झारखंड के बेरोजगार युवाओं के लिए यह अच्छी खबर है। नियोजन नीति के तहत कुछ नीतियों में बदलाव लाकर हेमन्त सरकार ने रास्ता निकाला है। कैबिनेट से मंजूरी के बाद झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की संशोधित परीक्षा संचालन नियमावली की अधिसूचना जारी कर दी गई है। मगर इस पर भी सवाल उठने लगे हैं। विपक्ष आक्रामक है तो सहयोगी पार्टी भी सवाल उठा रही है। समय बतायेगा कि हेमन्त सोरेन इस व्यूह रचना से कैसे बाहर निकलते हैं। विभागों में तत्काल कोई एक लाख रिक्त पदों पर नियुक्तियों का रास्ता कैसे निकालते हैं।
युवाओं के कंधे पर पांव रखकर चुनावी नैया पार लगाने की उम्मीद पाले राजनीतिक दलों के लिए नौकरियां और आरक्षण बड़ा मुद्दा रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भी यूपीए ने रघुवर सरकार को घेरने के लिए इसे बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। झारखंड अलग राज्य बने दो दशक से अधिक हो गये मगर स्थानीय कौन, इसका विवाद नहीं सुलझ सका है। स्थानीयता के आधार पर नौकरियों के हक का मामला लगातार विवाद में रहा। 2016 में भाजपा की रघुवर सरकार ने भी एक स्थानीय नीति बनाई मगर विवादों में फंस गई। इस बीच हेमन्त सरकार ने नियुक्ति नियमावली में संशोधन कर बीच का रास्ता निकाल लिया है। वर्ग तीन और चार की नौकरियों में वे आवेदन के हकदार होंगे जिन्होंने यहां के मान्यता प्राप्त संस्थान से मैट्रिक या इंटर की परीक्षा पास की है। यहां की आरक्षण नीति से जो आरक्षित हैं वैसे युवा-युवतियों पर यह लागू नहीं होगा। यानी बाहर भी पढ़ाई की है तो आवेदन के हकदार होंगे। इसके साथ ही पीटी की व्यवस्था खत्म कर दी गई है। टाइपिंग आदि की कुछ और शर्तों में ढील मिली है जिससे रास्ता आसान होगा। बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर सत्ता में आये झामुमो के लिए यह परेशानी का सबब बना हुआ था। वर्ष 2021 को हेमन्त सरकार ने नौकरियों का वर्ष घोषित कर रखा है मगर अवसर नहीं होने के कारण सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर थी।
थमा नहीं है विवाद
लंबे मंथन के बाद आधा दर्जन नियुक्ति नियमावलियों में संशोधन किया गया। मगर विपक्ष ने कमियां ढूंढ ही लीं। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने नई नियुक्ति नियमावली को असंवैधानिक करार देते हुए अदालत में चुनौती देने का एलान किया है। कहा कि इससे झारखण्ड के लोगों को नहीं बल्कि बाहर के लोगों को फायदा मिलेगा। हेमन्त सरकार ने बेरोजगार युवाओं-युवतियों को ठगने का काम किया है। ऐसी नीति बनाई गई है कि किसी भी प्रदेश से आकर झारखण्ड में दसवीं या 12 वीं पास करने वाला नौकरी हासिल करने का हकदार हो जायेगा। असंवैधानिक इस रूप में भी कि हर भाषा होगी मगर हिंदी नहीं होगी। राष्ट्र भाषा हिंदी की उपेक्षा अस्वीकार्य है। हिंदी को परीक्षा की प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। जबकि यहां के अधिसंख्य विद्यार्थी जनजातीय भाषा के बदले हिंदी पढ़़ते हैं। सरकार ने नीति को ही उलझाकर रख दिया है। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने एक साल में पांच लाख नौकरी देने का वादा किया था वह हवा हवाई साबित हुआ। सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय कहते हैं कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है, राष्ट्रीय स्तर पर बोली जाती है। उसी भाषा में बच्चे परीक्षा देते हैं। हिंदी से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। नई नियुक्ति नियमावली में स्थानीय को ज्यादा समाहित किया गया है। आदिवासी, मूलवासी, पिछड़ों, दलितों के ज्यादा से ज्यादा भागीदारी के प्रावधान किये गये हैं। इस नियुक्ति वर्ष में नियुक्ति प्रक्रिया तेज करने के लिए नियमावली में संशोधन किया गया है। आरोप लगाना आसान है। आरोप लगाने वाले पहले पढ़ लें तब प्रमाण पेशकर चुनौती दें। ये आरोप सिर्फ अखबार में सुर्खियां बटोरने के लिए हैं। वहीं झामुमो प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि रघुवर सरकार ने अधिसूचित और गैर अधिसूचित क्षेत्र में बांटकर वर्ग तीन और चार की नियुक्तियों में घालमेल किया था जिसे हेमन्त सरकार ने विराम लगा दिया है। कर्मचारी चयन आयोग की जटिलताओं को दूर किया गया है। भाजपा के लोगों को यह रास नहीं आ रहा। हेमन्त सरकार में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री कांग्रेस के मिथिलेश ठाकुर और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सचिव दीपिका पांडेय सिंह ने हिंदी, मगही, भोजपुरी और अंगिका, मैथिली को भी राज्य की क्षेत्रीय भाषाओं में शामिल करने की मांग कर दी है। कहा है कि इसके अभाव में युवाओं में घोर निराशा है। नियमावली में संशोधन के बाद मैट्रिक और इंटर आधारित नियोजन नीति को रद करने, संविता के बदले नियमित नियुक्ति आदि मांग को लेकर झारखंड यूथ एसोसिएशन, जेपीएससी, जेएसएससी, पंचायत सचिव, होमगार्ड, डिप्लोमा संघ सहित 24 अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े युवाओं ने संयुक्त रूप से 10 अगस्त को रांची में विरोध प्रदर्शन किया।
हिंदी के सवाल पर हेमन्त सरकार की सहयोगी कांग्रेस भी गंभीर है। जानकारी के अनुसार प्रदेश प्रभारी ने इसे गंभीरता से लिया है और प्रदेश अध्यक्ष को इस पर विचार के लिए कमेटी बनाने को कहा है। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि कोई कमी होगी तो उस पर पुनर्विचार किया जा सकता है। मुख्यमंत्री और कैबिनेट के पास अधिकार है। हिंदी और कुछ भाषाओं को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं। पार्टी हिंदी को लेकर गंभीर है। हमारे विधायकों ने भी क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर ध्यान आकृष्ट किया है। पार्टी इसे देखेगी। विधि मामलों के जानकार भाजपा प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि उर्दू तो क्षेत्रीय भाषा भी नहीं है मगर उसे स्थान दिया गया और हिंदी को बाहर कर दिया गया। यह राजभाषा का अपमान है। सरकार बहुसंख्यक विरोधी मानसिकता के साथ काम कर रही है। 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता की बात करने वाली पार्टी ने दूसरे प्रदेशों के लोगों के लिए भी दरवाजा खोल दिया है।
विवाद का आधार
बता दें कि नियुक्ति नियमावली संबंधी प्रस्ताव पर विधि विभाग ने भी अपना विरोध जाहिर किया था। लिखा था कि ''यह मामला भारत के संविधान के अनुच्छेद-16 (2) से प्रभावित है। प्रस्तावित संशोधन के बाद अन्य निकटवर्ती राज्यों में शिक्षा प्राप्त कर रहे अभ्यर्थियों को राज्य के तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की रिक्तियों में आवेदन में बाधा उत्पन्न होगी एवं भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 एवं 16 का उल्लंघन प्रतीत होता है।'' मगर महाधिवक्ता ने आपत्ति पर असहमति जता दी। तर्क दिया कि हिमाचल प्रदेश में वर्ग तीन एवं चार के पदों पर नियुक्ति की नियमावली -19 में इसी तरह का प्रावधान है। विपक्षी दलों को आपत्ति है कि पत्र-1 हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा ज्ञान में प्राप्त अंकों को जोड़कर 30 प्रतिशत क्वालिफाइंग मार्क्स होगा मगर ये अंक मेरिट लिस्ट निर्धारण के लिए नहीं जोड़े जायेंगे। मगर पत्र दो में क्षेत्रीय/ जनजातीय भाषा में 30 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य होगा। 2015 की झारखंड कर्मचारी चयन आयोग परीक्षा (स्नातक स्तर) संचालन नियमावली में पत्र दो में हिंदी/अंग्रेजी/उर्दू/संथाली/बंगला/मुंडारी/हो/खड़िया/कुड़ुख/कुरमाली/खोरठा/नागपुरी/पंचपरगनिया/उड़िया शामिल थे। 2016 में इसमें संस्कृत को भी शामिल कर दिया गया। अब पत्र दो में से हिंदी, अंग्रेजी के साथ संस्कृत को भी गायब कर दिया गया है।
रघुवर सरकार की स्थानीय नीति
भाजपा की रघुवर सरकार के समय 2016 में झारखंड की स्थानीय नीति को परिभाषित किया गया था। उसके अनुसार 1985 और उससे पहले से राज्य में रहने वालों को स्थानीय माना जायेगा। इस अवधि में यहां निवा कर अचल संपत्ति अर्जित की हो या ऐसे व्यक्ति की पत्नी, पति या संतान हो, झारखंड में कार्यरत भारत सरकार के कर्मी, उनकी पत्नी-पति, संतान या राज्य सरकार अथवा उसके द्वारा संचालित या मान्यता प्राप्त संस्थानों, निगमों आदि में नियुक्ति एवं कार्यरकत कर्मी के पति-पत्नी या संतान को स्थानीय माना जायेगा। ऐसा व्यक्ति जिसका जन्म झारखंड में हुआ हो और मैट्रिक या समकक्ष स्तर की शिक्षा झारखंड में स्थित मान्यता प्राप्त संस्थान से पूर्ण की हो, को स्थानीय माना जायेगा। ऐसे में वर्ग तीन और चार की नौकरियों में इन्हें लाभ होगा। मगर 1932 के खतियान आदि को लेकर विवाद शुरू हो गया था।