माकपा नेता और अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संगठन की नेता जगमति संगवान के पार्टी से बाहर होने का असर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पर दूर तक पड़ने जा रहा है। माकपा के भीतर बंगाल और केरल की दो अलग-अलग धाराओं के बीच चल रहा संघर्ष और तेज होगा। माकपा के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि इन दो धारा के बीच टकराव की भेंट चढ़ गई 30 सालों से भी अधिक समय तक पार्टी की सक्रिय नेता जगमति।
माकपा के भीतर यह बैचेनी पश्चिम बंगाल चुनाव के समय से ही मुखर होने लगी थी और इसका विस्फोट होने के कयास ही लगाया जा रहा था। माकपा नेताओं का कहना है कि अगर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद पार्टी की स्थिति में सुधार होता तो शायद ये स्वर इतने तीखे नहीं होते। पश्चिम बंगाल में माकपा की करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस के साथ जाने पर हंगामा मचना तकरीबन तय था। बताया जाता है कि शुरू में पोलित ब्यूरो में भी इस बात पर सहमति थी कि बंगाल लाइन की आलोचना करके मामले को भविष्य की रणनीति पर छोड़ दिया जाएगा। यही वजह है कि पहला ड्राफ्ट भी इसी तरह का बनाया गया। लेकिन इस पर बंगाल की टीम अड़ गई क्योंकि उसका मानना है कि बंगाल में माकपा अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और इसमें बचने के लिए कांग्रेस से हाथ मिलना जरूरी था। यह दो लाइन का टकराव था, जिसे माकपा महासचिव बीच का रास्ता अपनाकर निपटा लेना चाहते थे। लेकिन पूर्व महासचिव प्रकाश कारात और उनका खेमा इस पर सीताराम को घेरने की तैयारी में थे।
इसी क्रम में उग्र और मुखर तेवर के लिए मशहूर जगमती सांगवान ने तीखा विरोध किया और आवेग में इस्तीफे की बात कही। इसे उन्होंने सार्वजनिक भी कर दिया और सेंट्रल कमेटी की बातों को मीडिया में ले गई। हरियाणा और पंजाब के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि माकपा नेतृत्व को समझदारी दिखानी चाहिए थी और तुरंत इतना बड़ा कदम नहीं उठाना चाहिए था। जगमती के बाहर जाने से पूरे उत्तर भारत में वामपंथ और खासतौर से माकपा को खासा नुकसान होने जा रहा है। पहले से ही इस क्षेत्र में वाम के हाल खस्ता हैं।