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कांग्रेस: लीक छोड़े तब न... हालिया पराजयों ने पार्टी को अजीब दोराहे पर खड़ा किया

हालिया पराजयों ने कांग्रेस को अजीब दोराहे पर खड़ा किया लगता है, आजादी की लड़ाई से उपजी, समूची सामाजिक...
कांग्रेस: लीक छोड़े तब न... हालिया पराजयों ने पार्टी को अजीब दोराहे पर खड़ा किया

हालिया पराजयों ने कांग्रेस को अजीब दोराहे पर खड़ा किया

लगता है, आजादी की लड़ाई से उपजी, समूची सामाजिक संरचनाओं की छतरी जैसी रही देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को ऐसा महारोग लग गया, जिसका इलाज किसी को सूझ नहीं रहा। उसके वर्तमान कर्ताधर्ता और नेता चाहे जितनी सक्रियता दिखाते हैं, सब कुछ धरा रह जाता है। मिसाल ढूंढ़ने की दरकार नहीं है। ताजा उदाहरण हाल के पांच राज्यों के चुनाव हैं। वह अपने इकलौते राज्य पंजाब को भी गंवा बैठी। जिस सोनिया गांधी ने 2004 में पार्टी को एकजुट करके और क्षेत्रीय सियासी दलों के साथ बड़ा गठजोड़ यूपीए बनाकर कांग्रेस में जान डाल दी थी, अब वे प्रत्यक्ष तौर पर स्वास्थ्य वजहों से सक्रिय नहीं हैं। उनके बेटे राहुल गांधी लगातार नाकाम साबित हुए और अब उनकी बहन प्रियंका भी उत्तर प्रदेश में खूब सक्रिय हुईं, उनकी सभाओं में भीड़ भी खूब उमड़ी लेकिन माकूल नतीजे नहीं पा सकीं। पार्टी दो सीटों और 2.5 प्रतिशत वोट पर सिमट गई। उनके प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी अपनी सीट गंवा बैठे।

इन नतीजों के बाद हर बार की तरह कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ नहीं निकला। बस जी-23 गुट की ओर से गुलामनबी आजाद ने कुछ तीखे सवाल पूछे और अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यह कहकर शांत कर दिया कि अगर कांग्रेस मेरे और मेरे परिवार के हटने से जी उठती है तो हम हटने को तैयार हैं। वैसे भी, इससे कुछ होने वाला नहीं था क्योंकि बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु के चुनावों में हार की समीक्षा के लिए गठित अशोक चव्हाण समिति की रिपोर्ट पर अभी विचार ही नहीं किया गया है। उसके पहले ए.के. एंटनी समिति की रिपोर्ट भी धरी रह गई। कांग्रेस में जान डालनी है तो इस रस्मी कवायद से आगे जाना होगा।

ऐसी रस्मी कवायदों से तो यही लगता है कि नेतृत्व में पार्टी में जान डालने की कोई इच्छा नहीं है या फिर उसे कुछ सूझ नहीं रहा है। नेतृत्व ही नहीं, पार्टी काडर भी मानो धीमी मौत मरने को तैयार है। इसी का नतीजा है कि नेता छोड़कर जा रहे हैं और उसी के नेताओं से भाजपा गुलजार हो रही है। हालिया चुनाव वाले राज्यों मणिपुर, गोवा, उत्तराखंड में कांग्रेस के टूटे नेताओं से ही भाजपा को सत्ता हासिल हुआ है और हो रहा है।

इसी वजह से भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दल अब गैर-कांग्रेस धुरी बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। लेकिन अभी कांग्रेस ही लगभग 203 संसदीय क्षेत्रों और 11 से ज्यादा राज्यों में भाजपा से सीधी टक्कर में है। मसलन 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले 11 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड और मिजोरम हैं। इन सबको मिलाकर 146 लोकसभा सीटें बनती हैं, जिसमें भाजपा के पास फिलहाल 121 हैं और ज्यादातर राज्यों में भाजपा को चुनौती देने वाली इकलौती कांग्रेस है। गुजरात, हिमाचल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कुल 95 संसदीय सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 2018 से सत्ता में है। उसने 2018 में मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव मामूली अंतर से जीता था, फिर भी 2019 में सिर्फ तीन सांसद इन राज्यों से भेज पाई।

देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए यह उसके वजूद को चुनौती की तरह है क्योंकि वह उन राज्यों में भी संसदीय चुनावों में भाजपा का विकल्प नहीं बन पाई, जहां वह सीधी टक्कर में है। राज्यों के चुनावों में भी उसकी जीत विरले ही हो रही है। कांग्रेस अब देश की कुल 3,933 विधानसभा सीटों में सिर्फ 812 यानी 20 फीसद पर काबिज है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि उसके दिग्गजों में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट है.

हालांकि सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष हैं मगर राहुल गांधी ही असली मुखिया बने हुए हैं। राहुल और उनकी बहन प्रियंका गांधी ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू का पक्ष लिया और कैप्टन को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने को मजबूर किया गया। पंजाब और प्रियंका के प्रभार वाले उत्तर प्रदेश में पार्टी के सफाए से राहुल विरोधी धड़े को शायद शह मिलेगी। उनके आलोचक उन्हें उत्तराखंड में हार के लिए भी जिम्मेदार मानते हैं, जहां कई राजनैतिक पंडितों ने कांग्रेस की भाजपा पर जीत की उम्मीद की थी। कांग्रेस के एक लोकसभा सदस्य के मुताबिक सितंबर में पार्टी अध्यक्ष पद पर राहुल की वापसी शायद आसान नहीं होगी। वे कहते हैं, ‘‘गांधी ब्रांड अब अपनी चमक खो चुका है। वक्त आ गया है कि कांग्रेस गांधी परिवार से मुक्त हो।’’

यहां तक कि संभावित सहयोगी भी गैर-भाजपा गठजोड़ का नेतृत्व राहुल के हाथ में देने को तैयार नहीं हैं। ममता यूपीए के खात्मे का ऐलान कर चुकी हैं, शरद पवार कह चुके हैं कि कांग्रेस को अपने नेतृत्व पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। पवार ने यह भी स्वीकार किया है कि कांग्रेस इकलौती पार्टी है, जो भाजपा का राष्ट्रीय विकल्प मुहैया करा सकती है। पंजाब, असम, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में कांग्रेस निर्णायक भूमिका निभा सकती है। इन राज्यों में कुल 155 लोकसभा सीटें हैं। कांग्रेस 2019 में भले 52 सीटें जीती हो, मगर वह 196 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही। इसलिए कांग्रेस के पुनर्जीवन से देश की सियासत बदल सकती है मगर वह खुद यह जिम्मेदारी निभाने को तैयार हो तब न!

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