उत्तराखंड की राजनीतिक उथल-पुथल का प्रभाव बंगाल पर भी पड़ सकता है। उत्तरखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने 11 दिनों के कार्यकाल के भीतर ही अपना इस्तीफा दे दिया। रावत ने विधानसभा के सदस्य न होते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उसी तरह से ममता बनर्जी भी नंदीग्राम से पराजित होने के बावजूद भी मुख्यमंत्री बनी हैं। ऐसे में कोरोना महामारी के मद्देनजर यदि छह माह के अंदर विधानसभा उपचुनाव नहीं हुए हैं, तो बंगाल में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है। लेकिन अब ममता बनर्जी एक दांव चलने की तैयारी में है जिससे इसका समाधान निकल सकता है।
दरअसल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्ती ममता बनर्जी विधानसभा में राज्य में विधान परिषद बनाने का प्रस्ताव पेश कर सकती हैं। बता दें कि ममता बनर्जी ने बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान विधान परिषद का गठन करने का वादा किया था। वहीं बंगाल में 2 जुलाई से विधानसभा का सत्र शुरू हुआ है।ऐसे में ममता बनर्जी विधानसभा में विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव पेश कर सकती हैं।
बंगाल में विधानसभा की 294 सीटें हैं और यदि विधान परिषद का गठन होता है तो उसमें 98 सीटें हो सकती हैं। क्योंकि विधान परिषद की सीटों के संख्या विधान सभा की सीटों की संख्या से एक तिहाई से अधिक नहीं हो सकती।
सूबे में 5 दशक पहले विधान परिषद थी, मगर बाद में इसे समाप्त कर दिया गया था। स्वतंत्रता के बाद 5 जून 1952 को बंगाल में 51 सदस्यों वाली विधान परिषद का गठन किया गया था। बाद में 21 मार्च 1969 को इसे समाप्त कर दिया गया था। लेकिन 2011 में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की सत्ता में आते ही विधान परिषद के गठन का वादा किया था।
लेकिन माना जा रहा है कि ममता बनर्जी भले ही विधानसभा में विधान परिषद बनाने का प्रस्ताव पेश कर दें, पर उसके बाद भी एक कठिनाई आएगी। विधानसभा में प्रस्ताव पास होने के बाद इसे संसद के दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्यसभा से बहुमत से पारित कराना होगा। इस प्रकार विधानसभा परिषद का गठन केंद्र की मोदी सरकार की सहमति के बगैर नहीं हो सकता।