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इमरजेंसी के अहम किरदार और उनकी भूमिकाएं

40 साल पहले आपातकाल के रूप में हुई लोकतंत्र की हत्‍या के लिए अक्‍सर तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के नाम ही सामने आते हैं। लेकिन इन दोनों के अलावा भी कई अहम किरदार आपातकाल में अहम भूमिका निभा रहे थे।
इमरजेंसी के अहम किरदार और उनकी भूमिकाएं

 

संजय गांधी की मंडली  

1.    बंसीलाल (हरियाणा के मुख्यमंत्री): 

इमरजेंसी की रणनीति रचने में संजय गांधी के यह प्रमुख साथी षडयंत्रकारी थे। दबंग और बाहुबली तौर तरीकों में यकीन रखने वाले बंसीलाल इंदिरा गांधी और संजय गांधी के लिए भीड़ जुटाने में माहिर थे। संजय गांधी की मारुति कार फैक्ट्री के लिए पहले जमीन भी इन्होंने ही दिलाई थी। 

 

2.    यशपाल कपूर (प्रधानमंत्री सचिवालय में विशेष कार्य पदाधिकारी यानि ओ. एस. डी.): 

इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव अभियान की बागडोर इन्हीं के हाथ में थी। सरकारी सेवा में रहते हुए कुछ दिनों तक उनका इंदिरा गांधी का चुनाव अभियान चलाना इलाहाबाद हाईकोर्ट की नजर में चुनावी कदाचार माना गया। यह इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किए जाने संबंधी आदेश का एक प्रमुख आधार बना।

 

3.    ओम मेहता (केंद्रीय गृहमंत्री): 

इनकी वजह से गृहमंत्रालय यानि होम मिनिस्ट्री ‘ओम मिनिस्ट्री’ कहलाने लगी थी। इसलिए कि ब्रह्मानंद रेड्डी तो नाम के गृहमंत्री थे, गृह मंत्रालय में असली ताकत ओम मेहता के हाथों में ही थी। तमाम विरोधियों की गिरफ्तारी और खुफिया एजेंसियां इन्हीं की देखरेख में थीं। संजय गांधी इनके जरिये ही पुलिस और खुफिया मशीनरी का दुरुपयोग कर पाए। 

 

4.    आर. के. धवन (प्रधानमंत्री के अतिरिक्त निजी सचिव): 

इन्हें इंदिरा गांधी का दाहिना हाथ माना जाता था। अपनी बॉस की ओर से तमाम आदेश और निर्देश यही जारी किया करते थे। इन्हीं के जरिये इंदिरा गांधी से मुलाकात का समय हासिल किया जा सकता था। यह कई महत्वपूर्ण निर्णयों और पलों के साक्षी और साझीदार थे। 

 

5.    धीरेंद्र ब्रह्मचारी (योग गुरु): 

मिथिला के इस ब्राह्मण योग गुरू की मानो नेहरू-गांधी परिवार पर मंत्र-सिद्ध पकड़ थी। इंदिरा गांधी के इस योग शिक्षक के चार सीटों वाले मॉल एम-5 विमान का संजय गांधी अपनी यात्राओं के लिए अक्सर इस्तेमाल किया करते थे। जारशाही के दौर में अंतिम रूसी जारीना पर जैसी पकड़ ईसाई धर्मगुरु रास्पुटीन की थी वैसी ही कहते हैं धीरेंद्र ब्रह्मचारी की इंदिरा गांधी के ऊपर थी।

 

पश्चिमी बंगाल के तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के सखा  

 

1.    एच. आर. गोखले (केंद्रीय कानून मंत्री): :

इन्हीं के कंधों से तमाम कानूनी गोलियां दागी गईं। इनमें प्रमुख थे - संविधान का 39वां संशोधन और प्रेस की सेंसरश्पि को कानूनी जामा पहनाना। इसके पहले बतौर कानून मंत्री सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीशों और न्यायाधीशों के चयन तथा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ इलाहाबाद हाइकोर्ट में चुनाव याचिका के मामले की खोज खबर रखना भी इनकी एक प्रमुख जिम्मेदारी थी। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय खुद भी एक नामी कानूनविद् थे। जिनकी सलाह से गोखले काम किया करते थे। 

 

2.    देवकांत बरुआ (कांग्रेस अध्यक्ष): :

असम से आने वाले और वामपंथी नीतियों के हिमायती देवकांत बरुआ ने इंदिरा गांधी की चापलूसी में सारी सीमाएं तोड़ दीं। उनका गढ़ा नारा ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा (इंदिरा भारत है, और भारत इंदिरा): ’ आज भी चापलूसी के उदाहरण के तौर पर उद‍्धृत किया जाता है। इनका एक और नारा तब चर्चित हुआ थाः इंदिरा तेरी सुबह की जय, तेरी शाम की जय, तेरे नाम की जय, तेरे काम की जय।

 

3.   रजनी पटेल (बॉम्बे प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष): :

इंदिरा गांधी के आसपास वामपंथी रूझान वाली त्रिमूर्ति के राय और बरुआ के साथ यह भी एक सदस्य थे। यह महाराष्ट्र के एक मजबूत कांग्रेस पार्टी बॉस माने जाते थे। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई शहर में पार्टी की इकाई पर पूरी पकड़ रखने वाले रजनी पटेल पर स्वाभाविक ही कांग्रेस के लिए धन जुटाने की भी बड़ी जिम्मेदारी थी।  

 

इन शब्‍दों के साथ हुआ था इमरजेंसी का ऐलान 

संविधान के अनुच्छेद 352 के खंड एक के तहत प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए भारत का राष्ट्रपति, मैं, फखरुद्दीन अली अहमद घोषणा करता हूं कि एक घोर आपातकालीन स्थिति विद्यमान है जो आतंरिक उपद्रवों के कारण भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है।

राष्ट्रपति

नई दिल्ली

25 जून, 1975

 

 

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