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क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम, जिसका वादा राहुल गांधी ने किया

भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) स्कीम की चर्चा पिछले काफी समय से हो रही है। आज कांग्रेस अध्यक्ष...
क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम, जिसका वादा राहुल गांधी ने किया

भारत में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) स्कीम की चर्चा पिछले काफी समय से हो रही है। आज कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में इसका वादा किया। एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर 2019 में कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह हर गरीब को न्यूनतम इनकम की गारंटी देगी यानी गरीबों के एक खाते में न्यूनतम राशि दी जाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का यह दांव इसलिए भी अहम है क्योंकि केंद्र सरकार भी लगातार यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करने का संकेत देती रही है।

मोदी सरकार में पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने इकोनॉमिक सर्वे में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की वकालत भी कर चुके हैं। जिसके बाद से यह बहस लगातार चलती रही है। ऐसे में फरवरी में पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट में यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम का ऐलान किया जा सकता है। ऐसे में राहुल गांधी का यह बयान एक तरह से क्रेडिट लेने की दौड़ का ही एक हिस्सा माना जा रहा है। 

क्या है यूनिवर्सल बेसिक इनकम

यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) मूल रूप से एक सामाजिक सुरक्षा योजना है जो किसी देश में गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने का तरीका है। इसके तहत देश के हर नागरिक को हर महीने एक निश्चित राशि मुहैया कराई जाती है ताकि वे अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें यानी लोगों को बिना कोई काम किए और बिना शर्त एक निश्चित रकम सरकार की तरफ से मिल जाएगी।

देश में उदारीकरण लागू होने के बाद भी आज देखें तो गरीबी और अमीरी का फासला बढ़ा ही है। सरकार की तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बावजूद देश को गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी जैसी समस्‍याओं से निजात नहीं मिल पाई है इसलिए सरकार ऐसी योजनाओं को लागू करने पर विचार कर रही है जिससे गरीबी को जड़ से मिटाया जाए।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम किस तरीके से लागू होगी, कितनी राशि दी जाएगी, कितने लोगों इसके दायरे में आएंगे, इनकी कैटगरी क्या होगी, क्या इसका आधार सामाजिक और आर्थिक होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। सरकार हर मंत्रालयों से राय ले रही है। हाल ही में लोकसभा में बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने यूबीआई का मसला उठाते हुए कहा था कि देश में गरीबी हटाने के लिए 10 करोड़ गरीब परिवारों के खाते में 3,000 रुपये डाले जाने चाहिए।

क्या होगा पैमाना

भारत जैसे देश में यूबीआई सभी नागरिकों के लिए लागू नहीं की जा सकती है और सरकार को कहीं पर यह पैमाना तय करना पड़ेगा, क्योंकि देश में पहले से आवास योजना, पीडीएस स्कीम, मनरेगा जैसी कई जनकल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं जो लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए ही है। क्या यूबीआई लागू करने के बाद इन योजनाओं को सरकार खत्म कर देगी?

मध्य प्रदेश में चला था ऐसा पायलट प्रोजेक्ट

सिक्किम ने यूनिवर्सल बेसिक इनकम का प्रस्ताव दिया है। हालांकि अभी तक किसी भी राज्य में ऐसी योजना लागू नहीं हुई है लेकिन मध्य प्रदेश में इससे मिलती जुलती योजना पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 2010-16 तक चलाई गई थी जिससे लोगों को काफी फायदा पहुंचा था।

इन देशों में है ऐसी सुविधा

विश्व के कई देशों में सरकारें इसी तरह की सुविधाएं दे रही हैं जिसमें ब्राजील, कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड जैसे देश शामिल हैं।

गरीबी से उबारना है मकसद

भारत इस साल वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में 119 देशों की सूची में 103वें नंबर पर आया था। वहीं मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की 189 देशों की सूची में 130वें नंबर पर है। इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत 195 देशों की सूची में 145वें स्थान पर है। जो देश के लोगों के औसत जीवन स्तर को बयां करता है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार 2018 बहुआयामी वैश्विक गरीबी सूचकांक (एमपीआई) रिपोर्ट को देखें तो भारत में अब भी 28 फीसदी लोग गरीबी में जी रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया था, 'भारत में सबसे ज्यादा गरीबी चार राज्यों में है हालांकि भारत भर में छिटपुट रूप से गरीबी मौजूद है, लेकिन बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में गरीबों की संख्या सर्वाधिक है। इन चारों राज्यों में पूरे भारत के आधे से ज्यादा गरीब रहते हैं, जो कि करीब 19.6 करोड़ की आबादी है।'

नकारात्मक पहलू

इस योजना को लागू करने के कई नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। लोगों के हाथ में पैसे आने से उनकी क्रय शक्ति जरूर बढ़ेगी लेकिन इससे एक खास वर्ग में रोष भी प्रकट होगा। जो व्यक्ति छोटे कामों को कर उतनी कमाई कर रहा है (जितना यूबीआई के तहत मिले तो), ऐसे में किसी को बिना काम किए इतने पैसे उपलब्ध कराना विरोधाभास पैदा करेगा। इस योजना को व्यावहारिक तौर पर भारत में लागू करना एक बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि चुनाव से पहले इसे लोकलुभावन योजना करार दिया जा रहा है।

इस योजना को लागू करने की चुनौती यह भी है कि सरकार को बड़े संसाधन की जरूरत होगी। मौजूदा सरकार बजट में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत चीजों पर जब जीडीपी का क्रमश: 3.48 और 2.2 फीसदी खर्च कर रही है तो सभी को आय प्रदान करना मुश्किल लगता है।

अनुमान के मुताबिक, अगर सभी गरीबों के बीच यूबीआई लागू की जाती है तो यह जीडीपी का 10 फीसदी से भी ज्यादा होगा जो अभी सरकार द्वारा दी जा रही हर तरह की सब्सिडी का करीब दोगुना होगा। साथ ही यह योजना बेरोजगारी का हल नहीं है बल्कि संभव है कि इससे बेरोजगारी में और इजाफा हो। मुफ्त में हाथ में पैसे आने से लोगों में काम करने की प्रवृत्ति कम होगी।

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