इस मसले पर मानवाधिकार कार्यकर्ता मनीषा सेठी का कहना है कि यह तो नहीं कहा जा सकता है पंजाब हमले का याकूब की फांसी से कोई लेना है लेकिन याकूब को फांसी गलत दी जा रही है। क्योंकि याकूब का ट्रायल टाडा के तहत हुआ है जिस कानून को वर्ष 1995 में ही खत्म कर दिया गया था। यही नहीं याकूब को सजा भी टाडा के तहत की गई है।
पत्रकार और लेखक शाहिद सिद्दिकी ट्वीट करते हैं- अब याकूब की दया याचिका राष्ट्रपति के पास है। हो सकता है वह इसे नामंजूर कर दें क्योंकि अब यह एक राजनीतिक फैसला होगा।
आज दिनभर टि्वटर पर #YakubVerdict और #याकूब_को_फांसी_दो हैशटैग टॉप ट्रैंड करते रहे।
कुमार अमित@Ikumar7-याकूब मेनन की सारी स्टोरी पढ़ने के बाद लगता है कि भविष्य में अब कोई तथाकथित आतंकी भारत की पुलिस के सामने समर्पण नहीं करेगा।
इस ट्वीट का इशारा है पूर्व रॉ प्रमुख दिवंगत बी रमण के उस लेख की तऱफ जिसमे उन्होंनें कहा था कि याकूब ने भारतीय एजेंसियों के साथ सहयोग किया है जो अदालत के संज्ञान में नहीं लाया गया था।
संजय मेहता ने ट्वीट किया – मैं याकूब मेनन की फांसी पर कुछ नहीं कहना चाहता हूं लेकिन फांसी की सजा मानवता के खिलाफ है। ऐसी सजा से किसी को कुछ हासिल नहीं।
दिग्विजय सिंह@digvijayaट्वीट करते हैं कि हम मानते हैं कि याकूब को अदालत के आदेश के अनुसार फांसी हो रही है लेकिन भाजपा सरकार उन बम धमाकों में धीमी क्यों चल रही है जिसमें संघ के लोग सामिल हैं।
इसलिए बी रमन नाम के रॉ अधिकारी ने वर्ष 2007 में रिडिफ डॉट कॉम के लिए अपने लेख में याकूब को फांसी ना दिए जाने के लिए कहा था। यह लेख आठ साल तक नहीं छपा था लेकिन उनके भाई की इजाजत से रिडिफ ने उनका लेख छापा है। रमन याकूब के वक्त रॉ के काउंटर टेररिज्म डेस्क के मुखिया थे। याकूब और उसके परिवार के सदस्यों को कराची से भारत लाने के पूरे ऑपरेशन को उन्हीं की देखरेख में चलाया गया था। जहां एक ओर मृत्यु दंड के ही खिलाफ सिविल सोसाइटी के लोग याकूब को फांसी दिए जाने का विरोध कर रहे हैं वहीं ऑल इंडिया इत्तेहादुल मुस्लिम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि," सरकार मजहब को आधार बनाकर फांसी की सजा तय कर रही है। याकूब मेमन को फांसी क्यों दी जा रही है? अगर सूली पर चढ़ाना ही है तो राजीव गांधी के हत्यारों को भी चढ़ाया जाए।"