पिछले हफ्ते पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अहम बदलाव के साथ अपनी नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी टीम की घोषणा की। इस नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 80 सदस्य शामिल किए गएं, जिस सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुरली मनोहर जोशी का नाम भी शामिल हैं। इतना ही नहीं, लिस्ट में लालकृष्ण आडवाणी को भी शामिल किया गया। लेकिन, इसमें वरुण गांधी और मेनका गांधी को जगह नहीं दी गई।
वरूण गांधी अपने मुखर बयान के लिए जाने जाते हैं। लखीमपुर खीरी हिंसा और किसान आंदोलन को लेकर वो अपनी ही सरकार के खिलाफ लगातार हमवालर दिखाई दे रहे हैं। यही वजह माना जा रहा है कि उन्हें पार्टी से छुट्टी कर दी गई है।
दरअसल, वरूण गांधी और भाजपा के बीच टक्करार कोई नया नहीं है। जब साल 2014 लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए जाने को लेकर उठापटक जारी था, तब वरुण ने राजनाथ की तुलना अटल बिहारी वाजपेयी से की थी और उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाने की वक़ालत की थी।
मोदी के अलावा अमित शाह से भी वरूण गांधी के अच्छे तालुकात बहुत कम दिखाई दिए हैं। राजनाथ सिंह के बाद जब बीजेपी की कमान मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह के जिम्मे आई तो उन्होंने वरुण गांधी को पार्टी महासचिव के पद से से हटा दिया। इतना ही नहीं, बंगाल की भी जिम्मेदारी उनसे वापस ले ली गई।
अब सवाल उठ रहा है कि क्या वरूण गांधी भाजपा छोड़ देंगे? पिछले दिनों उन्होंने सोशल मीडिया प्रोफाइल के बायो से अपनी पार्टी भाजपा का नाम हटा दिया था। वहीं, कांग्रेस पार्टी उनको चुनौती दे रही है।
कांग्रेस नेता अलका लांबा ने पिछले दिनों ये भी कहा था कि अगर वरुण गांधी को लगता है कि उन्हें अगले कैबिनेट विस्तार में मंत्री पद दिया जाएगा तो वे गलत होंगे। लांबा ने कहा, "मैं वरुण गांधी को सुझाव दूंगी कि अगर उनमें थोड़ा भी स्वाभिमान बचा है और अगर वह लखीमपुर खीरी में कुचले गए किसानों के लिए अपनी लड़ाई को लेकर ईमानदार हैं, तो उन्हें ट्विटर पर लड़ाई लड़ने के बजाय बाहर आना चाहिए।" आगे उन्होंने कहा, "यदि उन्हें लगता है कि उन्हें कैबिनेट के अगले विस्तार में शामिल किया जाएगा, तो मुझे लगता है कि वो गलत हैं। उन्हें अभी फैसला करना होगा।"