पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का लंबी बीमारी के बाद 66 साल की उम्र में निधन हो गया। जेटली की पहचान, आर्थिक, कानूनी व राजनीतिक मुद्दों की गहराई तक समझ रखने वाले नेता की रही। छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखने वाले जेटली ऐडिशनल सॉलिसिटर जनरल से लेकर देश के वित्त मंत्री तक की जिम्मेदारी संभाली। वित्त मंत्री रहते हुए अर्थव्यवस्था को लेकर जीएसटी से लेकर बैंकों के एकीकरण तक कई बड़े फैसले लिए। भाजपा की पूर्ववर्ती अटल सरकार में भी उन्होंने अर्थव्यवस्था पर काफी काम किया।
1. गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स (जीएसटी)
जीएसटी यानी गुड्स ऐंड सर्विस टैक्स को बहुत से लोग अब तक का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म कहते हैं। इसे लागू कराने के पीछे जेटली की अहम भूमिका रही। राज्यों को इसके लिए मनाना निश्चित तौर पर टेढ़ी खीर थी। उन्हें मनाने का श्रेय जेटली को ही जाता है। जुलाई 2017 में जब जीएसटी लागू हुई तो शुरुआत में तमाम समस्याएं आईं और व्यापारियों ने इस कदम का स्वागत नहीं किया लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री जेटली ने धैर्य के साथ काम लिया और जीएसटी फाइलिंग प्रक्रिया को आसान और बिजनस फ्रेंडली बनाने के साथ-साथ टैक्स दरों को संशोधित कर आम उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाने वाला बनाया।
2. इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड
जीएसटी के अलावा इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) की भी गिनती बेहद महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में होती है। इसका श्रेय भी जेटली को जाता है। बैंकिंग व्यवस्था में ढांचागत सुधार के तहत यह कानून बनाया गया। बैंक से बड़े-बड़े कर्ज लेकर उन्हें गटक जाने वाली कंपनियों और पूंजीपतियों में खौफ के लिए इस तरह के कानून की जरूरत थी। बीते 2 सालों में इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड के तहत प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक कीमत की फंसी हुई संपत्तियों का निस्तारण किया गया है।
3. बैंकों का एकीकरण
वैसे तो तमाम सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत बनाने की जरूरत बताई लेकिन यह काम जेटली के नेतृत्व में ही शुरू हुआ। बैंकों का एकीकरण बेशक जेटली के महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल है। स्टेट बैंक में उसके 5 असोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय हो चाहे देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय, इन फैसलों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेहत में सुधार हुआ।
4. एनपीए को लेकर
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में बतौर वित्त मंत्री जेटली ने नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) की बढ़ती समस्या से निपटने में बहुत हद तक कामयाबी हासिल की। उन्हीं की देखरेख में बैंकिंग सेक्टर में एनपीए की सफाई शुरू हुई। इसका फायदा यह हुआ कि सार्वजनिक क्षेत्र के वे बैंक जो घाटे में चल रहे थे, वे भी धीरे-धीरे प्रॉफिट में आने लगे।
5. एफडीआई नियमों में ढील
एफजीआई नियमों में ढील के पक्षधर जेटली के प्रयासों से डिफेंस, इंश्योरेंस और एविएशन जैसे सेक्टर भी FDI के लिए खोले गए। FIPB (फॉरन इन्वेंस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) को भंग किया गया। इन कदमों से FDI में उल्लेखनीय इजाफा देखने को मिला। 2014 में जहां भारत में 24.3 अरब डॉलर की एफडीआई आई थी वहीं आने वाले वर्षों में यह लगातार बढ़ते हुए 2019 में 44.4 अरब डॉलर तक पहुंच गई। इसका श्रेय बहुत हद तक जेटली को जाता है।
6. जनधन योजना
वित्तीय समावेशन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी जनधन योजना की कामयाबी का श्रेय अरुण जेटली को ही जाता है। बतौर वित्त मंत्री जेटली ने यह सुनिश्चित करने में सफलता पाई कि बैंक आम लोगों के लिए अपने दरवाजे न बंद करें। वित्त मंत्रालय के ताजा आंकड़े के मुताबिक 3 जुलाई 2019 तक कुल 36.06 करोड़ जनधन खाते खुल चुके थे। न्यूनतम राशि रखने की बाध्यता नहीं होने के बावजूद इन खातों के जरिए बैंकों के पास 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा है। योजना की सफलता से उत्साहित सरकार ने 28 अगस्त 2018 के बाद खोले गए खातों के लिए दुर्घटना बीमा 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दिया है। इसके साथ ओवरड्राफ्ट की सीमा भी दोगुनी कर 10,000 रुपये कर दी गई है।
7. विनिवेश पर फैसला
आर्थिक मसलों पर उनकी गहरी समझ को देखते हुए ही 1999 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विनिवेश विभाग का गठन किया तो इसकी जिम्मेदारी जेटली को दी। जेटली के कामों का ही नतीजा था कि वाजपेयी ने 2001 में अलग से विनिवेश मंत्रालय का गठन किया। तत्कालीन विनिवेश मंत्री अरुण शौरी के नेतृत्व में सरकार ने घाटे में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी कम की। विनिवेश मंत्री के तौर पर शौरी अगर कामयाब हुए तो उसके पीछे जेटली द्वारा खड़ी की गई बुनियाद थी। विनिवेश से सरकार पर घाटे वाले PSU के बोझ को हल्का करने में मदद तो मिली ही, दूसरी योजनाओं पर खर्च करने के लिए अतिरिक्त धन मिला। तब पर्यटन विकास निगम के कई होटलों में विनिवेश हुआ। हालांकि, विनिवेश का काफी विरोध भी हुआ और आलोचकों ने इसे निजीकरण की कोशिश करार दिया गया।