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केजरीवाल गुट के मिनट्स

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को आम आदमी पार्टी (आप) की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी (पीएसी) से निकालना अरविंद केजरीवाल गुट के गले की फांस बन गया है। केजरीवाल के करीबी मनीष सिसोदिया, गोपाल राय, संजय सिंह और पंकज गुप्ता ने यादव और भूषण को पीएसी से हटाने को लेकर सफाई दी है।
केजरीवाल गुट के मिनट्स

योगेन्द्र और प्रशांत को पार्टी की पीएसी से हटाये जाने का आप के भीतर से ही काफी विरोध हो रहा है। बड़ी संख्या में आदर्शवादी कार्यकर्ता इसके विरोध पर उतारू हैं। मयंक गांधी जैसे पीएसी के सदस्य ने भी अपने ब्लॉग में इस बात पर खुले आम सवाल उठाये हैं। उन्होंने पार्टी से पीएसी के मिनट्स को कार्यकर्ताओं के बीच लाने की मांग की है। अब अरविंद केजरीवाल गुट की तरफ से जो बयान जारी किया गया है उससे लगता है कि मयंक की बातों का जवाब देने की कोशिश की गई है। लेकिन इस बयान में कुछ भी नया नहीं है।  यादव और भूषण पर एक बार फिर से आरोप लगाया गया है कि दोनों नेताओं ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी को हराने की कोशिश की थी।  

मयंक ने पीएसी बैठक के मिनट्स सामने लाने की बात कही थी। साधारण भाषा में इसका मतलब है- चार मार्च को पीएसी की बैठक में क्या चर्चा हुई। किस नेता ने क्या कहा यानी मीटिंग का पूरा ब्यौरा। केजरीवाल गुट ने एक बार फिर सिर्फ अपना पक्ष सामने रखा है। उसमें योगेन्द्र और प्रशांत की एक भी बात शामिल नहीं की गई है। तो आखिर क्या बात है कि अरविंद गुट मीटिंग के मिनट्स को सामने नहीं लाना चाहता?

चार मार्च को हुई बैठक में योगेन्द्र और भूषण को आठ के मुकाबले ग्यारह मतों से पीएसी से बाहर कर दिया गया था। करीब छह घंटे तक चली बैठक में किन नेताओं ने क्या बात रखी यह अब तक सामने नहीं आया है। पीएसी के मिनट्स बाहर आने पर ही पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता को सही बात का पता चल सकता है। लेकिन अरविंद गुट के नेता जिस तरह से लगातार यादव और भूषण पर निशाना साध रहे हैं उससे उन्हीं की फजीहत हो रही है। उनका इकतरफा अभियान गुटबाजों की पोल खोल रहा है। जबकि यादव और भूषण बचाव की मुद्रा में आकर लगातार पार्टी एकता की बात कर रहे हैं और अरविंद केजरीवाल की तारीफ किये जा रहे हैं। केजरीवाल के गण भूषण और यादव को ठिकाने लगाने पर जुटे हुए हैं।

यह बात बिल्कुल सार्वजनिक है कि आप ने जिस तरह से दिल्ली विधानसभा चुनाव में टिकट बांटे थे। उसमें कई आपराधिक पृष्ठभूमि के पैसे वाले लोग शामिल थे। कई लोग तो भारतीय जनता पार्टी से भी पार्टी में आये थे। भूषण और यादव ने इसका विरोध किया था। यह भी सार्वजनिक है। असल बात यह है कि केजरीवाल गुट को असहमति की कोई भी आवाज़ बर्दाश्त नहीं है। बाकी पार्टियों की तरह जैसे-तैसे चुनाव जीत लेना उन्होंने अपना मकसद बना लिया था। 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद अरविंद के आसपास कुछ तिकड़मी पत्रकार जुटने लगे जिन्होंने जैसे-तैसे चुनाव जीत लेना ही पार्टी का पहला ऐजेंडा बना डाला।  

कमाल की बात यह है कि केजरीवाल पार्टी में चल रही उथल-पुथल से खुद को दूर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा भी जाहिर कर रहे हैं कि वह इन सब बातों से काफी दुखी हैं। लेकिन अगर देखा जाय तो सारी बिसात उन्हीं की बिछाई है। उनके गुट के नेता कार्तकर्ताओं को भावुक बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कार्यकर्ता ज्यादा तार्किक सवाल उठा रहे हैं। केजरीवाल गुट ने अपने गलती नहीं सुधारी को उनकी और फजीहत होना तय है।

 अरविंद गुट की ओर से जारी बयान

 चार मार्च को आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में पार्टी में आये गतिरोध को दूर करने के लिए श्री योगेन्द्र यादव व श्री प्रशांत भूषण को PAC से मुक्त करके नई जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया गया।

पार्टी ने यह सोचकर PAC से हटाने के कारणों को सार्वजनिक नहीं किया कि उससे इन दोनों के व्यक्तित्व पर विपरीत असर पड़ेगा, लेकिन बैठक के बाद मीडिया में लगातार बयान दे कर माहौल बनाया जा रहा है जैसे राष्ट्रीय कार्यकारणी ने अलोकतांत्रिक और गैरजिम्मेदार तरीके से यह फैसला लिया। मीडिया को देखकर कार्यकर्ताओ में भी यह सवाल उठने लगा है की आखिर इनको PAC से हटाने की वजह क्या है। पार्टी के खिलाफ मीडिया में बनाये जा रहे माहौल से मजबूर हो कर पार्टी को दोनों वरिष्ठ साथियों को PAC से हटाये जाने के करणों को सार्वजनिक करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनावों में ऐतिहासिक जीत मिली है। यह जीत सभी कार्यकर्ताओं की जी-तोड़ मेहनत की वजह से संभव हुई।

लेकिन जब सब कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी को जिताने के लिए अपना पसीना बहा रहे थे, उस वक़्त हमारे तीन बड़े नेता पार्टी को हराने की पूरी कोशिश कर रहे थे। ये तीनों नेता हैं - प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव और शांति भूषण।

इनकी ऐसी कोशिशों के कुछ उदाहरण -

1. इन्होने, खासकर प्रशांत भूषण ने, दूसरे प्रदेशों के कार्यकर्ताओं को फ़ोन कर कर के दिल्ली में चुनाव प्रचार करने आने से रोका। प्रशांत जी ने दूसरे प्रदेशों के कार्यकर्ताओं को कहा - "मैं भी दिल्ली के चुनाव में प्रचार नहीं कर रहा। आप लोग भी मत आओ। इस बार पार्टी को हराना ज़रूरी है, तभी अरविन्द का दिमाग ठिकाने आएगा।" इस बात की पुष्टि अंजलि दमानिया भी कर चुकी हैं की उनके सामने प्रशांत जी ने मैसूर के कार्यकर्ताओं को ऐसा कहा।

2. जो लोग पार्टी को चन्दा देना चाहते थे, प्रशांत जी ने उन लोगों को भी चन्दा देने से रोका।

3. चुनाव के करीब दो सप्ताह पहले जब आशीष खेतान ने प्रशांत जी को लोकपाल और स्वराज के मुद्दे पर होने वाले दिल्ली डायलाग के नेतृत्व का आग्रह करने के लिए फ़ोन किया तो प्रशांत जी ने खेतान को बोला कि पार्टी के लिए प्रचार करना तो बहुत दूर की बात है वो दिल्ली का चुनाव पार्टी को हराना चाहते है. उन्होंने कहा कि उनकी कोशिश यह है की पार्टी २०-२२ सीटों से ज्यादा न पाये, पार्टी हारेगी तभी नेतृत्व परिवर्तन संभव होगा.

4. पूरे चुनाव के दौरान प्रशांत जी ने बार-बार ये धमकी दी कि वे प्रेस कांफ्रेंस करके दिल्ली चुनाव में पार्टी की तैयारियों को बर्बाद कर देंगे. उन्हें पता था की आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर है. और अगर किसी भी पार्टी का एक वरिष्ठ नेता ही पार्टी के खिलाफ बोलेगा तो जीती हुई बाजी भी हार में बदल जाएगी.

5. प्रशांत भूषण और उनके पिताजी को समझाने के लिए, कि वे मीडिया में कुछ उलट सुलट न बोलें, पार्टी के लगभग 10 बड़े नेता प्रशांत जी के घर पर लगातार 3 दिनों तक उन्हें समझाते रहे। ऐसे वक़्त जब हमारे नेताओं को प्रचार करना चाहिए था, वो लोग इन तीनों को मनाने में लगे हुए थे।

6. दूसरी तरफ पार्टी के पास तमाम सबूत है जो दिखाते है की कैसे अरविंद की छवि को ख़राब करने के लिए योगेन्द्र यादव जी ने अखबारों में नेगेटिव ख़बरें छपवायी. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है अगस्त माह 2014 में दी हिन्दू अख़बार में छपी खबर जिसमे अरविंद और पार्टी की एक नकारातमक तस्वीर पेश की गयी. जिस पत्रकार ने ये खबर छापी थी, उसने पिछले दिनों इसका खुलासा किया कि कैसे यादव जी ने ये खबर प्लांट की थी. प्राइवेट बातचीत में कुछ और बड़े संपादकों ने भी बताया है कि यादव जी दिल्ली चुनाव के दौरान उनसे मिलकर अरविंद की छवि खराब करने के लिए ऑफ दी रिकॉर्ड बातें कहते थे।

7. 'अवाम' भाजपा द्वारा संचालित संस्था है। 'अवाम' ने चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी को बहुत बदनाम किया। 'अवाम' को प्रशांत भूषण ने खुलकर सपोर्ट किया था। शांति भूषण जी ने तो 'अवाम' के सपोर्ट में और 'आप' के खिलाफ खुलकर बयान दिए।

8. चुनावों के कुछ दिन पहले शांति भूषण जी ने कहा कि उन्हें भाजपा की CM कैंडिडेट किरण बेदी पर अरविंद से ज्यादा भरोसा है। पार्टी के सभी साथी ये सुनकर दंग रह गए। कार्यकर्ता पूछ रहे थे कि यदि ऐसा है तो फिर वे आम आदमी पार्टी में क्या कर रहे हैं, भाजपा में क्यों नहीं चले जाते? इसके अलावा भी शांति भूषण जी ने अरविंद जी के खिलाफ कई बार बयान दिए।

ये दुःख की बात है कि जब सब कार्यकर्ता अपना पसीना बहा रहे थे, तो हमारी पार्टी के ये सीनियर नेता पार्टी को कमज़ोर करने और पार्टी को हराने में लगे थे।

जरा सोचिये आज अगर दिल्ली चुनाव में इनकी चाहत के अनुरूप आम आदमी पार्टी हार गई होती तो दिल्ली में कौन जीतता और फिर आम आदमी पार्टी की इमानदारी के सिद्धांतों की लड़ाई का भविष्य क्या होता? देश में बदलाव के सपने को लेकर अपना सब कुछ दांव पर लगा कर दिन-रात काम करने वाले कार्यकर्ताओं व देश की जनता की उम्मीदों का क्या होता??? ऐसे बहुत सारे प्रश्नों और तथ्यों पर गहनता से विचार-विमर्श के बाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने बहुमत से दोनों वरिष्ठ साथियों को PAC से मुक्त करके नई जिम्मेदारी देने का निर्णय लिया। 

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