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जानें कौन हैं जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जिनके कार्यकाल का आज आखिरी दिन, अपने इन फैसलों के लिए किए जाएंगे याद

कई अहम फैसले देने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन आज यानी गुरुवार को रिटायर हो रहे...
जानें कौन हैं जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जिनके कार्यकाल का आज आखिरी दिन, अपने इन फैसलों के लिए किए जाएंगे याद

कई अहम फैसले देने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन आज यानी गुरुवार को रिटायर हो रहे हैं। वह सुप्रीम कोर्ट के एक ऐसे जज रहे, जो अपने धर्म के शीर्ष पुजारी भी थे। उन्होंने इसे कभी छिपाया नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट में दिए गए अपने संक्षिप्त जीवनवृत में भी प्रमुखता से लिखा है। जस्टिस रोहिंटन प्रमुख न्यायविद् फाली नारीमन के पुत्र हैं।

हाल ही में जस्टिस नरीमन 8 राजनीतिक दलों पर 1 से 5 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा कर चर्चा में रहे। इन पार्टियों पर यह जुर्माना उन्होंने बिहार चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित न करने के लिए लगाया था। इससे कुछ दिन पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा की अनुमति पर स्वतः संज्ञान लिया। राज्य सरकार को विवश किया कि वह अनुमति वापस ले, लेकिन सिर्फ यही कुछ फैसले जस्टिस नरीमन का परिचय नहीं हैं।

अपने सात वर्ष की सुप्रीम कोर्ट की सेवा में उन्होंने अनेक ऐसे फैसले दिए, जिनसे लोगों का जीवन बदल गया। आईटी एक्ट की धारा 66 ए को रद्द करने का फैसला उन्हीं का था, जिससे लोगों को सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपनी राय स्वतंत्रता से रखने का मौका मिला। इस धारा के रद्द होने से पुलिस को आपत्तिजनक पोस्ट की शिकायत पर गिरफ्तार करने की शक्ति समाप्त कर दी गई थी। एलजीबीटी अधिकार, निजता को मौलिक अधिकार, तीन तलाक समाप्त करने और मणिपुर में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए लोगों की जांच जैसे फैसले उनके प्रमुख फैसले हैं।

जाने-माने कानूनविद फली नरीमन के बेटे रोहिंटन नरीमन अपने महान पिता की छाया से आगे निकले। अपनी अलग पहचान, अलग छवि बनाई। 13 अगस्त 1956 को जन्में रोहिंटन नरीमन ने वकील और जज के रूप में लगभग 40 साल के करियर में ऐसा बहुत कुछ किया कि लंबे अरसे तक उनकी बात होती रहेगी। बेहद प्रतिभाशाली रोहिंटन के लिए 1993 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एम एन वेंकटचलैया ने नियम बदल दिए थे। तब तक 45 वर्ष की आयु के बाद ही किसी को वरिष्ठ वकील का दर्जा देने का नियम था, लेकिन उन्हें यह दर्जा 37 साल की उम्र में मिला।

कोर्ट और कोर्ट के बाहर उन्हें सपाट और बेबाक बोलने के लिए जाना जाता है। उनके कोर्ट में कोई भी आए, वह सबको बराबर तवज्जो देते हैं। चाहे वह सीनियर वकील हो या जूनियर। मोदी सरकार ने उन्हें 7 जुलाई 2014 को वरिष्ठ वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की संस्तुति की थी। इससे पूर्व वह कांग्रेस नीत यूपीए सरकार में सॉलिसिटर जनरल भी रहे थे लेकिन तत्कालीन कानून मंत्री से मतभेद होने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।

जस्टिस नरीमन के एक फैसले के चलते ही यह व्यवस्था बनी कि मृत्युदंड पाने वाले लोगों की पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में कम से कम आधा घंटा सुनवाई हो। इससे पहले बाकी पुनर्विचार याचिकाओं की तरह इन याचिकाओं पर भी जज बंद कमरे में विचार करते थे। संविधान, न्याय-शास्त्र, साहित्य, संगीत और धर्म के अलावा जस्टिस नरीमन को आर्थिक कानूनों की भी गहरी समझ है। अपने 7 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने तमाम कॉरपोरेट विवादों पर सुनवाई की। बैंकिंग और इंसोल्वेंसी से जुड़े लगभग 100 फैसले उन्होंने दिए।

तेजी से मामलों का निपटारा करने वाले जस्टिस नरीमन के दखल के बाद ही अयोध्या के बाबरी विध्वंस मामले के आपराधिक मुकदमे में तेजी आई। उन्होंने मामले की सुनवाई की समय सीमा तय की। वह लगातार लखनऊ के विशेष जज से मामले में चल रही कार्रवाई का ब्यौरा लेते रहे। आखिरकार, पिछले साल 28 सालों से अटके इस मामले का फैसला आया।

बता दें कि जस्टिस रोहिंटन की शुरुआती शिक्षा मुंबई से हुई, दिल्ली विवि श्रीराम कॉलेज से स्नातक और फिर विधि संकाय से स्नातक किया। जस्टिस रोहिंटन धर्म, दर्शन, इतिहास और विज्ञान में गहरी विशेषज्ञता रखते हैं। प्रतिष्ठित हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम किया। एक वर्ष तक न्यूयॉर्क में ही एक लॉ फर्म के साथ वकालत की।

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