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राजीव गांधी कैबिनेट में मंत्री से लेकर दिल्ली कांग्रेस के शीर्ष तक, शीला दीक्षित का पूरा सफर

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष शीला दीक्षित का 81 साल की उम्र में निधन हो...
राजीव गांधी कैबिनेट में मंत्री से लेकर दिल्ली कांग्रेस के शीर्ष तक, शीला दीक्षित का पूरा सफर

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष शीला दीक्षित का 81 साल की उम्र में निधन हो गया है। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं। 15 साल तक राजधानी की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित निधन से पहले तक राजनीति में सक्रिय थीं। हाल ही में उन्होंने प्रदेश संगठन में कई बदलाव किए थे। हालांकि कुछ दिनों से राज्य के नेतृत्व में खींचतान की भी खबरें आईं।

मां की तरह उन्होंने किया था स्वागत: मनोज तिवारी

शीला दीक्षित के नाम सबसे ज्यादा वक्त तक लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड है। हाल ही के लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली में कांग्रेस की कमजोर स्थिति के मद्देनजर उन्हें फिर से नेतृत्व सौंपा गया। उत्तर-पूर्वी दिल्ली से उन्होंने भाजपा सांसद मनोज तिवारी के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं। पिछले दिनों जीत के बाद मनोज तिवारी शीला दीक्षित से मिलने उनके आवास पर गए थे। शीला दीक्षित के निधन पर मनोज तिवारी ने कहा कि मुझे यह सुनकर झटका लगा है। जब मैं उनसे मिलने गया था तो उन्होंने मां की तरह मेरा स्वागत किया था।

दिल्ली के विकास में अहम योगदान

यही नहीं कांग्रेस पार्टी दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें सीएम के चेहरे के तौर पर उतारने की तैयारी में भी थी। दिल्ली में कांग्रेस की सरकार जाने के बाद केरल की राज्यपाल भी रही थीं। इसके अलावा कांग्रेस ने यूपी विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर भी पेश किया था। शीला दीक्षित को समन्वयवादी राजनीति का चेहरा माना जाता रहा है। दिल्ली में मेट्रो के नेटवर्क का विस्तार हो या फिर बारापुला जैसे बड़े रोड नेटवर्क उन्हीं की देन माने जाते हैं।

नेहरू-गांधी परिवार की करीबी

15 साल तक दिल्ली की सत्ता संभालने वाले शीला दीक्षित इससे पहले 1984 से 89 तक वे कन्नौज (उत्तर प्रदेश) से सांसद रहीं। इस दौरान वे लोकसभा की समितियों में रहने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के आयोग में भारत की प्रतिनिधि रहीं। वह नेहरू-गांधी परिवार की करीबी रही हैं। वह राजीव गांधी सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी थीं। शीला दीक्षित 1998 से 2013 तक लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। हालांकि, 2013 में आम आदमी पार्टी के आने से शीला दीक्षित की सरकार को जाना पड़ा। माना जाता है कि शीला दीक्षित की हार में एंटी अन्ना आंदोलन और कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का योगदान था। इसके बाद वह 2014 में केरल की राज्यपाल भी रहीं।

शीला दीक्षित की पढ़ाई

शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च, 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ। शीला दीक्षित ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की। उनका विवाह उन्नाव (यूपी) के आईएएस अधिकारी स्वर्गीय विनोद दीक्षित से हुआ। विनोद कांग्रेस के बड़े नेता और बंगाल के पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय उमाशंकर दीक्षित के बेटे थे। शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी दिल्ली के सांसद हैं।

काम की बदौलत सोनिया की नजरों में बनाई अच्छी छवि

शीला दीक्षित अपनी काम की बदौलत कांग्रेस पार्टी में पैठ बनाती चली गईं। सोनिया गांधी के सामने भी शीला दीक्षित की एक अच्छी छवि बनी और यही वजह है कि राजीव गांधी के बाद सोनिया गांधी ने उन्हें खासा महत्व दिया। साल 1998 में शीला दीक्षित दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष बनाई गईं। 1998 में ही लोकसभा चुनाव में शीला दीक्षित कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ीं, मगर जीत नहीं पाईं। इसके बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ना छोड़ दिया और दिल्ली की गद्दी की ओर देखना शुरू कर दिया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्होंने न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि तीन-तीन बार मुख्यमंत्री भी रहीं।

कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान लगे भ्रष्टाचार के आरोप

दिल्ली के कायाकल्प में उनका बड़ा योगदान माना जाता है। दिल्ली में मेट्रो के नेटवर्क का विस्तार हो या फिर बारापुला जैसे बड़े रोड नेटवर्क उन्हीं की देन माने जाते हैं। हालांकि दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान उनके शासनकाल में ही उन पर और कांग्रेस पर घोटाले को आरोप लगे।

मनोज तिवारी के खिलाफ हार का सामना

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले शीला दीक्षित को एक बार फिर राज्य की मुख्यधारा की राजनीति में लाया गया। अजय माकन की जगह उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली से शीला दीक्षित को उम्मीदवार बनाया लेकिन उन्हें भाजपा सांसद मनोज तिवारी के सामने हार का सामना करना पड़ा।

आखिरी समय में राज्य के नेतृत्व में खींचतान

शीला दीक्षित के निधन से कुछ दिनों पहले कांग्रेस के राज्य नेतृत्व में खींचतान की खबरें भी आईं। उन्होंने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस संगठन में कई बदलाव किए थे। उन्होंने अपने तीन कार्यकारी अध्यक्षों के बीच पार्टी के काम की जिम्मेदारी बांटी थी। इसे शीला दीक्षित के खराब स्वास्थ्य से जोड़कर भी देखा जा रहा था।

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