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मध्य प्रदेश: आदिवासी वोट पर नजर

प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए सत्तारूढ़ भाजपा ने आदिवासियों पर अपना फोकस तेज कर दिया है,...
मध्य प्रदेश: आदिवासी वोट पर नजर

प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए सत्तारूढ़ भाजपा ने आदिवासियों पर अपना फोकस तेज कर दिया है, ताकि 2018  की तरह उसे बहुमत से दूर न रह जाना पड़े। यूं तो भाजपा पूरे देश में जनजाति समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए कई तरह के आयोजन कर रही है, लेकिन मध्य प्रदेश में सबसे अधिक करीब 21.1 फीसदी आबादी के चलते उसकी विशेष अहमियत है, जिनका रुझान ज्यादातर कांग्रेस की ओर रहा है। सो, आदिवासियों पर डोरे डालने की कोशिशें भाजपा के शिखर नेतृत्व की ओर से जारी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मन की बात' कार्यक्रम में भील जनजाति की प्राचीन पद्धति हलमा की तारीफ करते हैं। उसके कुछ दिन पहले गृह मंत्री अमित शाह भोपाल में आदिवासियों के विशाल सम्मेलन में शामिल हुए। पिछले वर्ष नवंबर में बिरसा मुंडा की जयंती पर विशाल जनजातीय सम्मेलन हो चुका है, जिसमें खुद प्रधानमंत्री मोदी शामिल हुए थे। केंद्र सरकार ने बिरसा मुंडा के जयंती दिवस (15 नवंबर) को जनजाति गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।

इन विशाल आयोजनों के अलावा राज्य में जिला स्तर पर लगातार आयोजन का सिलसिला चल रहा है। राज्य सरकार ने आदिवासी क्रांतिकारी टंट्या भील के बलिदान दिवस पर 4 दिसंबर को पाताल पानी (महू) में बड़ा आयोजन किया था।

दरअसल आजादी के बाद से लगातार आदिवासी वोट कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक के रूप में माना जाता रहा है। मध्य प्रदेश में तो कांग्रेस के जनाधार में उनका बड़ा योगदान है। राज्य में 2018 में कांग्रेस की सरकार बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इसी वोट बैंक में अब भाजपा सेंध लगाने में जुटी हुई है। आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उनमें 34 सीट ही जीत पाई थी, जबकि 2013 में उसे 59 सीटों पर जीत मिली थी। यानी 2018 में पार्टी को 25 सीटों का नुकसान हुआ था। इससे भी बढ़कर यह कि जिन सीटों पर आदिवासी जीत और हार तय करते हैं, उनमें भाजपा सिर्फ 16 सीटें ही जीत पाई। यानी 2013 की तुलना में 18 सीटें कम।

हालांकि भाजपा का आदिवासी अभियान केवल मध्य प्रदेश तक सीमित न होकर देश भर में चलाया जा रहा है। भाजपा का प्रयास है कि आदिवासियों को सभी राज्यों में अपने साथ जोड़ा जाए। ज्यादातर राज्यों में आदिवासी कांग्रेस को ही वोट करते रहे है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लंबे समय से उनके बीच काम करता रहा है। संघ की कोशिश यह रही है कि उन्हें हिंदू धर्म की ओर लाया जाए और बाकी धर्मों में उनका धर्मांतरण न होने पाए। आदिवासी भाजपा के साथ आते हैं तो मध्य प्रदेश में भाजपा की वोट हिस्सेदारी पचास फीसदी तक पहुंच सकती है। पिछले चुनाव में हार के बावजूद भाजपा को 42 फीसदी वोट मिले थे, जो कांग्रेस से ज्यादा थे।

यही वजह है कि राज्य सरकार ने आदिवासियों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है। जनजातीय समाज की शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका और उनके अधिकारों के लिए पंचायत एक्सटेंशन टु शेड्यूल एरिया यानी पेसा एक्ट लागू की है। इसके अंतर्गत पेसा ग्राम सभाओं का गठन होगा, जो खुद अपने लिए योजनाएं बनाएंगी। राशन आपके द्वार योजना के तहत घर-घर राशन पहुंचाया जाएगा। यही नहीं, जनजातीय समाज में व्याप्त सिकल सेल एनीमिया के उन्मूलन के लिए अभियान चलाया गया है। इस समाज के बच्चों के लिए जेईई तथा नीट परीक्षाओं के लिए फाउंडेशन कोर्स और स्मार्ट क्लास शुरू करने की घोषणा की गई है।

उधर, कांग्रेस ने अपना वोट बैंक बचाने के लिए आदिवासियों से सीधे संवाद का कार्यक्रम शुरू किया है। राज्य में कांग्रेस प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं, “कांग्रेस ने हमेशा ही आदिवासियों के विकास और उनकी मूल संस्कृ‌ति को बचाने के लिए काम किया है। आज भाजपा सरकार जिस पेसा एक्ट को प्रभावी बनाने की बात कर रही है, वह कानून भी कांग्रेस सरकार बनाया और अमल किया है। भाजपा केवल भ्रम फैला रही है।” पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, “शिवराज सिंह चौहान को वर्षों बाद आदिवासी याद आ रहे हैं। मुख्यमंत्री अपने शासन काल में आदिवासियों के लिए किए गए कामकाज पर श्वेत पत्र जारी करें।” लेकिन भाजपा प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं, “भाजपा हमेशा से सभी वर्गो को समान महत्व देती है। तुष्टीकरण की राजनीति तो कांग्रेस करती रही है।”

राजनीति के जानकारों का मानना है कि आदिवासियों में जनाधार बढ़ाने के भाजपा के अभियान का असर 2023 के चुनावों में देखने को मिल सकता है।

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