छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बागेल ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर नोटा विकल्प को खत्म कर देने की बात कही है। बता दें कि नोटा उन मतदाताओं के उपयोग में आता है, जो किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के इच्छुक नहीं हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, 2013 में चुनाव आयोग ने वोटिंग पैनल पर अंतिम विकल्प के रूप में ईवीएम में 'उपरोक्त में से कोई नहीं' या नोटा बटन जोड़ा। नोटा का अपना प्रतीक चिन्ह है - एक मतपत्र जिस पर काला क्रॉस बना होता है।
शनिवार को रायपुर हवाईअड्डे पर पत्रकारों से बातचीत में बघेल ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि कभी-कभी नोटा में जीत-हार के अंतर से ज्यादा वोट पड़ जाते हैं।
यह पूछे जाने पर कि 2018 के राज्य विधानसभा चुनावों में 2 लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा का समर्थन किया था और यह विकल्प चुनावों को कैसे प्रभावित करता है, सीएम ने कहा, "चुनाव आयोग को इस पर संज्ञान लेना चाहिए। कई बार यह देखा गया है कि नोटा को जीत और हार (दो उम्मीदवारों के बीच) के मार्जिन से अधिक वोट मिले हैं।"
उन्होंने कहा कि कई मतदाता यह सोचकर नोटा का बटन दबाते हैं कि या तो उन्हें ऊपर या नीचे वाले पर बटन दबाना है। बघेल ने कहा, "इसलिए नोटा को बंद किया जाना चाहिए।"
गौरतलब है कि 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए 7 और 17 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा। इससे पहले, 2018 के विधानसभा चुनावों में, छत्तीसगढ़ में 76.88 प्रतिशत मतदान हुआ, जिसमें कुल 1,85,88,520 मतदाताओं में से 1,42,90,497 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। तब नोटा को 2,82,738 वोट मिले थे
2019 के लोकसभा चुनावों में, राज्य में 1.96 लाख से अधिक नोटा वोट पड़े, जिसमें 11 संसदीय सीटें हैं। तब नोटा पांच संसदीय क्षेत्रों-बस्तर, सरगुजा, कांकेर, महासमुंद और राजनांदगांव में तीसरे स्थान पर रहा था।
शीर्ष अदालत के आदेश से पहले, जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के इच्छुक नहीं थे, उनके पास चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-ओ (मतदान न करने का निर्णय लेने वाले मतदाता) के तहत अपना निर्णय दर्ज करने का विकल्प था। लेकिन इससे मतदाता की गोपनीयता से समझौता हो गया। ऐसे में ईवीएम पर नोटा बटन मतपत्र की गोपनीयता सुनिश्चित करता है।