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केसर की क्यारी में सत्ता का नशा

महबूबा को आगे रखकर भाजपा बिछा रही राजनीतिक बिसात। संवेदनशील इलाके कश्मीर और जम्मू के बीच ध्रुवीकरण बढ़ने की आशंका
केसर की क्यारी में सत्ता का नशा

धरती के स्वर्ग का राजनीतिक तापमान पारे की मानिंद बढ़ता और गिरता है। कश्मीर को समझने वाले जानते हैं कि यह एक राजनीतिक लावा है और जरा सी चिंगारी इसे सुलगा देती है। अब भाजपा भी यह कह रही है कि कश्मीर बेहद संवेदनशील इलाका है। लेकिन जम्मू-कश्मीर को दो अलग-अलग मिजाज वाले हिस्सों और तकरीबन एक दूसरे के विरोधी हिस्सों के रूप में पेश करने की भाजपा की राजनीतिक बिसात बिछती दिख रही है। ध्रुवीकरण आने वाले दिनों में बढ़ने की ही आशंका जताई जा रही है। इस गुस्से का निशाना कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को ही होना पड़ रहा है और उनकी ही साख दांव पर है। कश्मीर वादी में तिरंगा और भारत माता की जय को एक मुद्दे के तौर पर उछालकर भाजपा प्रसन्न जरूर हो सकती है, लेकिन उसके लिए भी विरोधाभासों से भरी गठबंधन सरकार को चलाना अनिवार्यता ही है।

बेचैनी और गुस्से से भरी कश्मीर की वादी में डैमेज कंट्रोल के लिए हिंदवाडा-कुपवाड़ा में जब सेना के बंकर गिराए जाते हैं, ठीक उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कटरा से जम्मू और कश्मीर के बीच की दूरी कम करने की बात करते हैं। अप्रैल में ही मुख्यमंत्री का पद संभालने वाली महबूबा के लिए शासन करना बांस के दो सिरों पर बंधी रस्सी पर चलने जैसा है और इसका अहसास उन्हें सत्ता संभालने के कुछ ही दिनों में हो गया है। महबूबा को आगे रखकर जम्मू-कश्मीर में बड़ी राजनीति करने का इरादा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है। सिर्फ इतना ही नहीं, वहां की राजनीति को आगे रखकर भाजपा पूरे देश में, खासतौर से चुनावी राज्यों में अपने पक्ष में माहौल बनाने का काम भी करने की तैयारी में है।

कश्मीर में तेजी से उग्र और नरम होते परिदृश्य के दरम्यान यह दिखाई दे रहा है कि कश्मीर में भगवा पताका लहराने के लिए जमीन तलाशने का काम तेजी से चल रहा है। इसकी गूंज कभी श्रीनगर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी) में भारत माता की जय, तिरंगा लहराने और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारों या फिर कश्मीरी-गैर कश्मीरी छात्रों की देशभक्ति को परखने जैसे मुद्दों में दिखाई दे रही है।

joining of hands

भाजपा के कश्मीर प्रभारी राम माधव ने आउटलुक से कहा, 'भारत विरोधी तत्वों के साथ कानून के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए और देश भर में भारत माता की जय बोलने का साहस पैदा करना भी जरूरी है।’ यानी दूरगामी एजेंडा उनके सामने साफ है और इसका अहसास हिंदुत्ववादी ताकतों ने महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बनते ही दे दिया। यह सरकार चलती रहे, इसमें पीडीपी से ज्यादा भाजपा का हित है। राज्य के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह इशारा करते हैं, ‘कश्मीर की हकीकत अलग है और हम यहां अलग ढंग से काम कर रहे हैं,  इसीलिए हम सरकार में हैं। केंद्र की मदद और दृष्टि से ही भाजपा यहां सरकार में है और मुझे इस बात पर गर्व है।’ दोनों तरह की बातों के बीच कश्मीर में जिस तरह का तनाव फैला, उससे यह बात उभर कर आई है कि जिन चीजों का डर महबूबा मुफ्ती को सरकार बनाने से पहले था और जिसकी वजह से तीन महीने तक राज्य में सरकार नहीं बनी थी, वह डर बरकरार है। आइए, एक नजर डालते हैं कि किस तरह से कश्मीर की घाटी में दो अलग-अलग जगह घटनाएं हुईं। पहले भड़का श्रीनगर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का परिसर। 31 मार्च को मुंबई में भारत और वेस्ट इंडीज के क्रिकेट मैच के बाद जो तनाव फैला, वह कश्मीरी और गैर कश्मीरी छात्रों के बीच तिरंगे को फहराने और भारत माता की जय करने को लेकर था। एनआईटी श्रीनगर के पांच दशक से अधिक के इतिहास में यह पहला वाकया था, जब कश्मीर से बाहर के छात्रों और कश्मीरी छात्रों में इस तरह से भिड़ंत हुई। इसे लेकर भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं में बेहद जोश भी है कि ऐसा उनकी सरकार की वजह से ही संभव हो पाया कि छात्रों ने तिरंगे और भारत माता की जय को लेकर हंगामा किया। 

तेजी से बिगड़ रही स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज को भी मीडिया में जबर्दस्त फुटेज मिली और इस तरह एबीवीपी, भाजपा और संघ एनआईटी,  श्रीनगर को अपने जेएनयू के तौर पर प्रोजेक्ट करने लगी। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर पुलिस की बदनामी कश्मीर के सुरक्षा तंत्र को नागवार गुजरी और फिर केंद्र से इशारे के बाद इसमें डैमेज कंट्रोल शुरू हुआ। हालांकि इस दौरान भाजपा के स्टार प्रचारक अनुपम खेर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैन क्लब के सक्रिय सदस्य भाजपा समर्थक तेजेंद्र सिंह बग्गा और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी की समर्थक शिल्पी, तिरंगा लिए जत्था लेकर श्रीनगर की ओर कूच करने का एलान कर चुके थे। स्मृति इरानी भी जांच दल के साथ जाने को आतुर थीं। महबूबा की सरकार के लिए यह कड़ी चुनौती थी। इसे आनन-फानन में रोका गया। इस बारे में पीडीपी में महबूबा मुफ्ती के बेहद करीब माने जाने वाले वरिष्ठ नेता और पार्टी के महासचिव निजामुद्दीन बट्ट से जब आउटलुक ने बात की तो उन्होंने भी भाजपा नेताओं के रवैये की आलोचना की। उन्होंने कहा,‘एनआईटी मामले को जिस तरह हवा दी गई, आग को भडक़ाया गया, जबर्दस्ती भारत माता की जय और तिरंगे को लाकर कश्मीर को बदनाम किया गया,  वह सरासर गलत था। जम्मू-कश्मीर संवेदनशील राज्य है और इसे सही ढंग से समझना जरूरी है। अरबों की जनसंख्या वाले देश में एक ही धर्म और विचारधारा नहीं थोपी जा सकती है। कुछ लोग भगवान में विश्वास करते हैं, कुछ लोग खुदा में और बहुत से लोग नास्तिक हैं, सबको आपस में लड़ाने की कोई जरूरत नहीं है।’ बहरहाल, भाजपा नेता राम माधव की मानें तो बाद में केंद्र ने ही बाहर से जाने वाली भगवा ब्रिगेड पर लगाम लगाई।

सूत्रों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने भी गृह मंत्रालय को कहा था कि अगर यह और खिंचा तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे और सुरक्षा तंत्र पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा। कश्मीर के एमएलसी और माकपा की केंद्रीय कमेटी के सदस्य मोहम्मद यूसुफ तारिगामी की मानें तो एनआईटी से इतना ही फायदा भाजपा और हिंदुत्व ब्रिगेड उठाना चाहती थी। अब उसे उत्तर प्रदेश समेत बाकी चुनावी राज्यों में ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल करेगी। कश्मीरी भी देख रहा है कि क्रिकेट मैचों पर घाटी की प्रतिक्रिया हमेशा अलग रहती है फिर केंद्र में मोदी की सरकार और राज्य में पीडीपी-भाजपा गठबंधन की सरकार बनने के बाद राष्ट्रवाद को इस तरह मुद्दा बनाया जा रहा है।

एनआईटी का बवाल थमा नहीं था कि कश्मीर के संवेदनशील इलाके कुपवाड़ा जिले के हंदवाड़ा में एक नाबालिग बच्ची के साथ सेना के सिपाही द्वारा कथित छेड़छाड़ के मुद्दे ने माहौल गरम कर दिया। इसके विरोध में हो रहे प्रदर्शनों पर पुलिस और सेना को गोलियां चलानी पड़ीं, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई। यह इलाका भाजपा के कोटे से इकलौते मुस्लिम विधायक सज्जाद लोन का है। पांच लोगों की मृत्यु के बाद तो इस क्षेत्र में जबर्दस्त आक्रोश फैल गया। स्कूल जाने वाली उस बच्ची को पुलिस ने अपने संरक्षण में ले लिया और इसी दौरान उसका एक वीडियो मीडिया में लीक हुआ, जिसमें इस वारदात के लिए सेना के सिपाही की जगह स्थानीय लड़कों को दोषी बताया गया। यह वीडियो खूब वायरल हो गया, इसमें बच्ची की शिनाख्त सबके सामने खुल गई। हालांकि बच्ची की मां ने सबके सामने कहा कि पुलिस ने दबाव डालकर बच्ची से बयान दिलवाया है। महबूबा की साख पर सवाल उठने लगे। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक इन हत्याओं पर कोई एफआईआर तक नहीं हुई है और न ही राज्य सरकार ने कोई जांच बिठाई है। इस बारे में आउटलुक ने बात की परवेश खुर्रम से, जो 'जे एंड के कोर्डिनेशन ऑफ सिविल सोसाइटी’ संस्था से जुड़े हुए हैं और इस बच्ची से मिलने वाली मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की पहली टीम में शामिल थे। परवेज ने बताया कि वह बच्ची बेहद बहादुर है और अपने परिवार में पहली है जो दसवीं तक पहुंची है। लडक़ी ने साफ कहा कि स्थानीय लडक़ों द्वारा छेड़छाड़ करने का मामला नहीं था, वह सिपाही को वाशरूम में देखकर चीखी थी। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने भी बच्ची को हिरासत में रखने पर सरकार से जवाब-तलब किया था। ये सवाल लंबे समय तक महबूबा को घेरने वाले हैं। कश्मीर में ‘एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स ऑफ डिसएपीर्यड पर्संस’  चला रहीं परवीना अंहगार ने आउटलुक से कहा,‘महबूबा ने यह क्या किया, इतना जुल्म करवाया। हंदवाड़ा में पांच लोगों की हत्या पर वह चुप रहीं,  बच्ची से झूठ बुलवाया।’

कांग्रेस के नेता और कश्मीर मामले के जानकार मणिशंकर अय्यर ने बताया कि महबूबा को जिस बात का अंदेशा था, वह उनके गद्दी में बैठते ही सामने आ गया। जिस तरह एनआईटी वाले मामले को जनबूझकर बढ़ाया गया, उसी से भाजपा के इरादे साफ हैं। महबूबा को आगे रखकर भाजपा और संघ जम्मू-कश्मीर में अपना हिंदुत्व कार्ड चल रही है। पीडीपी और भाजपा के बीच यह गठबंधन अस्वाभाविक है। राज्यसभा में विपक्षी दल के नेता और कश्मीर के नेता गुलाम नबी आजाद ने हंदवाड़ा की घटना पर कहा कि उन्होंने राज्य सरकार से इस घटना की समयबद्ध न्यायिक जांच कराने की मांग की थी लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं किया गया। जम्मू एवं कश्मीर के हालात को लेकर कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा, ‘जबसे जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी की सरकार ने दोबारा पदभार संभाला है, तब से राज्य में मशीनरी संवेदनहीन हो गई है। बेगुनाह छात्रों को पुलिस ने बेरहमी से पीटा। छात्र पलायन कर रहे हैं और न तो प्रधानमंत्री एवं न ही मानव संसाधन विकास मंत्री को छात्रों के भविष्य की चिंता है।’ उनका कहना है कि कश्मीर के हंदवाड़ा में हालात बेहद संगीन हैं। हालात राज्य सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं। उन्होंने राज्यपाल से मांग की है कि जम्मू-कश्मीर बेहद संवेदनशील प्रदेश है और वहां की परिस्थितियों पर पैनी निगाह रखने की जरूरत है।

सवाल यह भी उठ रहा है कि कश्मीर में जिस तरह  हालात उग्र हुए हैं, क्या इसके पीछे भाजपा की बड़ी योजना काम कर रही है या सब कुछ स्वत:स्फूर्त था। श्रीनगर में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता तनवीर का कहना  कि पीडीपी और भाजपा दोनों ध्रुवीकरण में लग गए हैं। एनआईटी से 60 फीसदी विद्यार्थी लौट गए हैं, इससे भाजपा फायदा उठाना चाहेगी। कश्मीर टाइम्स से जुड़ी अनुराधा भसीन जमवाल ने बताया कि ये घटनाएं राजनीतिक नेतृत्व के ढोंग को उजागर करती हैं। एक तरफ भाजपा नेतृत्व यह दावा कर रहा है कि वह एनआईटी मामले को बढ़ाना नहीं चाहते, वहीं उनके अपने आदमी, जैसे अनुपम खेर आदि यहां आकर मामले को तूल देते हैं, सांप्रदायिक रंग देते हैं। महबूबा के पास कितनी शक्तियां हैं ये भी कश्मीरी जानते हैं। मूलत: वह केंद्र का ही एजेंडा लागू करने को बाध्य है। लेखक व पत्रकार बशारत पीर ने बताया कि इस पूरे प्रकरण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को देखने की जरूरत है। जम्मू में संघ बहुत सक्रिय है और इसका जबर्दस्त काम है, नेटवर्क है। कश्मीर के मामले में संघ 1952 से यही कह और कर रहा है कि इसे अलग से तवज्जो दिए जाने की जरूरत नहीं है। अब पहली बार भाजपा सत्ता में साझेदारी में आई है तो यह बहुत स्वाभाविक है कि वह अपने दशकों पुराने एजेंडे को आगे बढ़ाएंगे। इस पूरे प्रकरण में अगर किसी को नुकसान हुआ है तो वह महबूबा हैं और भाजपा उन पर अपनी पकड़ और मजबूत करने में सफल हो पाई है।

यहां जम्मू में संघ और भाजपा के एजेंडे पर बात किए बिना पूरी तस्वीर सामने नहीं आएगी। भाजपा और संघ का सारा जोर जम्मू के दस जिलों पर है। जम्मू, पीर पंचाल और चिनाब घाटी में फैले इन दस जिलों में 2011 की जनगणना के अनुसार 62.55 फीसदी हिंदू आबादी है और 33.45 फीसदी मुस्लिम। जम्मू खंड में आने वाले दस जिले हैं-कठुआ, उधमपुर, रिआसी, जम्मू, सांबा, पूंछ, राजौरी, डोडा, रामबन और किश्तवार। इनमें पूंछ, राजौरी, डोडा, रामबन, किश्तवाड़ और रिआसी को छोडक़र हिंदू आबादी ज्यादा है। इन्हीं 10 जिलों में डिफेंस कमेटियां भी हैं जो भाजपा की पिछली एनडीए सरकार के समय गठित की गई थीं, जिनका काम गांवों को पाकिस्तानी घुसपैठ से बचाना बताया गया था। इन्हें हथियार भी दिए गए थे जो बाद में लौटाए नहीं गए। ये कमेटियां केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद से बेहद सक्रिय हैं। इन्हें जम्मू का सलवा जुडूम माना जाता रहा है। संघ और भाजपा की रणनीति का ये कमेटियां एक अहम हिस्सा बताई जाती हैं। इनमें से कई जिलों में राजौरी, किश्तवाड़ और रामबन में सांप्रदायिक तनाव-दंगे हो चुके हैं। जम्मू में प्राध्यापक मनोज शर्मा का कहना है कि कश्मीर वादी की घटनाओं पर जिस उग्र ढंग से जम्मू में प्रतिक्रिया हो रही है, राष्ट्रवाद और तिरंगे पर भावनाओं में उफान लाया जा रहा है, वह आने वाले दिनों में दोनों इलाकों के बीच दूरी को और बढ़ाने वाला है।

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