जातीय जनगणना के मुद्दे पर नीतीश सरकार और केंद्र सरकार दोनों आमने सामने आ चुकी है। अब आलम ये हो चला है कि इस मामले पर बातचीत के लिए सीएम नीतीश ने पिछले दिनों पीएम मोदी को पत्र लिखकर बातचीत का समय मांगा था। लेकिन, अभी तक उन्हें समय नहीं मिल पाया है।
वहीं, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की अपनी सूची बनाने के लिए राज्यों की शक्ति को बहाल करने को लेकर केंद्र की तरफ से संविधान में संशोधन किया गया है। मानसून सत्र के दौरान संसद में भारी हंगामे और विरोध प्रदर्शन के बीच इसको लेकर मोदी सरकार ने विधेयक पारित कर लिया है। लेकिन,अब जाति-आधारित जनगणना के पेचीदे मुद्दे पर मोदी सरकार अभी भी घिरती दिखाई दे रही है। इसकी मांग एनडीए के सहयोगियों द्वारा लंबे समय से की जा रही है।
मुख्यमंत्री नीतीश लगातार जाति आधारित जनगणना कराने पर जोर दे रहे हैं। इस मामले पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव सरीखे अन्य दलों का भी जेडीयू को समर्थन मिला है। लेकिन, भाजपा इससे नकार रही है। अगले साल देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब राज्य शामिल है।
जेडीयू का सीधे तौर पर कहना है कि जातीय जनगणना कराया जाना चाहिए। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और महासचिव केसी त्यागी का कहना है कि अगर केंद्र ने उसकी मांग पर ध्यान नहीं दिया तो बिहार सरकार राज्य-विशिष्ट जाति सर्वेक्षण करा सकती है।
आउटलुक से बातचीत में त्यागी ने कहा है कि जेडीयू अन्य दलों को लामबंद करेगा और जाति-आधारित गणना के लिए मोदी सरकार पर दबाव बनाने के अपने प्रयासों को तेज करेगा। आगे त्यागी केंद्र से सवाल करते हुए कहते हैं, “2018 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ओबीसी और एसईबीसी की पहचान के लिए एक जाति-आधारित सर्वेक्षण का वादा किया था। अब कौन सी वजह है जो बीजेपी कोऐसा करने से रोक रही है? उनके'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के नारे का क्या हुआ?"
त्यागी ने कहा है कि बिहार विधानसभा ने इस संबंध में दो प्रस्ताव पारित किए हैं। कई राज्य सरकारों के अलावा, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी केंद्र सरकार से ओबीसी की आबादी की गणना 2021 की जनगणना के रूप में करने का आग्रह किया है ताकि नीतियां बनाई जा सकें और उनके लिए कार्यक्रम तैयार किए जा सके।
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता त्यागी का ये भी कहना है, “भाजपा और जद (यू) की अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराएं हैं। हम उनसे कई बातों पर असहमत हैं। पार्टी अपनी मांग के लिए दबाव बना रही है और मुझे नहीं लगता कि इससे हमारे संबंधों पर कोई असर पड़ेगा।”