 में गुर्जरों और कुछ छोटी जातियों के लिए पांच फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया। मगर साथ ही एक राजनैतिक दांव के साथ ऊंची जातियों के निर्धन लोगों के लिए 14 प्रतिशत का प्रावधान भी जोड़ दिया।इससे राज्य में 50 प्रतिशत आरक्षण की कानूनी सीमा टूट गई और यह बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया। इसे तुरंत अदालत में चुनौती मिल गई और स्थगन आ गया। सरकार को अब इसकी कोई काट नहीं सूझ रही है।
गुर्जर अब और सब्र करने को तैयार नहीं है।