2014 के लोकसभा चुनाव में मुंबई के पास भिवंडी में राहुल गांधी ने कथित तौर पर कहा था, 'आरएसएस के लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या की।' आरएसएस की लोकल यूनिट के हेड राजेश कुंते ने राहुल के इस बयान को कोर्ट ले गए। राहुल गांधी के वकील कपिल सिब्बल ने 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्होंने आरएसएस को एक संस्थान के तौर पर कभी दोषी नहीं ठहराया, लेकिन इस संगठन से जुड़ा एक शख्स इस अपराध के लिए जिम्मेदार था और यह बात बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने दिए गए उसके हलफनामे से भी साबित होती है
इसके बाद अदालत ने कुंते के वकील यू आर ललित से पूछा कि क्या वह इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट हैं और स्टेटमेंट रिकॉर्ड कर आपराधिक आरोप वापस लिए जा सकते हैं। ललित ने इस पर सहमति जताते हुए अपने क्लायंट से सलाह लेने के लिए समय मांगा और कोर्ट की कार्यवाही स्थगित हो गई। ललित ने अंग्रेजी अखबार इकोनोमिक टाइम्स को बताया, 'यह मामला सिर्फ संभावित सहमति का था। यह फाइनल नहीं था।
एबीएपी की सुप्रीम कोर्ट यूनिट के कुछ वकीलों ने 29 अगस्त को बैठक कर इस केस की स्ट्रैटिजी पर चर्चा की। इनमें से कुछ भाजपा के शासन वाले राज्यों के एडिशनल अटॉर्नी जनरल भी थे। इन वकीलों का कहना था कि राहुल का स्पष्टीकरण पर्याप्त नहीं है और उन्हें माफी मांगने के लिए कहा जाना चाहिए। साथ ही, वह यह भी वादा करें कि भविष्य में ऐसा बयान नहीं देंगे। इनमें से कुछ वकीलों की दलील थी कि कांग्रेस नेता से इस तरह की माफी की उम्मीद करना बेवकूफी है और इस स्पष्टीकरण से ही संतुष्ट हो जाना चाहिए। हालांकि, माफी की मांग कर रहे वकीलों का पलड़ा भारी रहा।
बैठक के बारे में पूछे जाने पर एबीएपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनायक दीक्षित ने बताया कि तबीयत खराब होने के कारण वह इसमें मौजूद नहीं थे। एबीएपी के राष्ट्रीय सचिव भारत कुमार ने भी बैठक का ब्योरा देने से इनकार कर दिया। 1 सितंबर को जब मामला कोर्ट में आया, तो ललित ने कहा कि राहुल यह कहें कि वह यह नहीं मानते कि आरएसएस गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार है। कपिल सिब्बल ने यह मांग खारिज कर दी और यह भी कहा कि राहुल गांधी अपने शब्द पर कायम हैं और वह ट्रायल के लिए तैयार हैं। एबीएपी को राहुल के अचानक से इस तरह पलटने की उम्मीद नहीं थी।