वैसे तो चुनाव पांच राज्यों में होने जा रहे हैं लेकिन, सबसे दिलचस्प लड़ाई बंगाल में है। पश्चिम बंगाल चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों से लेकर राजनीतिक पंडितों तक की निगाहें टिकी हुई है। मुख्य रूप से सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और सत्ता की बाट बरसों से जोह रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच है। भाजपा लगातार कई मुद्दों पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को घेरते हुए नए-नए ऐलान और नारा लगा रही है। लेकिन, जिस तरह से ओपिनियन पोल्स के सर्वे आए हैं उसने भाजपा के हाथों निराशा थमा दी है। बंगाल में एक बार फिर से ममता बनर्जी की अगुवाई में सरकार बनती हुई दिखाई दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक, सभी राज्य में 'परिवर्तन' का नारा बुलंद करने में लगे हुए हैं लेकिन, ऐसा लगता है की राज्य की जनता के मन में कुछ और है। वो भाजपा के लुभावे में नहीं आती दिख रही है। इसका सबसे बड़ा कारण भाजपा द्वारा सीएम कैंडिडेट को लेकर चेहरा न घोषित किए जाने को लेकर है। क्योंकि, उसके पास ममता की टक्कर का अभी तक कोई चेहरा नहीं मिल पाया है।
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'सी-वोटर' के ओपिनियन पोल में पश्चिम बंगाल की कुल 295 सीटों में टीएमसी को 152 से 168 सीटें मिलने की बात कही गई है। जबकि, बीजेपी को 104 से 120 सीटें और कांग्रेस+लेफ्ट को 18 से 26 सीटें मिल सकती है। भाजपा बंगाल में सीएए का मुद्दा भी लगातार उठा रही है लेकिन, कार्ड भी फेल होता नजर आ रहा है। दरअसल, बंगालियों में टीएमसी की सबसे सटीक पकड़ है। ममता सत्ता में एक दशक से हैं जबकि राजनीति में तीन दशक से अधिक समय से हैं। राज्य में मुस्लिम वोटरों की संख्या भी करीब 31 फीसदी है। जबकि, राज्य में गैर-बंगालियों का भी वोट काफी है। ममता सभी को साधने और बेहतर शासन देने का भरोसा दे रही हैं जिसे भेदने में बीजेपी नाकाम दिख रही है। रैलियों में खाली कुर्सिंया भी इसकी गवाही देती दिखाई दे रही है।
नंदीग्राम में हुए कथित हमले और पैर में आई चोट को भी ममता ने बखूबी से राजनीति मैदान में भावनात्मक कार्ड खेल दिया है। वो चोटिल होने के बाद भी प्लास्टर लगे पैरों के जरिए व्हील चेयर का सहारा ले चुनावी रैलियों में भाजपा और केंद्र को घेर रही हैं। भाजपा के नेताओं द्वारा दिए जा रहे उनके खिलाफ बयान खुद पार्टी के लिए परेशानी का सबब बनता दिख रहा है।
भाजपा को अब अपने भीतरी उपजे कलह की वजह से नुकसान होते दिखाई दे रहे हैं। कुछ महीनों में लगातार टीएमसी के बागी सांसद और विधायक भाजपा में शामिल हुए हैं। राजनीतिक जानकारों का ये भी मानना है कि इन लोगों पर उस क्षेत्र की जनता विश्वास करने में बेरूखी दिखा सकती है, जहां से ये आते हैं। वहीं, बाहरी लोगों को टिकट दिए जाने से भी भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ता काफी गुस्से में हैं और नाराज हैं। इनका आरोप है कि स्थानीय नेताओं को केंद्रीय नेताओं ने नजर अंदाज किया है। इसके विरोध में पार्टी के कार्यकर्ताओं में बीते दिनों अपने ही कार्यालय में जमकर तोड़-फोड़ किया।