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पहले बजट के समय अर्थव्यवस्‍था पर श्वेतपत्र लाने की सोच रहे थे मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माना है कि केंद्र में अपनी सरकार के पहले बजट के समय उनके सामने यह विकल्प था कि वह देश की अर्थव्यवस्‍था की असलियत के बारे में एक श्वेत पत्र लाकर जनता को यह बताते कि आर्थिक हालत कितनी खराब है।
पहले बजट के समय अर्थव्यवस्‍था पर श्वेतपत्र लाने की सोच रहे थे मोदी

इससे उन्हें राजनीतिक लाभ भी मिलता मगर उन्होंने राजनीति के ऊपर राष्ट्रनीति को तरजीह दी और श्वेत पत्र लाने से परहेज किया। क्योंकि श्वेत पत्र लाने पर लोगों में घबराहट फैलती और उस स्थिति को नियंत्रित करना ज्यादा मुश्किल होता। एक निजी समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने यह बात कही है। प्रधानमंत्री ने यह भी दावा किया कि देश की आर्थिक स्थिति अब बहुत हद तक संभल गई है।

पीएम ने कहा, ‘आज मैं सोचता हूं तो मुझे लगता है कि मुझे सरकार बनाने के बाद पहला बजट पेश करने से पहले संसद में देश की आर्थिक स्थिति का एक व्हाइट पेपर रखना चाहिए था। लेकिन मेरे सामने दो रास्ते थे। राजनीति मुझे कहती थी कि मुझे सारा कच्चा चिट्ठा खोल देना चाहिए। राष्ट्रनीति कहती थी कि पॉलिटिकल तो बहुत लाभ हो जाएगा लेकिन देश में सब लोग जब इतनी हालत खराब है, ये जानकारियां पाएंगे तो पूरी तरह निराशा इतनी आ जाएगी, मार्केट इतना टूट जाएगा, देश की इकोनॉमी को इतना बड़ा धक्का लगेगा, ग्लोबली भी देश को देखने की सोच-समझ बदल जाएगी...उसमें से फिर बाहर निकालना मुश्किल हो जाएगा। तो राजनीतिक नुकसान झेल करके भी राष्ट्र के हित में अभी चुप रहना अच्छा है।’ उन्होंने कहा, अब तो स्थिति काफी सुधर गई है तो वो चिंता का विषय रहा नहीं है, लेकिन मैं बिगनिंग के दिनों की बात बताता हूं 2014 मई-जून की। लेकिन मैंने कठिन रास्ता चुना और देश में जो निष्पक्ष भाव से एनालिसिस करने वाले लोग हैं वो जब इसका एनालिसस करेंगे तो मुझे विश्वास है तो उनके लिए ये एक बहुत बड़ा सरप्राइज होगा।

प्रधानमंत्री ने यह भी दावा किया कि देश में अब काला धन भारत से विदेश नहीं जा रहा है और यह उनकी सरकार की बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा, ‘ब्लैक मनी के खिलाफ ऐसा कानून बना है कि अब हिंदुस्तान से कोई विदेश में रुपये भेजने की हिम्मत नहीं कर सकता है। दूसरा, भारत के अंदर जो काला धन है उसके लिए हमने काफी कानूनी परिवर्तित किए हैं। 30 सितंबर तक एक स्कीम चल रही है अगर किसी को अभी भी मुख्यधारा में आना है तो हम मौका देना चाहते हैं। 30 तारीख के बाद मैं कोई कठोर कदम उठाता हूं तो कोई मुझे दोष नहीं दे सकता है।’

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उनकी छवि बनाई गई कि वह दूसरों की सुनते नहीं है बल्कि सिर्फ अपनी मनमानी करते हैं जबकि यह पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा, ‘मेरा जो विकास हुआ है उसका एक कारण...मैं बहुश्रुत हूं...और आज से नहीं मैं...जबसे समझदारी आने लगी, तो सुनना, समझना, ऑब्जर्ब करना...ये मेरे स्वभाव का हिस्सा रहा है... और उसका मुझे काफी फायदा मिल रहा है...मैं वर्काहलिक तो हूं ही... लेकिन मूल बात है मैं वर्तमान में जीना पसंद करता हूं...अगर आप मुझे मिलने आए हैं तो मेरा वो वर्तमान है। उस समय मैं पूरी तरह आपके साथ डूब जाता हूं। उस समय ना मैं टेलीफोन को हाथ लगाता हूं, ना मैं कागज देखता हूं, ना मैं अपना फोकस खोता हूं...अगर मैं फाइलें देखने के लिए बैठा हूं तब भी मैं वर्तमान में होता हूं...तो किसी और चीज की तरफ...तब मैं फाइलों में ही खोया रहता हूं...अगर मैं दौरा करता हूं तो मैं फिर उस वक्त उसी काम में खोया रहता हूं...मैं हर पल वर्तमान में जीने का प्रयास करता हूं। और उसके कारण मुझे कभी...जिस समय जो काम करता हूं... सामने वाले को सैटिसफैक्शन मिलता है...कि भई मुझे क्वालिटी टाइम दिया...सिर्फ टाइम दिया ऐसा नहीं, क्वालिटी टाइम दिया...उसको ऐसा रहता है...दूसरी बात है कि अपने काम को न्याय देना चाहिए, ये मेरा हमेशा प्रयास रहता है।’

एक सवाल के जवाब में मोदी ने यह भी कहा कि न्यायपालिका के साथ सरकार के संबंध पर्याप्त ऊष्मापूर्ण हैं। पीएम ने कहा, ‘ये सरकार ऐसी है कि जिसको नियमों से चलना है, कानून से चलना है, संविधान के तहत चलना है... उसको किसी भी संवैधानिक इंस्टीट्यूशन के साथ संघर्ष की संभावना नहीं है, तनाव की संभावना नहीं है और ये जो बाहर जो परसेप्शन बना है वो सही नहीं है... संविधान की मर्यादा में ज्यूडिशियरी के साथ जितना नाता रहना चाहिए, उतना नाता रहता है, जितना ऊष्मापूर्ण वातावरण रहना चाहिए उतना ऊष्मापूर्ण रहता है... और सरकार की तरफ से जितनी मर्यादाओं का पालन करना चाहिए, उन सारी मर्यादाओं का पालन करने का मेरा भरपूर प्रयास रहता है।’

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि लोग उनकी छवि दलित विरोधी की बना रहे हैं। जबकि असलियत यह है कि ये लोग दलितों के प्रति उनके समर्पण भाव से डर गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने बाबा साहेब अंबेडकर की 125वीं जयंती मनाई जिससे लोगों को भय हुआ और इसलिए उनकी सरकार के खिलाफ दलित मुद्दे पर साजिश की जा रही है।

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