चुनाव आयोग ने कहा कि लोकसभा या राज्यसभा और संबंधित विधानसभाओं के प्रधान सचिव द्वारा अयोग्यता और इसके कारण सीट रिक्त होने की अधिसूचना जारी करने के समय तक दोषी विधिनिर्माता सांसद और विधायक के रूप में अपना दर्जा कायम रखते हैं। आयोग की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा, इस चरण में जाकर चुनाव आयोग का काम आता है और उस खास रिक्त सीट का चुनाव कार्यक्रम घोषित होता है। पीठ उस स्थिति के बारे में जानना चाहती थी जब निचली अदालत के आदेश पर रोक या निलंबन होगा। इस पीठ में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल थे। जब पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह से मदद मांगी तो सिंह ने कहा कि विधि निर्माता को उस सूरत में राहत मिल सकती है अगर ऊपरी अदालत दोषसिद्धि पर रोक लगाती है या निलंबित करती है लेकिन केवल सजा पर निलंबन दोषी सांसदों या विधायकों की मदद नहीं कर पाएगा।
मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि वर्तमान प्रक्रिया सीधे शीर्ष अदालत के फैसले की राह में रोड़ा बनती है जिसने व्यवस्था दी थी कि दोषी विधिनिर्माता को तत्काल अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने पीठ से कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि निचली अदालत के आदेश को खुद ब खुद आयोग को बताया जाए। उन्होंने कहा कि आयोग उस स्थिति में हरकत में आता है जब उसे इस बारे में संसद या विधानसभा सचिवालय द्वारा रिक्त सीट की घोषणा करके बताया जाता है। शीर्ष अदालत ने इस मामले को चार हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया और आयोग से एक हलफनामा दायर करने तथा एनएसजी से संबंधित विभाग से निर्देश लेने के लिए कहा। अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें मांग की गई है कि विधि निर्माताओं की दोषसिद्धि के तुरंत बाद निचली अदालत के आदेश की एक प्रति आगे की कार्रवाई के लिए चुनाव आयोग को भेजी जाए।