जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) नेता ललन सिंह मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में भले ही मंत्री बनने से चूक गए हों, लेकिन अब वो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं। ललन सिंह ने केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह की जगह ली है। इस रेस में उपेंद्र कुशवाह भी थे। लेकिन, उन्हें सफलता नहीं मिली है। कुशवाहा ने कुछ महीने पहले अपनी पार्टी रालोसपा का जेडीयू में विलय किया है। अभी वो जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं। वहीं, नीतीश का रालोसपा के विलय को लेकर सीधे तौर पर बिहार में लव-कुश फैक्टर को साधने का है।
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि क्या ललन सिंह को अध्यक्ष बनाना नीतीश की मजबूरी थी? दरअसल, ललन सिंह और आरसीपी सिंह- कम से कम दो सीट मोदी मंत्रिमंडल विस्तार में मिलने की संभावना दिखाई दे रही थी। लेकिन, ललन सिंह का पत्ता कट गया और आरसीपी सिंह मंत्री बन गए। जिसके बाद जेडीयू में ललन सिंह के कई बगावती सुर अंदर-ही-अंदर पनप रहे थे। इसके ठीक बाद उपेंद्र कुशवाहा ने ललन सिंह से मुलाकात की और पार्टी में ये मांग उठने लगी कि एक व्यक्ति एक पद और ऐसे में आरसीपी सिंह को अध्यक्ष पद छोड़ना चाहिए।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद भी जेडीयू को एक सीट का ऑफर हुआ था, लेकिन उस वक्त तत्कालीन अध्यक्ष नीतीश कुमार ने इसे ठुकराते हुए कहा था कि ये मंजूर नहीं है। वो मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होंगे। लेकिन, इस बार नीतीश ने आरसीपी सिंह के पाले में गेंद फेंक दी थी और सिंह मंत्री बन बैठे। अब नीतीश ने कलह को पाटते हुए ललन सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया है।
दरअसल, ललन सिंह सीएम नीतीश के काफी करीब और राजनीति में माहिर माने जाते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी को चिराग पासवान ने काफी नुकसान पहुंचाया था। जिसका बदला अब नीतीश ने ललन सिंह का 'तीर' छोड़ ले लिया है। लोजपा टूट चुकी है। पारस गुट अलग हो चुका है और लोजपा के पोस्टर पर नीतीश की एंट्री हो चुकी है।
चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस के बगावती तेवर के पीछे ललन सिंह की ही रणनीति बताई जा रही है। वहीं, पारस नीतीश की बड़ाई करते अब नहीं थक रहे हैं। ललन सिंह एक बार 2010 के बिहार चुनाव से पहले जेडीयू पार्टी छोड़ गए थे। तब इन्होंने नीतीश कुमार के पेट में कहां-कहां दांत है वाला चर्चित बयान दिया था। हालांकि कुछ साल बाद ही ललन सिंह फिर से पार्टी में लौटकर आएं। ललन सिंह और नीतीश कुमार करीब तीन दशक से साथ हैं।
नीतीश के ललन सिंह को चुनने और उपेंद्र कुशवाहा को नजर अंदाज करने के पीछे एक वजह ये भी मानी जा रही है कि ललन सिंह की पार्टी में अच्छी-खासी पकड़ है। यदि कुशवाहा को वो चुनते तो फिर पार्टी में बगावत होती। राज्य में लव-कुश समीकरण का कुल आठ फीसदी ककेरीब वोट बैंक माना जाता है।