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अशोक सिंहल को तोहफे में राम मंदिर देने की मांग

विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंहल को महात्मा घोषित कर देना चाहिए और तोहफे के रूप में उन्हें राम मंदिर भेंट करना चाहिए। दिल्ली के खचाखच भरे सिविक हॉल में जब संत समाज की ओर से यह मांग उठी तो ‘ जय श्री राम, भारत माता की जय ’ के जयघोष गूंजने लगे। मौका था अशोक सिंहल के 90वें वर्ष में प्रवेश करने पर आयोजित भव्य कार्यक्रम का। इस कार्यक्रम में एक बात साफ हो गई कि संत समाज समेत विश्व हिंदू परिषद में अभी भी राम मंदिर की उम्मीद कायम है।
अशोक सिंहल को तोहफे में राम मंदिर देने की मांग

इस मौके पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्रियों समेत बड़ी तादाद में संत समाज के साधु-संत उपस्थित थे। यही नहीं आरएसएस से जुड़े महेश भागचंद कि लिखी ‘हिंदुतत्व के पुरोधा’ नामक किताब का लोकापर्ण भी किया गया। इस किताब को अशोह सिंहल के जीवन का ग्रंथ बताया गया। किताब का लोकापर्ण राष्ट्रीय स्वयं सेवक के प्रमुख मोहनराव भागवत, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, राघव रेड्डी, स्वामी सत्यमित्रानंद के हाथों हुआ।

 

इस किताब के 15 अध्यायों में सिंहल के बाल्यावस्था से लेकर तपस्वी जीवन तक की गाथा है। बताया गया है कि किस प्रकार संपन्न परिवार से होते हुए भी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से माइनिंग में इंजीनियरिंग करने के बावजूद सिंहल ने पारिवारिक सुख त्याग अपना अलग रास्ता चुना। वह 65 वर्ष तक आरएसएस के प्रचारक रहे। कार्यक्रम में उन्हें हिंदुतत्व के पुरोधा बताते हुए आरएसएस प्रमुख मोहनराव भागवत ने कहा कि आरएसएस में इस प्रकार जन्मदिन मनाने की न तो रवायत है और न ही आगे मनाया जाएगा लेकिन अशोक सिंहल का जन्मदिन इसलिए मनाया जा रहा है कि देश की आजादी से लेकर इन्होंने देश में हिंदुतत्व, धर्मांतरण के खिलाफ, गो रक्षा, घर वापसी और राम मंदिर को लेकर जो आंदोलन किया है वह हिंदू इतिहास में अमर रहेगा। ऐसी विभूतियों के जन्मदिवस मनाए ही जाते हैं। जहां तक इनपर किताब की बात है तो आने वाली पीढ़ियों को पता होना चाहिए कि अशोक सिंहल ने हिदुंतत्व के लिए क्या योगदान दिया है। 

 

सिंहल का जन्म 1926 में आगरा में हुआ। उन्होंने बाकयदा संगीत की शिक्षा भी ली थी। साधु-संतों से जुड़े रहे। सिंहल के जन्मदिन के मौके पर संत समाज के बहुत से साधु-संत भी मंच पर मौजूद थे। संत समाज से किसी संत ने कहा कि महात्मा गांधी को तो महात्मा कहा गया, ठीक था लेकिन अशोक सिंह को 60 वर्ष की आयु में ही महात्मा कहा जाना शुरू कर दिया जाना चाहिए था। संत समाज से ही साफ शब्दों में यह भी कहा गया कि सिंहल के 90वें वर्ष में प्रवेश करने के मौके पर उन्हें राम मंदिर दिए जाने से बेहतर तोहफा क्या होगा। 

 

इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि उम्र के इस पड़ाव पर भी अशोक सिंहल जिस प्रकार धाराप्रवाह बोलते हैं तो उनके चेहरे पर वही राम मंदिर आंदोलन वाले दिनों का ओज और प्रभाव रहता है। अशोक सिंह को सुनने के लिए हर कोई बेताब था। उन्होंने कहा कि वह किसी कीमत पर नहीं चाहते थे कि उनका जन्मदिन मनाया जाए। यहां तक कि उन्होंने अधिकारियों से मना किया कि यह हमारी परिपाटी नहीं है लेकिन जब ऊपर से स्वीकृति आ गई तो मैं मौन हो गया। 

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