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अबकी बार गुजरात चुनाव में ‘पाटीदार’ नहीं ‘ओबीसी’ होंगे किंगमेकर

-डॉ मेराज हुसैन गुजरात का पाटीदार समूह हमेशा से ही किंगमेकर कहलाता आया है। गुजराती मतदाताओ में 15 फीसद...
अबकी बार गुजरात चुनाव में ‘पाटीदार’ नहीं ‘ओबीसी’ होंगे किंगमेकर

-डॉ मेराज हुसैन

गुजरात का पाटीदार समूह हमेशा से ही किंगमेकर कहलाता आया है। गुजराती मतदाताओ में 15 फीसद की जगह रखने वाला पाटीदार, भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक रहा है, लेकिन इस बार भाजपा के विरोध में खड़े इस समूह का आपस में बंटा होना इसके किंगमेकर होने पर सवाल खड़ा करता है।

 ऐसे में सबसे पहले यह जानना आवश्यक है की गुजरात का ओबीसी वर्ग किस प्रकार गुजरात चुनाव को प्रभावित करता है। आपको बता दें की, ओबीसी गुजरात में 182 में से 70 सीटों पर निर्णायक भूमिका में है जो की आदिवासी, दलित एवं मुसलिम समुदायों की भूमिका से कहीं अधिक है। गणना के अनुसार गुजरात में आदिवासी-26 सीटों, दलित–13 सीटों तथा मुस्लिम–21 सीटों पर प्रभाव डालते हैं, तो दूसरी ओर ओबीसी-70 सीटों के साथ किंगमेकर की निर्णायक भूमिका में नजर आते हैं।

गुजरात मतदाताओं का 15 प्रतिशत अर्थात पाटीदार समूह पिछले हुए कुछ वाक्यों से ‘लेउआ’ और ‘कडवा’ पटेलों के दो रुझानों में बटतां हुआ नजर आ रहा है जिसके बाद इस वोट बैंक का खासा फायदा किसी भी एक पार्टी को मिलता हुआ नही आंका जा सकता।

उदाहरण के तौर पर देखें तो, गुजरात का जैतपुर इलाका जो सीट के तौर पर राजकोट जिले में स्थित है, जहां से भाजपा के पाटीदार प्रत्याशी जयेशभाई रादडिया की जीत 1 लाख पाटीदारों के समर्थन से निश्चित थी, लेकिन पाटीदार अनामत आंदोलन के बाद अब पाटीदार वोट आपस में कांग्रेस और भाजपा में बंटते नजर आ रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में एक नया समीकरण उभर के सामने आता है जिसमें 32000 ओबीसी वोट (18000 कोली + 20,000 गैर कोली ओबीसी ) इस सीट पर निर्णायक भूमिका में दिखाई देते हैं।

अगर एक और उदाहरण के तौर पर धोराजी सीट की बात करे तो यहां दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार आगामी चुनाव में पाटीदार समुदाय से हैं। कांग्रेस के ललित वसोया (लेउआ पटेल) तथा बीजेपी की ओर से हरी भाई (कडवा पटेल) चुनाव लड़ रहे हैं।

गौरतलब है की यहां तकरीबन 70,000 पाटीदार मतदाता है और 89000 ( 7000 कोली + 82000 गैर कोली) ओबीसी मतदाता है। अगर लेउआ और कडवा पटेलो में 70,000 मतदाता बंट जाए तो निश्चय ही नतीजे ओबीसी मतदाताओ पर निर्भर करेंगे।

गुजरात में 51 फीसद ओबीसी मतदाता हैं लेकिन अगर हम उनको अलग अलग भागों में बांट दें तो कोली समाज सबसे बड़ा समुदाय है। गुजरात के कुल मतदाताओं का 20 प्रतिशत हिस्सा रखने वाला कोली समुदाय सदैव से ही शांत तौर पर वोटिंग करता आया है, इनकी ओर से चुनाव प्रत्याशी को लेकर कोई ख़ास प्रदर्शन कभी भी देखने को नहीं मिला है। परंतु निश्चय ही इनका रुझान जीत के लिए बहुत मायने रखता है और इस बात की गंभीरता से दोनों ही पार्टिया (कांग्रेस और भाजपा) भली-भांती परिचित हैं। जिसका अनुमान एक ओर राहुल के पोरबंदर दौरे और कोलियों से हुई बातचीत से लगाया जा सकता है, तो वहीं दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी भी कोलियो को अपने पाले में करने के लिए रिझाते नजर आए हैं। दोनों ही पार्टियों ने 11-11 सीटों के साथ कोलियो को प्रत्याशियों की लिस्ट में जगह दी है।  गुजरात का चोटिला क्षेत्र कोलियों का गढ़ माना जाता है जहां के चोटिला माता मंदिर के दर्शन के लिए 1000 सीढ़िया चढ़ कर राहुल गांधी ने अपने गुजरात दौरे के दौरान गुजरातवासियों का खासा ध्यान खींचा, तो वहीँ अपने गुजरात दौरे के दौरान नरेन्द्र मोदी ने भी चोटिला में ही ग्रीलफिल्ड हवाई अड्डे की आधारशिला रखने के बाद कहा था, ‘हम पूरे देश में विमानन क्षेत्र में ऐसा विकास करना चाहते हैं कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज से यात्रा कर सके। ऐसे कई वाकये हैं जिनसे गुजरात चुनाव में कोलियों के प्रभाव का महत्त्व जाहिर होता है।

आपको बता दें देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कोली समुदाय से ताल्लुक रखते है जिसके बाद भाजपा इसे कोलियों को दिए गए सम्मान के तौर पर दर्शाती हैष इस बात में कोई दो राय नहीं है की कोलीयों को मिले इस सम्मान का भाजपा को अच्छा फायदा हो सकता है।

जिसके बाद अगर ओबीसी वोटों में बंटवारा हुआ तो निश्चय ही अल्पेश ठाकुर से मिले समर्थन का खासा फायदा कांग्रेस को नहीं होगा।

पारदर्शी रूप से यह कहना गलत नहीं होगा की जिसने भी इन ओबीसी वोटरों को एकत्र कर लिया, सत्ता की ताजपोशी निश्चित ही उसके सिर पर होगी और साथ ही ओबीसी गुजरात के किंगमेकर कहलायेंगे।

 

(लेखक राजनीतिक चिंतक एवं ग्लोबल स्ट्रेटेजी ग्रुप के फाउंडर चेयरमैन है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में सेंसर बोर्ड के सदस्य रह चुके हैं।)

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