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मुंबई में ममता: अब कांग्रेस के सहयोगी दलों को साधने की कवायद, पुरानी पार्टी को टीएमसी की चुनौती

पिछले कुछ महीनों में 23 वर्ष पहले गठित तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह 2024 के लोकसभा...
मुंबई में ममता: अब कांग्रेस के सहयोगी दलों को साधने की कवायद, पुरानी पार्टी को टीएमसी की चुनौती

पिछले कुछ महीनों में 23 वर्ष पहले गठित तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार के खिलाफ विपक्षी गठबंधन के नेता के रूप में 136 वर्षीय कांग्रेस की जगह लेना चाहती है। कुछ दिनों पहले टीएमसी ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) के अस्तित्व को खारिज कर दिया था, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य विपक्षी गठबंधन माना जा रहा है। ऐसा कर उसने अपने एजेंडा को पूर्ण रूप से औपचारिक बना दिया है।

सबसे पहले बुधवार को टीएमसी अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महाराष्ट्र में कहा, "क्या यूपीए? अब यूपीए नहीं है। हम इस पर एक साथ फैसला करेंगे।"

उनका यह बयान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार के साथ उनके मुंबई आवास पर मुलाकात के तुरंत बाद आया था। उनका यह बयान इस सवाल के जवाब के रूप में आया है कि क्या पवार यूपीए का नेतृत्व करेंगे।

राकांपा न केवल राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की सहयोगी है, बल्कि कांग्रेस और शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में सरकार चलाने वाले महा विकास अघाड़ी गठबंधन में भी भागीदार है।

बनर्जी ने पिछले महीने नई दिल्ली की अपनी यात्रा के दौरान जानबूझकर कांग्रेस नेतृत्व से मिलने से बचते हुए, न केवल मुंबई में पवार से मुलाकात की, बल्कि शिवसेना सुप्रीमो और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे, आदित्य और शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत से भी मुलाकात की।

राकांपा नेतृत्व के साथ बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए, उन्होंने राहुल गांधी पर परोक्ष रूप से चुटकी ली। हालांकि उनका नाम लिए बिना उन्होंने कहा, "आप ज्यादातर समय विदेश में नहीं रह सकते।"

वहीं, गुरुवार को नई दिल्ली में टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन, सुष्मिता देव और शांता छेत्री द्वारा संबोधित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, पार्टी ने विस्तार से बताया कि बनर्जी का क्या मतलब है।

ओ ब्रायन ने कहा, "बेहतर शासन के लिए 2004 में यूपीए का गठन किया गया था और यह 2014 तक जारी रहा। हालांकि, पिछले कुछ सालों से यूपीए नहीं रहा है। तब संसद में कांग्रेस के लगभग 150 सांसद थे, अब उनके पास 50 हैं। उस समय वाम मोर्चे के पास 62 सीटें थीं और अब उनके पास केवल 6 सीटें हैं। राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के पास 25 सीटें थीं, अब उनके पास 0 हैं। गतिशीलता बदल गई है।"

रणनीतिकार प्रशांत किशोर, जो टीएमसी के सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं और टीएमसी की राष्ट्रीय आकांक्षाओं के प्रमुख वास्तुकारों में से एक माने जा रहे हैं ने गुरुवार को एक ट्वीट में टीएमसी की स्थिति को स्पष्ट किया: "आइडिया और स्पेस जो कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करती है वो विपक्ष के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन कांग्रेस का नेतृत्व किसी व्यक्ति का दैवीय अधिकार नहीं है, खासकर जब पार्टी पिछले 10 वर्षों में 90 प्रतिशत से अधिक चुनाव हार गई हो। विपक्षी नेतृत्व को लोकतांत्रिक तरीके से तय करने दें।"

हालांकि, ये लड़ाई कांग्रेस को बाहर करने की नहीं है, बल्कि संभावित विपक्षी गठबंधन में उसे नेतृत्व के पद से हटाने की है।

कांग्रेस ने टीएमसी पर पलटवार किया। पार्टी के लोकसभा सांसद और बंगाल इकाई के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने बनर्जी को "मोदी का मुखबिर" कहा। कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया कि कांग्रेस के बिना यूपीए बिना आत्मा का शरीर होगा। यब विपक्षी एकता दिखाने का समय है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि कांग्रेस के बिना भाजपा को हराना दिवास्वप्न के समान है।

लेकिन कांग्रेस को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि जिस पार्टी के साथ वह काम कर रही है, उनमें से कोई भी कांग्रेस को कमजोर करने के आक्रामक मिशन के लिए टीएमसी की आलोचना नहीं कर रही है।

उदाहरण के लिए, बुधवार को मीडिया को दिए गए पवार के बयान को ही लें। यह कहते हुए कि किसी को बाहर करने का कोई सवाल ही नहीं है, उन्होंने भी एक साझा मंच बनाने की बात कही। उन्होंने कहा, "हमने मौजूदा स्थिति और सभी समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ आने और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प प्रदान करने की आवश्यकता पर चर्चा की। हमें एक सामूहिक नेतृत्व, मंच और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विकल्प प्रदान करना है। वर्तमान में नेतृत्व कोई मुद्दा नहीं है।

एनसीपी और शिवसेना जैसी पार्टियों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना और दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाना यह दिखाता है कि टीएमसी स्पष्ट रूप से कांग्रेस की सहयोगियों को अपने पाले में शामिल करने की मिशन पर चल रही है।

यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि भले ही टीएमसी गोवा में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) से चुनाव लड़ रही हो और उसने हरियाणा में विस्तार करने की अपनी योजना की भी घोषणा की हो, जहाँ आप भी संभावनाओं को तलाश रही है। लेकिन टीएमसी ने इतने लंबे समय बाद भी केजरीवाल पर निशाना साधने से परहेज किया है। 

इस संदर्भ में, लोकसभा में अच्छी संख्या में सदस्यों को भेजने में सक्षम होने के लिए; यह देखना दिलचस्प होगा कि कर्नाटक स्तिथ जनता दल (सेक्युलर) और तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी एमके स्टालिन के नेतृत्व वाले द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) जैसे कांग्रेस के सहयोगियों से टीएमसी कैसे संपर्क करती है, जिसे अभी अच्छी स्थिति में माना जा रहा है।

इन पार्टियों में से किसी ने भी अब तक कम से कम सार्वजनिक रूप से, कांग्रेस पर टीएमसी के अथक हमले पर आपत्ति नहीं जताई है, यहां तक कि कांग्रेस यह आरोप लगाती रहती है कि इन प्रयासों से विपक्षी दलों की बहुप्रतीक्षित एकता कमजोर होगी।

टीएमसी के एक राज्यसभा सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर आउटलुक से बात करते हुए समझाया कि हम कांग्रेस के फॉर्मूले से परे एक अलग तरह के गठबंधन के बारे में सोच रहे हैं। कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों को गठबंधन में नहीं ला सकती है। लेकिन हम कोशिश कर सकते हैं।
 
नेतृत्व के संकट से जूझ रही कांग्रेस के लिए यह स्थिति समय बर्बाद करने के लिए नहीं है।

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