मुंबई महापालिका के चुनावों के लिए कुछ ही महीनों का समय बचा है। शिवसेना और भाजपा के संबंध इस कदर तनावपूर्ण हैं कि विधानसभा के बाद बीएमसी चुनाव भी ये दोनों पार्टियां अलग अलग लड़ेंगी, यह तय है। ऐसे में उद्धव और राज की मुलाकात राजनीतिक दृष्टी से भी मायने रखती है। हालांकि, मुलाकात के तुरंत बाद न ही उद्धव और न ही राज की तरफ से कोई औपचारिक बयान दिया गया। मुलाकात के बाद कई कयास लगाए जाने लगाए जाने लगे हैं। आउटलुक ने शिवसेना सांसद संजय राउत से इस बारे में पूछा। राउत के अनुसार, “इस मुलाकात का राजनीतिक मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। छोटे भाई बड़े भाई को जनमदिन की शुभकामनाएं देने के लिए पहुंचे थे। ठाकरे परिवार ने राजनीति से ज्यादा खून के रिश्तों को अहमियत दी है। दोनों राजनीति में सक्रिय हैं और मिलने पर हो सकता है कि राजनीतिक चर्चा भी हुई हो।“ मनसे के पूर्व विधायक और राज ठाकरे के करीबी बाला नांदगांवकर ने बताया, “दो राजनीतिक पार्टियों के प्रमुखों की ये मुलाकात थी। उनके बीच राजनीतिक चर्चा नहीं हुई होगी, ऐसा कहना गलत होगा।”
शिवसेना और भाजपा के बीच तनावपूर्ण संबंधों के मद्देनजर उद्धव राज का एक दूसरे से मिलना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बारे में हमने भाजपा के प्रवक्ता केशव उपाध्याय से पूछा तो उन्होंने कहा, “ये दो भाईयों की मुलाकात है और इससे तुरंत कोई राजनीतिक अर्थ निकालने की जरूरत नहीं। महाराष्ट्र की राजनीति की संस्कृति रही है कि यहां प्रतिद्वंद्वी भी एक दूसरे से मिलते रहे हैं और कई मसलों पर चर्चा होती रही है। लिहाजा अगर ठाकरे भाइयों ने मुलाकात की तो इसमें अचरज की कोई बात नहीं।” कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत का भी यही कहना है। हालांकि इस मुलाकात को लेकर सभी के भीतर चिंतन चल रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता नवाब मलिक ने कहा, “इससे पहले भी उद्धव और राज की मुलाकात हुई है, दोनों भाई हैं, उद्धव की बीमारी के वक्त राज खुद उन्हे देखने अस्पताल गए थे और वापिस घर तक भी छोड़ने आए थे।”
आखिर क्यों मिले दोनों ठाकरे?
बालासाहब की प्रॉपर्टी को लेकर उद्धव और उनके बड़े भाई जयदेव ठाकरे के बीच मुंबई हाई कोर्ट में विवाद चल रहा है। आखिरी सुनवाई के वक्त जयदेव ठाकरे के सनसनीखेज बयान के बाद जज ने इस सुनवाई को इन कैमरा करने के आदेश दिए। इसके बाद ठाकरे खानदान की प्रतिष्ठा को धूमिल होने से बचाने के लिए क्या उद्धव उनके और जयदेव के बीच राज को मध्यस्थता करने का आग्रह कर रहे हैं, क्या इसे लेकर दोनों भाईयों में बात हुई होगी? क्योंकि, उद्धव और जयदेव के रिश्तों में काफी कड़वाहट आ चुकी है। लेकिन, राज और जयदेव के रिश्ते ठीक ठाक हैं। राज के पार्टी स्थापना के बाद हुई रैली और भाषण सुनने के लिए जयदेव ठाकरे खुद मौजूद रहा करते थे।
दूसरी संभावना महापालिका चुनावों को लेकर जताई जा रही है। आनेवाले कुछ महीनों में मुंबई, ठाणे, नासिक, पुणे जैसे महानगरों में महापालिका चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा के साथ शिवसेना के बिगड़ते रिश्ते और राज ठाकरे की पार्टी मनसे में पड़ रही फूट के मुद्दे दोनों को एकदूसरे के लिए करीब लाने के लिए वजह हो सकते हैं। एक तरफ भाजपा महाराष्ट्र की सत्ता का भरपूर इस्तेमाल कर हर छोटी बड़ी पार्टी के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ कभी शिवसेना के करीबी रहे रामदास आठवले जैसे दलित नेता को केंद्र में मंत्री बनाकर शिव शक्ति-भीम शक्ति की भी हवा निकाल दी है। शायद इसी वजह से ये दोनों भाई खुल कर मिले।
दोनों भाई जिस प्रकार खुलकर मिले हैं, उन्होंने अपने- अपने तरीके से इसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की है। शिवसेना ने भाजपा को संदेश दे दिया तो राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ कर जा रहे कार्यकर्ताओं को एक तरह से संदेश दिया है कि पिक्चर अभी बाकी है! गठबंधन की चर्चा भी दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं में जोश भर देने के लिए काफी है।