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लो वोटिंग टर्नआउट: क्या हैं इसके मायने, किसे होने जा रहा है फायदा?

साल 1952 में पहली बार भारतीय नागरिकों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर मिला। चुनाव इस बात को लेकर...
लो वोटिंग टर्नआउट: क्या हैं इसके मायने, किसे होने जा रहा है फायदा?

साल 1952 में पहली बार भारतीय नागरिकों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर मिला। चुनाव इस बात को लेकर था कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा। चुनाव इस बात को लेकर भी था कि गुलामी के चंगुल से हाल ही में बाहर निकले देश की कमान किसे सौंपी जाए? देश की जनता ने तब पंडित जवाहरलाल नेहरू को अपना पहला प्रधानमंत्री चुना था। भारत के पहले आम चुनाव में करीब 17 करोड़ लोगों ने हिस्सा लिया था, जिसमें से 85 फीसदी लोग पढ़-लिख भी नहीं सकते थे। इतनी व्यापक निरक्षरता के बावजूद 45 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और देश की पहली सरकार चुनी।

ठीक 72 साल बाद अब देश 2024 में 18वीं लोकसभा के लिए मतदान कर रहा है। ऐसे में यह तय है कि इन 72 सालों में कई मापदंडों पर देश की स्थिति बदली है। निरक्षरता की दर से लेकर देश की जनसंख्या तक- सभी क्षेत्रों में व्यापक बदलाव हुआ है। इस बार चुनाव 7 चरणों में हो रहा है। पहले तीन चरण के मतदान पूरे हो चुके हैं और 4 चरणों के चुनाव अभी बाकी हैं। पीएम मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं, जबकि कांग्रेस अपने एक दशक पुराने वनवास को खत्म करने की पूरी कोशिश कर रही है। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में वह उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है, जिसकी सबको उम्मीद थी।

लोकसभा चुनाव 2024 के पहले 3 चरणों के मतदान प्रतिशत की तुलना अगर 2019 के लोकसभा चुनाव के मतदान प्रतिशत के साथ करें तो ये पता चलता है कि इस बार वोटिंग के लिए लोग घर से बाहर कम निकल रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा क्यों और इसका लोकसभा चुनाव 2024 के अंतिम नतीजों पर क्या असर हो सकता है?

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक नवीन जोशी आउटलुक से कहते हैं कि मतदान प्रतिशत में आई कमी का मुख्य कारण एंटी इनकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर है। जोशी कहते हैं, “साल 2014 में एक लहर चल रही थी और नरेंद्र मोदी जनता की उम्मीद बनकर आए थे। वहीं 2019 में उन्होंने देश से बड़ा मेंडेट मांगा क्योंकि लोगों ने बदलाव महसूस किया था। हालांकि 2024 के चुनाव में एंटी इनकंबेंसी दिख रही है। मोदी या भाजपा के पक्ष में उतनी जोरदार लहर नहीं है। आमतौर पर एंटी इनकंबेंसी में विपक्ष को फायदा होता है लेकिन इस चुनाव में ऐसा नहीं है। इसका बड़ा कारण यह हो सकता है कि लोगों को विपक्ष के भीतर विकल्प नहीं दिख रहा है। स्थानीय स्तर पर जो उम्मीदवार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं वहां का मतदान प्रतिशत भी बेहतर है।”

चुनाव आयोग के रिपोर्ट के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में पहले चरण में 69.96 प्रतिशत मतदान हुए थे जबकि 2024 में ये आंकड़ा कम होकर 66.14 प्रतिशत पर आ गया। वहीं 2019 के दूसरे और तीसरे चरण में क्रमशः 70.09 और 66.89 प्रतिशत मतदान हुए थे जो 2024 में घटकर 66.71 और 62.20 प्रतिशत हो गए। हालांकि वोटिंग प्रतिशत में इस गिरावट का कारण क्या है? सभी पार्टियां इसका मतलब अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से निकाल रही हैं।

चुनाव आयोग के मतदान प्रतिशत से जुड़े हालिया आंकड़ों से यह पता चलता है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे हिंदी भाषी राज्यों में 2019 के चुनाव के तुलना में कुछ हद तक मतदान में गिरावट देखी गई है। 

शुरूआती चरणों में कम मतदान प्रतिशत को देखते हुए चुनाव आयोग ने कहा, “हमने दो चरण के मतदान में मामूली गिरावट को देखते हुए मतदान भागीदारी हस्तक्षेप को बढ़ा दिया है।” वहीं कुछ जानकारों का कहना है कि मतदान प्रतिशत में कमी का एक कारण 'हीटवेव' भी हो सकता है। हालांकि चुनाव आयोग ने हीटवेव को कारण मानने से इंकार करते हुए कहा, “आयोग पहले ही आईएमडी के शीर्ष विशेषज्ञ, स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों के साथ हीटवेव के मद्देनजर मीटिंग कर चुकी है। ये चिंता का विषय नहीं है।”

हीटवेव को लेकर मतदान में कमी की बात पर नवीन जोशी ने कहा, “व्यक्तिगत तौर पर मुझे नहीं लगता कि मतदान प्रतिशत में कमी का बड़ा कारण हीटवेव है। 2014 के चुनाव में मतदान प्रतिशत काफी अच्छा था लेकिन वो चुनाव भी मई में कराई गई थी। कई जगहों पर देखा गया है कि शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में मतदान की प्रतिशत अधिक रही है। जबकि हीटवेव का सबसे ज्यादा असर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है।” वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार कम मतदान प्रतिशत का एक कारण प्रवासी मजदूरों का घर से दूर रहना है। 2011 के जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश और बिहार से लगभग 2 करोड़ लोग पलायन कर चुके हैं। उनके लिए चुनाव के वक्त मतदान करने के लिए वापस राज्य जाना संभव नहीं हो पाता है।

नवीन जोशी के अनुसार कम मतदान प्रतिशत का असर लोकसभा के परिणाम पर पड़ सकता है। जोशी ने कहा, “तीन चरणों के चुनाव को देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि विपक्ष के हाथ में थोड़ी ज्यादा सीट आ सकती है। इसका मुख्य कारण मोदी के लुभावने कार्य का जनता पर भारी प्रभाव नहीं पड़ना हो सकता है।” उन्होंने आगे कहा, “राम मंदिर वोट में तब्दील नहीं हो रहा है। क्योंकि राम मंदिर को लेकर विपक्ष की भी भक्ति है। मंदिर एक सर्वमान्य मुद्दा है। इसीलिए राम मंदिर वोट कमाऊ काम नहीं कर पाया है। जिसका नुकसान भाजपा को हो सकता है।”

बहरहाल, मतदान प्रतिशत में गिरावट का क्या मतलब है, यह तो भविष्य में है, लेकिन हकीकत यह भी है कि सभी पार्टियां इसे लेकर अपना-अपना गणित लगा रही हैं और 4 जून को यह साफ हो जाएगा किसकी गणना सही रही है।

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