भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पांच साल के कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा लगातार छाया रहा। चाहे वो पीडीपी से गठबंधन करना रहा हो, उससे अलग होना हो, पत्थरबाजी से लेकर आतंकियों से मुठभेड़ की घटनाएं हों, आतंकी हमले हों या अनुच्छेद 370 का मसला हो। भाजपा लगातार संविधान से अनुच्छेद 370 समाप्त करने की बात कहती रही है। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। आज जारी पार्टी के संकल्प पत्र में एक बार फिर यह वादा दोहराया गया है। वहीं, कश्मीर के नेता चुनाव से पहले लगातार इसका विरोध कर रहे हैं। यह विरोध कई बार अलगाववाद की तरफ बढ़ जाता है। हुर्रियत जैसी पार्टियों को अलगाववादी माना जाता है लेकिन कई बार नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी मुख्यधारा की पार्टियों के सुर भी इनसे मिलने लगते हैं। सवाल यह है कि ये नेता ऐसा करते क्यों हैं?
इस तरह के बयानों के जरिए निजी राजनीतिक हित भी छिपे हुए हैं। वह अलगाववादी समूहों से मिल रहे जनाधार को भुनाने के लिए और अपने वोटबैंक को साधने के लिए कई बार ऐसा करते हैं। कई बार वे संविधान और इतिहास का हवाला देते हुए ऐसा करते हैं। इसके दूसरे पहलू भी हैं। कश्मीर के जटिल इतिहास में आर्टिकल 370 ही वह सूत्र माना जाता है, जो जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़े रखता है। आइए नजर डालते हैं, कश्मीर के इन नेताओं के कुछ कथित अलगाववादी बयानों पर-
नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने आज कहा, 'वे समझते हैं कि बाहर से लाएंगे, बसाएंगे। हमारा नंबर कम कर देंगे। हम क्या सोते रहेंगे? हम इसका मुकाबला करेंगे। हम इसके खिलाफ खड़े हो जाएंगे। 370 कैसे खत्म करोगे? अल्लाह की कसम अल्लाह को यही मंजूर होगा कि हम इनसे आजाद हो जाएंगे। मैं भी देखता हूं फिर कि कौन इनका झंडा खड़ा करने के लिए तैयार होता है! ऐसी चीजें मत करो, जिससे तुम हमारे दिलों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हो।'
आग से खेलना बंद करे भाजपा: महबूबा मुफ्ती
वहीं, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर पहले से बारूद के ढेर पर बैठा हुआ है। अगर ऐसा होता है तो न सिर्फ कश्मीर बल्कि देश और क्षेत्र में आग लग जाएगी। इसलिए मैं भाजपा से अपील करती हूं कि आग से खेलना बंद कर दे।'
महबूबा मुफ्ती कई बार कह चुकी हैं कि अगर अनुच्छेद 370 हटा तो हम नहीं कह सकते कि हमारे हाथों में तिरंगा दिखेगा या नहीं। पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को जवाब देते हए उन्होंने अनंतनाग में कहा कि वो जो 370 को खत्म करने की बात कर रहे हैं दरअसल वह दिन में सपना देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्पेशल दर्जा देने वाला यह प्रावधान भारत और घाटी में एक पुल के समान है अगर इस पुल को तोड़ा गया तो हम भारत के साथ रिश्ते को गंवा देंगे।
उमर अब्दुल्ला ने की थी दो प्रधानमंत्री की बात
बीते दिनों ही जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने घाटी के बांदीपोरा में एक रैली को संबोधित करते हुए ने एक अलग वजीर-ए-आजम (प्रधानमंत्री) की मांग की थी। जनता को संबोधित उस भाषण में उमर ने कहा था कि, 'बाकी रियासत बिना शर्त के देश में मिले, पर हमने कहा कि हमारी अपनी पहचान होगी, अपना संविधान होगा। हमने उस वक्त अपने "सदर-ए-रियासत" और "वजीर-ए-आजम" भी रखा था, इंशाअल्लाह उसको भी हम वापस ले आएंगे।'
कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने कुपवाड़ा में एक रैली को संबोधित करते हुए आजाद ने कहा है कि क्या वजह है कि 2014 तक हालात ठीक हो गए थे? क्या वजह है कि 2014 से लेकर आजतक हालात फिर 1990-91 की तरह हुए? उसके लिए अगर कोई एक आदमी जिम्मेदार है, इस देश का प्रधानमंत्री जिम्मेदार है।
अनुच्छेद 370 के बारे में
अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का वह हिस्सा है, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। इसके तहत रक्षा क्षेत्र, विदेश मामलों, वित्त मामलों और संचार को छोड़कर बाकी सभी कामों के लिए संसद को राज्य सरकार की मंजूरी की जरूरत होती है।
जाने-माने विधि विशेषज्ञ और एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर फैजान मुस्तफा कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर की तरह भारत के दूसरे राज्य भी हैं जिन्हें विभिन्न प्रकार का विशेष दर्जा मिला हुआ है। नगालैंड में भी संसद का कोई भी कानून उस वक्त तक लागू नहीं हो सकता जब तक उसकी विधानसभा उसकी सहमति नहीं देती है। यह अधिकार धार्मिक, सामाजिक प्रथाएं, नगावासियों के पारपंरिक कानून और उसके पालन तथा इसी तरह भूमि और उसके संसाधनों के स्वामित्व और उनके हस्तांतरण के लिए मिलता है। यही नहीं, दीवानी और फौजदारी मामले में भी फैसलों का उसके पास विशेष अधिकार है। इसके अलावा एक अहम बात यह है कि ट्येनसांग जिले में नगालैंड विधानसभा द्वारा पारित कानून भी सीधे लागू नहीं होता है। ट्येनसांग मामले को लेकर अलग से एक मंत्री होता है। यानी राज्य में ही कई ऐसे क्षेत्र और जिले हैं जिन्हें ज्यादा स्वायत्तता मिली हुई है। ज्यादा स्वायतत्ता देने से संघीय ढांचा ज्यादा मजबूत होता है। वहीं, केंद्रीकरण ज्यादा होने से पृथकतावादी ताकतों को बढ़ने का मौका मिलता है। नगालैंड की तरह ही असम, मणिपुर, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, सिक्किम आदि राज्यों को भी विशेष दर्जा मिला हुआ है। सिक्किम के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने समझौते तक ही मुद्दे को सीमित रखा है। संघीय ढांचे को बनाए रखने के लिए हमारा संविधान अलग-अलग राज्यों को अलग-अलग तरह की स्वायत्तता प्रदान करता है।
भारत के संविधान को लागू करने के लिए अनुच्छेद 370 का सहारा
फैजान मुस्तफा कहते हैं कि अनुच्छेद 370 में ही अनुच्छेद एक का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारत के राज्यों की फेहरिस्त में जम्मू-कश्मीर को गिनता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने 1964 में लोकसभा में कहा था कि अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान और कानून को कश्मीर में लागू करने का रास्ता है। जवाहरलाल नेहरू ने भी एक बार लोकसभा में स्वीकार किया था कि अनुच्छेद 370 को नरम किया गया है। भारत के संविधान को जम्मू-कश्मीर में लागू करने के लिए अनुच्छेद 370 का 48 बार इस्तेमाल किया गया। जम्मू-कश्मीर पर राष्ट्रपति के आदेशों को लागू करने के लिए भी अनुच्छेद 370 ही एक जरिया है, जिससे राज्य का विशेष दर्जा खत्म होता है। 1954 के एक फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर पर पूरी तरह से भारतीय संविधान को लागू किया जा चुका है, जिसमें संविधान संशोधन भी शामिल हैं। केंद्रीय सूची के 97 में से 94 विषय राज्य पर लागू होते हैं। इसी तरह संविधान के कुल 395 अनुच्छेद में से 260 अनुच्छेद राज्य पर लागू होते हैं। ठीक इसी तह 12 अनुसूचियों में से सात अनुसूचियां भी जम्मू-कश्मीर में लागू होती हैं। इसी तरह कश्मीर के संविधान के ज्यादातर अनुच्छेद भारतीय संविधान के अनुच्छेदों के समान ही बने हुए हैं।
वह कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बने रहने के लिए संविधान राज्य को कुछ स्वायत्तता देता है, जो संघीय भावना को ध्यान में रखते हुए दिया गया है। ऐसे में अनुच्छेद 370 विलय के लिए बनी स्वायत्तता बनाए रखने के खातिर अमल में लाया गया है। जो लोग अनुच्छेद 370 को खत्म करना चाहते हैं उनका जोर एक समान कानून लागू करने पर है, न कि देश की अखंडता बनाए रहने पर।