“राज्य में जरूरतमंदों को भोजन मुहैया कराने की व्यवस्था पर दलगत राजनीति के आरोप-प्रत्यारोप मगर लोगों को राहत”
राजस्थान में सियासी पारा चाहे जैसा हो, लोकलुभावन योजनाओं को लेकर हर सत्ताधारी दल का रुख एक जैसा है। प्रदेश में पिछली वसुंधरा राजे सरकार ने अन्नपूर्णा रसोई के नाम से योजना शुरू की थी, तो अशोक गहलोत सरकार इंदिरा रसोई स्कीम के साथ आम जनता के बीच पैठ बना रही है। यूं तो देश में कल्याणकारी योजनाएं बरसों से जारी हैं। लेकिन इस दौरान सबसे बड़ी जरूरत उन लोगों को भोजन कराने की नजर आई, जो सम्मान के साथ रियायती दर पर भोजन करने वाले थे। ऐसे में एक नए मॉडल के तौर पर तमिलनाडु की जयललिता सरकार ने करीब दो दशक पहले अम्मा रसोई शुरू की, जो काफी लोकप्रिय हुई। मुनासिब दर पर पौष्टिक भोजन मिलने से न सिर्फ कमजोर तबका, बल्कि वह वर्ग भी लाभान्वित हुआ, जिसके पास ठीक-ठाक हालत के बावजूद मौके पर जरूरी पैसे उपलब्ध न हों। राजस्थान में ऐसी ही अन्नपूर्णा रसोई योजना 15 दिसंबर 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने शुरू की। उसमें पांच रुपये में नाश्ता और आठ रुपये में भोजन की थाली मोबाइल वैन के जरिए दी जाती थी।
सत्ता परिवर्तन के बाद अशोक गहलोत सरकार ने इंदिरा रसोई नाम से योजना शुरू की और प्रदेश के सभी 213 नगरों में 358 रसोई स्थापित की गई। अब इंदिरा रसोई योजना को और विस्तार दिया गया और रसोइयों की संख्या बढ़ाकर 1000 करने की तैयारी है।
वरदान बनी रसोई
वैसे तो इस योजना के तहत वाजिब दर पर भरपेट भोजन सभी को सुलभ हो रहा है, लेकिन सबसे अधिक फायदा विद्यार्थियों, इलाज कराने शहर आए ग्रामीणों, दिहाड़ी मजदूरों को हो रहा है, जिन्हें पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो रहा है। रसोई की उपयोगिता कोरोना काल में महत्वपूर्ण साबित हुई। कोरोना में लॉकडाउन के दौरान जब होटल, ढाबे, रेस्तरां बंद थे, उस दौर में इंदिरा रसोई ने 65 लाख 4 हजार से ज्यादा लोगों को निःशुल्क भोजन उपलब्ध कराया था। पिछले साल अध्यापक पात्रता परीक्षा (रीट ) के दौरान जब प्रदेश में लाखों छात्र एक जिले से दूसरे जिले में परीक्षा देने गए, उस दौरान इंदिरा रसोई के माध्यम से जरूरतमंद छात्रों को निःशुल्क भोजन मुहैया कराया गया।
राज्य की कांग्रेस सरकार के मुखिया अशोक गहलोत ने कोई भूखा न सोए की अवधारणा को आधार मानकर 20 अगस्त 2022 को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की जयंती सद्भावना दिवस के दिन इस योजना को लॉन्च किया। इस योजना के तहत सूबे के 213 शहरी निकायों में 358 स्थायी रसोई घर और 50 एक्सटेंशन काउंटर बनाए गए। संचालन और मॉनिटरिंग के लिए राज्य के 33 जिलों में जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में समन्वय समिति बनाई गई है।
सुबह साढ़े आठ बजे से दोपहर एक बजे तक और शाम को पांच बजे से रात आठ बजे तक आठ रुपये में सम्मानपूर्वक बैठाकर भोजन कराया जाता है। एक भोजन की थाली में 100 ग्राम दाल, 100 ग्राम सब्जी और 250 ग्राम चपाती और आचार शामिल होता है। राज्य के नगर निगम क्षेत्र की रसोई में 300 थाली दोपहर और 300 थाली शाम को जरूरतमंदों को उपलब्ध कराई जाती है। इसी तरह नगरपरिषद और नगरपालिका क्षेत्रों में 150-150 थाली प्रत्येक रसोई से सुबह-शाम मुहैया कराई जाती है। राज्य सरकार इस साल से भोजन की हर थाली पर 17 रुपये अनुदान दे रही है। योजना की शुरुआत के समय अनुदान राशि 12 रुपये प्रति थाली थी। नगरीय विकास विभाग की ओर से संचालित इंदिरा रसोई के प्रभावी संचालन के लिए रसोई के प्रत्येक वाहन को जीपीएस सिस्टम से जोड़ा गया है, जैसे ही कोई भोजन करने वाला व्यक्ति रसोई काउंटर पर जाता है, उसका फोटो खिंच जाता है और तत्काल उसके मोबाइल पर मैसेज भेजा जाता है, जिसमें इंदिरा रसोई में भोजन स्वीकार करने पर उसे धन्यवाद दिया जाता है। नगरीय विकास विभाग के अधिकारियों ने दावा किया कि इससे योजना की पारदर्शिता बनी रहती है और लाभार्थियों की सही संख्या की जानकारी भी मिलती है।
हालांकि इस योजना के नाम को लेकर सियासी बयानबाजी भी खूब हुई। मुख्य विपक्षी दल भाजपा इस योजना को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमलावर रही है। भाजपा नेता शुरुआत से ही इस योजना का कांग्रेसीकरण करने का आरोप लगाते रहे हैं। भाजपा का आरोप है कि पूर्ववर्ती वसुंधरा राजे सरकार के समय शुरू हुई अन्नपूर्णा रसोई स्कीम का नाम बदलकर इंदिरा रसोई करना और उसके स्वरूप में बदलाव करना जन उपयोगी योजना का राजनीतिकरण है।
पूर्व नगरीय विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी का कहना है कि भाजपा सरकार के समय शुरू हुई अन्नपूर्णा रसोई का नाम बदलकर राज्य सरकार ने उसका कांग्रेसीकरण किया है। वे कहते हैं, “पहले अन्नपूर्णा रसोई योजना में चलती फिरती रसोई जरूरी स्थानों जैसे अस्पताल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और गरीब बस्तियों में जाकर भोजन मुहैया कराती थी, लेकिन अब इंदिरा रसोई ऐसे दूरदराज स्थानों पर बनाई गई है, जहां जरूरतमंद तबका आसानी से नहीं पहुंच पाता। अन्नपूर्णा योजना में भोजन के साथ 5 रुपये में लजीज नाश्ता भी मुहैया कराया जाता था, जिसे इंदिरा रसोई स्कीम में बंद कर दिया गया है। ऐसे में जनता को इस योजना का सही लाभ नहीं मिल पा रहा है।”
कांग्रेस नेता भाजपा के आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं और कहते हैं कि भाजपा के पास गिनाने के लिए कुछ नहीं। राज्य के आयुष और तकनीकी शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग कहते हैं कि पहले लोगों को खड़े-खड़े भोजन करना पड़ता था लेकिन अब इंदिरा रसोई में आराम से पंखे, कूलर और रोशनी से युक्त रसोई में भोजन मुहैया कराया जा रहा है। गर्ग ने कहा पहले की योजना जहां एक ही एजेंसी चला रही थी, अब इस योजना का विकेंद्रीकरण हुआ है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन भी हुआ है। इन रसोइयों का संचालन स्वयं सहायता समूह और गैर-सरकारी संगठन कर रहे हैं, इससे स्थानीय लोगों खासकर महिलाओं को रोजगार मिला है। साथ ही फूड क्वालिटी में भी सुधार हुआ है।
योजना के नाम को लेकर जो भी विवाद हों, इसमें शक नहीं कि दलगत राजनीति से इतर आम जनता को इस योजना का लाभ पहुंच रहा है। भले इंदिरा रसोई योजना को लेकर सियासी दल आरोप-प्रत्यारोप में व्यस्त हों, इस योजना को आगे बढ़ाने में समाज सेवी भामाशाहों ने भरपूर योगदान दिया है। अब तक 19 हजार से अधिक भामाशाहों ने अलग-अलग अवसरों पर जरूरतमंदों के लिए निःशुल्क भोजन मुहैया कराया है। कई राज्यों ने पिछले दिनों अपने यहां इंदिरा रसोई की तरह की योजना का लागू करने के लिए राजस्थान मॉडल का अध्ययन करने के लिए अधिकारियों के दल भेजे थे।
गरीबों पर लक्ष्य: इंदिरा रसोई योजना
योजना लॉन्च: 20 अगस्त 2022
उद्देश्य: कोई भूखा न सोS। सुबह-शाम दोनों वक्त 8 रुपये में सम्मानपूर्वक बैठाकर भोजन कराने की व्यवस्था।
मुख्य लक्षित समूह: गरीब, जरूरतमंद तबका।
योजना का विस्तार: राज्य के 213 नगरों में 358 स्थायी रसोई का संचालन (चालू वित्त वर्ष में राज्य में रसोई की संख्या 1000 करने का लक्ष्य, इसके लिए वित्त वर्ष 2022-23 में योजना का बजट बढ़ाकर 250 करोड़ रुपये किया गया)
चालू वर्ष की प्रगति: 1अप्रैल 2022 से जून महीने के अंत तक इंदिरा रसोई योजना में 78 लाख भोजन थाली परोसी गई है। नगरीय विकास विभाग के अनुसार एक हजार रसोई होने पर हर साल 13 करोड़ 81 लाख थाली परोसे जाने का लक्ष्य तय किया गया है।