बुधवार को मायावती ने बयान जारी कर कहा कि लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाऊस में सपा नेतृत्व द्वारा उन पर कराये गये जानलेवा हमले के बाद बसपा ने कभी भी सपा से कोई नाम मात्र का भी सियासी मेल-जोल नहीं रखा है। उन्होने कहा कि तब से लेकर आज तक लगभग 21 वर्षों की लंबी अवधि में बसपा. हर स्तर व हर मोर्चें पर सपा के आपराधिक चाल, चरित्र व चेहरे का लगातार विरोध करती रही है और इस क्रम में कभी भी राजनीतिक व चुनावी लाभ-हानि पर ध्यान नहीं दिया है, जिसका गवाह आज तक का उत्तर प्रदेश व देश का तत्कालीन राजनीतिक इतिहास है।
मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री राजनीति करने पर ही अमादा लगते हैं और वे उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव के मद्देनज़र लोगों को वरग़लाने के लिये मिथ्या प्रचार व असत्य आरोप लगा रहे हैं। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है तथा उनको बसपा-सपा की मिलीभगत का आरोप उस कहावत को ही चरितार्थ करता है कि ’उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’। मायावती ने कहा कि भारतीय जनसंघ व इसके वर्तमान स्वरुप में भाजपा सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव से सन् 1967 से ही सीधे सम्पर्क में रही और खासबात यह है कि 1967, 1977 व सन् 1989 में मिलकर चुनाव भी लड़ा है। इसके अलावा अभी हाल ही में भाजपा व सपा ने एक-दूसरे का साथ देने के लिए धर्मनिरपेक्ष गठबन्धन के खिलाफ विधानसभा आमचुनाव लड़ा था और बुरी तरह से परास्त भी हुये।
मायावती ने कहा कि स्पष्ट तौर पर देखा गया है कि किस प्रकार सपा-भाजपा यहाँ एक-दूसरे पर नरम रहते है और आपसी साँठ-गाँठ करके प्रदेश को सांप्रदायिक तनाव व दंगे की राजनीति करके दोनों एक-दूसरे की मदद करते रहते हैं। सपा सरकार के पिछले लगभग साढ़े चार वर्षों के कार्यकाल के दौरान इन दोनों पार्टियों की जबर्दस्त आपसी मिलीभगत के कारण ही प्रदेश की लगभग 22 करोड़ आम जनता किस प्रकार से जातीय, साम्प्रदायिक व जंगलराज के अभिशाप से परेशान रही हैं, इसको पूरे देश के लोगों ने महसूस किया है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री ऐसा बयान देते हैं तो यही कहा जायेगा उनका यह बयान राजनीति से प्रेरित है।