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पप्पू यादव की कोरोना काल में सक्रियता और सरकारी प्रतिक्रिया, पॉलिटिक्स या परोपकार?

“बहुचर्चित पप्पू यादव की कोरोना काल में सक्रियता और सरकारी प्रतिक्रिया” जब बिहार पुलिस 32 साल...
पप्पू यादव की कोरोना काल में सक्रियता और सरकारी प्रतिक्रिया,  पॉलिटिक्स या परोपकार?

“बहुचर्चित पप्पू यादव की कोरोना काल में सक्रियता और सरकारी प्रतिक्रिया”

जब बिहार पुलिस 32 साल पुराने अपहरण के एक मामले में पांच बार लोकसभा चुनाव जीते, पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को हाल में गिरफ्तार कर ले जा रही थी, तो अपने परिवार और दोस्तों को उन्होंने बस यही कहा, “लोगों को कोरोना के दौर में मदद करना बंद मत करना, भले ही सब कुछ बेचना पड़े।” ये वही पप्पू हैं जिन्हें कभी माकपा विधायक अजीत सरकार की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। बिहार में वर्षों तक बाहुबली के रूप में पप्पू के अतीत से वाकिफ लोगों को एक पूर्व डॉन के सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कायापलट और आज के दौर में “अन्यायी व्यवस्था” और “बेईमान नेताओं” के खिलाफ लड़ते देखना हैरत से कम नहीं है।

पप्पू के बीते कल के कारनामे - जेल के अंदर और बाहर - इतने चर्चित थे कि अभिनेता सोनू सूद ने सलमान खान की 2010 में प्रदर्शित फिल्म दबंग में बाहुबली छेदी सिंह की भूमिका निभाने से पूर्व उनसे टिप्स ली थी। लगभग दस साल बाद, सोनू और पप्पू दोनों ने कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों की मदद करने के लिए अलग-अलग सुर्खियां बटोरीं। लेकिन जहां सोनू देश में बहुचर्चित हैं, पप्पू तीन दशक से अधिक पुराने एक मामले में सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं।

मधेपुरा कोर्ट ने अपहरण मामले में पप्पू को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा। अब उनका दरभंगा के एक अस्पताल के आइसीयू में इलाज चल रहा है। उनका आरोप है कि उन्हें राजनीतिक प्रतिशोध के कारण गिरफ्तार किया गया है। वे कहते हैं, “बिहार की बदतर स्वास्थ्य सेवा को उजागर करने के अलावा, मैंने हाल ही में एक भाजपा सांसद का पर्दाफाश किया था। इसीलिए यह मुझे जेल में रखने और मुझे कोविड-पॉजिटिव बनाने की साजिश है।”

गिरफ्तारी से कुछ ही दिन पहले पप्पू और उनके समर्थकों ने सारण लोकसभा क्षेत्र में एक सामुदायिक केंद्र पर धावा बोलकर 30 बेकार पड़े एम्बुलेंस को ‘खोज’ निकाला था। उनका आरोप था कि ये एंबुलेंस स्थानीय भाजपा सांसद तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी की सांसद निधि से खरीदे गए थे। 

उन्होंने रूडी पर निजी स्वार्थ के लिए ऐसे 100 एंबुलेंस रखने का आरोप लगाते हुए कहा, “ऐसे समय जब एंबुलेंस की भारी किल्लत है, कोविड ग्रस्त रोगियों से सिर्फ एक किलोमीटर के लिए 12,000 रुपये लिए जा रहे हैं, यह आपराधिक लापरवाही है।” रूडी ने जवाब में कहा कि ड्राइवरों की कमी के कारण एंबुलेंस खड़े हैं, तो पप्पू पटना में प्रेस वार्ता के दौरान दर्जनों बेरोजगार ड्राइवरों के साथ सामने आए।

भाजपा सांसद रूडी की एंबुलेस के साथ

पप्पू को पटना पुलिस ने लॉकडाउन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के आरोप में हिरासत में ले लिया। उसी शाम उन्हें मधेपुरा पुलिस को सौंप दिया गया, जो 1989 के मामले के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार करने के उद्देश्य से पटना पहुंची थी। पप्पू समर्थकों का आरोप है कि उन्हें इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि वे न केवल बिहार की दयनीय स्वास्थ्य सेवा को उजागर कर रहे थे बल्कि कोरोना पीडि़त परिवारों को ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाएं उपलब्ध करा रहे थे। हालांकि, उनके विरोधी ऐसे दावों को उनके आपराधिक इतिहास की याद दिलाकर खारिज करते हैं। रूडी कहते हैं, “मंदिर में बैठा हर अपराधी संत नहीं हो जाता है।”

2013 में पटना हाइकोर्ट ने उन्हें अजीत सरकार हत्या मामले में बरी कर दिया, उसके बाद से ही पप्पू छवि बदलने में लगे हुए हैं। जेल में रहते हुए उन्होंने ‘युवा शक्ति’ संगठन की स्थापना की, जिसने 2008 में कोसी में आई बाढ़ के दौरान सराहनीय कार्य किया था। जेल से बाहर आने के बाद उनके सेवा मिशन को गति मिली। एक बार अक्षय कुमार की फिल्म गब्बर इज बैक (2015) से प्रेरित होकर, उन्होंने गरीबों से मनमाना फीस वसूलने वाले डॉक्टरों के खिलाफ राज्यव्यापी अभियान भी शुरू किया था। 2019 में, पटना में बाढ़ के दौरान भी उन्होंने लोगों की मदद की। यह और बात है कि ये तमाम परोपकारी कार्य करने के बावजूद 2014 के बाद से उन्हें किसी भी चुनाव में सफलता नहीं मिली है।

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