भाजपा का अध्यक्ष बनने के बाद हरिय़ाणा और झारखंड में पार्टी की जीत से उनकी सांगठनिक क्षमता रेखांकित हुई। लेकिन बिहार और दिल्ली की हार अमित शाह का लिए एक बड़ा झटका था। यूपी के नतीजे के ठीक पहले तक बिहार का खौफ भाजपा और अमित शाह तो सताता रहा। कहीं यूपी में भी बिहार जैसा हश्र ने हो जाए।
यूपी में पार्टी का वनवास खत्म करने के लिए भाजपा नेतृत्व ने कई पापड़ बेले थे लेकिन सारी कोशिशें असफल रही। राजनाथ सिंह के दो बार भाजपा का अधयक्ष बनने के बाद भी यूपी में भाजपा की दाल नहीं गल पाई। एक समय वित्त मंत्री अरुण जेटली को एक बड़ा रणनीतिकार माना जाता था । उन्हें एक चुनाव के पहले अरुण जेटली को यूपी का प्रभारी बनाया गया था। लेकिन वे भी असफल साबित हुए।
लेकिन यूपी में अमित शाह की मेहनत रंग लाई। शाह ने यूपी में खूब पसीना बहाया। चुनाव के बहुत पहले से वे यूपी में ही जमे रहे, टस से मस नहीं हुए। टिकट बंटवारे को लेकर थोड़ा असंतोष जरूर उभरा था लेकिन शाह उसे शांत करने में भी सफल रहे। यूपी चुनाव की जीत के बाद अब वे पार्टी के सिरमौर हो गए। गैर जाटव व गैर यादव पिछड़ों को गोलबंद करने में उनकी बड़ी भूमिका मानी जा रही है।