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झारखंड: हेमंत की 'वोट पिच' पर राज्‍यपाल का बाउंसर, इन वजहों से राजभवन और सरकार में बढ़ रहा टकराव

राज्‍यपाल रमेश बैस और मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन के बीच बढ़ते फासले का रिश्‍ता अब तीखा होता जा रहा...
झारखंड: हेमंत की 'वोट पिच' पर राज्‍यपाल का बाउंसर, इन वजहों से राजभवन और सरकार में बढ़ रहा टकराव

राज्‍यपाल रमेश बैस और मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन के बीच बढ़ते फासले का रिश्‍ता अब तीखा होता जा रहा है। झारखंड में विधानसभा चुनाव में अभी तीन साल है मगर मुख्‍यमंत्री हेमन्‍त सोरेन के अनेक फैसले वोटों के ईर्दगिर्द हैं। आधारभूत संरचना निर्माण के बदले वोटरों को लुभाने वाले फैसलों के चौके-छक्‍के वे ज्‍यादा लगा रहे हैं। इधर राज्‍यपाल के बाउंसर ने उनकी रन रेट को धीमा कर दिया है। पिछले जुलाई में झारखंड के राज्‍यपाल का पद ग्रहण करने के बाद से रमेश बैस रेस हैं।

ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी (टीएसी) की नियमावली पर आपत्ति के बाद राजभवन ने ट्राइबल यूनिवर्सिटी यानी पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विवि विधेयक को भी आपत्तियों के साथ वापस कर दिया है। बीते विधानसभा सत्र में 23 दिसंबर को हेमन्‍त सरकार ने देश के दूसरे ट्राइबल यूनिवर्सिटी के संबंध में प्रस्‍ताव पास कराकर आदिवासी वोटों पर चारा फेंका था। विधेयक पर पक्ष रखते हुए मुख्‍यमंत्री ने कहा था कि अनेक राज्‍यों ने अपनी भाषा संस्‍कृति को संरक्षण दिया है उसी को ध्‍यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है। इसमें जनजातीय समाज विज्ञान, भाषा, संस्‍कृति, कला और वन आधारित आर्थिक गतिविधियों आदि के अध्‍यापन, शोध की गुंजाइश देखी गई। अभी स्‍थानीय भाषा को लेकर झारखंड में गहरा विवाद चल रहा है जिसे वोट की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। बहरहाल राजभवन की आपत्ति है कि विधेयक के अंग्रेजी और हिंदी प्रारूप में फर्क है। दस बिंदुओं पर विसंगति को लेकर राजभवन की आपत्ति है। राजभवन की आपत्ति के बाद जमशेदपुर में खुलने वाले इस विवि की गतिविधियों पर तत्‍काल विराम लग गया है।

इसके पहले राजभवन ने ट्राइबल एडवाजरी काउंसिल के गठन संबंधी नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए राज्‍य सरकार को वापस कर दिया था। विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद राज्‍यपाल से इसे राज्‍य सरकार को वापस किया था। संशोधित नियमावली में सदस्‍यों के मनोनयन संबंधी राज्‍यपाल के अधिकार में कटौती कर दी गई है। राजभवन की दलील है कि टीएसी में कम से कम दो सदस्‍यों का मनोनयन राज्‍यपाल के स्‍तर से होना चाहिए। पूर्व राज्‍यपाल द्रौपदी मुर्मू के कार्यकाल में ही नियमावली में संशोधन हुआ था। इस मुद्दे पर द्रौपदी मुर्मू का भी राज्‍य सरकार के साथ विवाद था। द्रौपदी मुर्मू ने टीएसी के दो सदस्‍यों के आचरण प्रमाण पत्र की तलब की और फाइल वापस कर दी तो राज्‍य सरकार ने नियमावली में ही परिवर्तन कर दिया। उन्‍होंने इसकी फाइल राजभवन मंगाई थी मगर कोई टिप्‍पणी करतीं उसके पहले ही रमेश बैस राज्‍यपाल बन गये। राज्‍यपाल ने टीएसी नियमावली में संशोधन से राष्‍ट्रपति भवन को भी अवगत करा चुके हैं। राज्‍यपाल ने टीएसी की संशोधित नियमावली को ही असंवैधानिक करार दिया है। ऐसे में टीएसी के निर्णयों, गतिविधियों पर भी सवाल है। सरकार में सहयोगी कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्‍यक्ष और टीएसी के सदस्‍य बंधु तिर्की की भी राय है कि राज्‍य सरकार को टीएसी पर राज्‍यपाल की सलाह को मान लेना चाहिए।

जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्‍ताव विधानसभा से पारित हुए एक साल से अधिक हो चुका है। राज्‍य सरकार ने टीएसी के माध्‍यम से इसे राज्‍यपाल के पास भेजा था। जाहिर है इस पर भी राज्‍यपाल का रुख सहज नहीं होगा। और धर्म कोड का मामला जाहिर तौर पर जनजातीय वोटों को लेकर बड़ा एजेंडा है। ट्राइबल यूनिवर्सिटी, आदिवासी धर्म कोड और टीएसी की तरह मॉब लिंचिंग एक्‍ट भी हेमन्‍त सरकार के लिए महत्‍वपूर्ण एजेंडा है। पूर्ववर्ती भाजपा की रघुवर सरकार को मॉब लिंचिंग को लेकर झामुमो सहित विपक्षी आक्रमण कर रहे थे। झारखंड विधानसभा ने बीते 21 दिसंबर को इसे पास किया। मगर लगभग दो माह बाद यह राजभवन पहुंचा। राज्‍यपाल रमेश बैस की नजर इस पर भी टेढ़ी है। राजभवन अभी इसका अध्‍ययन कर रहा है। राजभवन के अनुसार राज्‍यपाल विधि विशेषज्ञों से राय के बाद ही इस पर निर्णय करेंगे। बता दें कि भाजपा ने विधानसभा में इसे प्रावधानों का विरोध करते हुए काला कानून बताकर वाकआउट किया था, बाद में राज्‍यपाल से मिलकर इसे असंवैधानिक बताते हुए इसे मंजूरी नहीं देने का आग्रह किया था। राज्‍यपाल रमेश बैस लगातार सक्रियता दिखा रहे हैं। सिमडेगा में पिछले माह मॉब लिंचिंग में एक युवक की हत्‍या के बाद राज्‍यपाल ने पुलिस महानिदेशक को राजभवन तलब किया था। विश्‍वविद्यालयों में रिक्‍त पड़े पदों को लेकर इसी माह झारखंड लोक सेवा आयोग के अध्‍या को बुलाकर नाराजगी जाहिर की थी और मार्च महीने तक इनकी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया। आपत्ति इस बात पर भी थी कि आयोग रिक्‍त पदों पर प्रभार के लिए तीन नामों का पैनल भेजने के बदले सिर्फ एक नाम भेज देता है। सिविल सेवा परीक्षाओं के विवाद और उठे सवाल पर भी बिंदुवार जवाब मांगा था। उत्‍पाद नीति को लेकर भी फाइल मांगी थी। आये दिन राज्‍यपाल अधिकारियों को तलब कर फाइलें भी मांगते हैं। जाहिर है उनकी अति सक्रियता राज्‍य सरकार को रास नहीं आ रही। फासले बढ़ रहे हैं। राज्‍यपाल के अधिकार को लेकर भी अंदरखाने में आवाज उठ रही है।

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