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बिहारः अपनों की शूटिंग के मारे दोनों पक्ष

बिहार में आपसी फूट और भितरघात का चुनाव समर में बोलबाला, जातीय-सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर टिकी निगाहें
बिहारः अपनों की शूटिंग के मारे दोनों पक्ष

बिहार की धरती का बल है कि इन विधानसभा चुनावों में उसने इतनी खींचतान पैदा कर दी है कि पहले चरण की वोटिंग के लिए कमर कसते राजनीतिक दलों को ही ये नहीं पता है कि उनका कौन सिपाही पार्टी पर ही गोला दाग देगा। आपसी फूट-कलह और भितरघात की मार अकेली भारतीय जनता पार्टी पर ही नहीं पड़ी है, इससे पीड़ित जनता दल यूनाइनेट के नेतृत्व वाला महागठबंधन भी है और समाजवादी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और जनाधिकार पार्टी के गठबंधन में भी असंतोष की लहरें हैं। भाजपा गठबंधन में शामिल रामविलास पासवान और जीतन मांझी के दलों में भी टिकट बंटवारे को लेकर घमासान मचा हुआ है। इस समय कोई दल यह कहने की स्थिति में नहीं है कि उसके यहां बागी कितने हैं और उनसे उनके कितने वोट प्रभावित होंगे। लिहाजा, विरोधियों पर निशाना साधने से ज्यादा समय घरातियों को साधने में लग रहा है।

टिकट बंटवारे में घमासान यूं तो हर पार्टी में ही मचा है लेकिन सबसे बुरी फंसान भाजपा की हुई है। भाजपा के सांसद और पूर्व गृह सचिव आर.के. सिंह ने जिस तरह खुलेआम पार्टी नेतृत्व पर टिकट बेचने का आरोप लगाया, उससे पार्टी को गहरा धक्का लगा। उन्होंने सीधे सुशील मोदी और सुशील मोदी के बहाने भाजपा अध्यक्ष पर निशाना साधा है कि अपराधियों को टिकट बेचे जा रहे हैं। आर.के सिंह के इस विस्फोट से बिहार के ठाकुर वोटों पर असर पड़ा है। अभी तक राजपूत भाजपा की तरफ गोलबंद माने जा रहे थे, लेकिन आर.के. सिंह ने जिस वेदना के साथ बातें खुलकर रखी हैं, उससे लगता है कि इस वोट बैंक में दरार पड़ेगी। यहां ध्यान देने की बात है कि आर.के. सिंह के पक्ष में भाजपा के एक और असंतुष्ट सांसद शत्रुघ्न सिन्हा आए और उन्होंने कहा कि आर.के. सिंह जैसी साफ छवि वाले नेताओं की पार्टी नेतृत्व को सुननी चाहिए। सिंह के बयान के पीछे इस बात की चर्चा है कि चेनारी विधानसभा सीट को लेकर नाराज थे। यह सीट भाजपा के खाते में थी और अचानक लोजपा के खाते में चली गई। लोजपा ने इस सीट पर बाहुबली सुनील पांडेय के भाई को उम्मीदवार बनाया है।

इस तरह की लड़ाई एक-एक सीट को लेकर चल रही है। गठबंधन होने की वजह से तमाम पार्टियों में असंतुष्टों की भरमार है। ये असंतुष्ट अपनी ही पार्टी के खिलाफ सक्रिय हैं। भाजपा का संकट यहीं खत्म नहीं हो रहा है पार्टी के एक विधायक विक्रम कुंवर ने भी बयान दे डाला कि पैसे लेकर टिकट बांटे गए हैं। सीवान के रघुनाथपुर सीट से विधायक विक्रम कुंवर का दावा है कि उनका टिकट काटकर भाजपा ने शहाबुद्दीन के शूटर मनोज सिंह को दो करोड़ रुपये में बेच दिया। विक्रम कुंवर ने तो यहां तक कहा कि मनोज सिंह माफिया है और वह उनकी हत्या करवा सकता है। 

उधर, बागियों के लिए रास्ता तैयार किया समाजवादी पार्टी, राष्ट्र्रवादी कांग्रेस पार्टी और मधेपुरा के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी ने। बहुजन समाज पार्टी, शिवसेना से भी कई बागी उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। कुछ को सफलता मिली तो कुछ निर्दलीय ही मैदान में उतरकर विरोध कर रहे हैं। भाजपा और जदयू ने अपने कई मौजूदा विधायकों का टिकट काटा तो कई को दूसरे दलों का सहारा मिल गया। परिवारवाद का जबर्दस्त बोलबाला है। इसके लिए बदनाम सिर्फ लालू यादव होते रहे हैं लेकिन इन चुनावों में तो सभी दलों पर इसकी मार है। आपसी फूट का भाजपा में ही नहीं बल्कि लोजपा में भी बड़ा संकट है। लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के दामाद अनिल कुमार साधु ने टिकट नहीं मिलने से खुलेआम बगावत कर दी है। अनिल कुमार को पार्टी ने छह सालों के लिए निष्कासित कर दिया है। अनिल कुमार का आरोप है कि रामविलास पासवान पुत्र मोह में पडक़र धृतराष्ट की तरह अंधे हो गए हैं। अनिल कुमार अपने समर्थकों के साथ उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जहां-जहां लोजपा के उम्मीदवार हैं। भाजपा के अन्य सहयोगी दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के बीच भी अंतर्कलह जारी है। टिकट की घोषणा होने के बाद इन दलों के बागी चुनाव मैदान में हैं। जहां चुनाव नहीं भी लड़ रहे हैं वहां दूसरे तरीके से विरोध हो रहा है। समस्तीपुर विधानसभा सीट पर रेणु कुशवाहा को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है जहां पार्टी नेता चंदन कुमार विरोध कर रहे हैं। कल्याणपुर विधानसभा सीट पर लोजपा और जदयू के उम्मीदवारों को अपनी ही पार्टी के बागियों से जूझना पड़ रहा है। वारिसनगर सीट लोजपा के खाते में चले जाने से भाजपा नेताओं ने विरोध किया है। इसी तरह गोविंदपुर सीट पर भाजपा ने फूला देवी यादव को उम्मीदवार बनाया है जहां भाजपा के श्रवण कुमार, रालोसपा के मो. कामरान विरोध कर रहे हैं। नवादा, बखरी, मटिहानी, चकाई, जमालपुर, गोपालपुर आदि ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां भाजपा गठबंधन और महागठबंधन के बागियों ने उम्मीदवारों की मुश्किले बढ़ा दी है। दरअसल, पहले से ही इस बात की आशंका थी कि सभी दलों में बागियों को मुश्किलों का सामना करना होगा। क्योंकि साल 2010 के विधानसभा चुनाव में जहां राजद और जदयू के उम्मीदवारों की संख्या ज्यादा थी वहीं इस चुनाव में वह संख्या कम हो गई। इसी प्रकार कांग्रेस ने जहां सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे वहीं महागठबंधन में शामिल होने के बाद उसके उम्मीदवारों की संख्या 41 रह गई। ऐसे में बागियों के कारण सभी दलों में भगदड़ सी मची हुई है।

इसके साथ ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण भी करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। जनता दल (यू) के राज्यसभा सांसद केसी त्यागी और पवन वर्मा ने चुनाव आयोग इस ओर ध्यान देने की अपील की है। वे अभी तक बिहार में चुनाव आयोग की भूमिका से संतुष्ट नहीं है लेकिन फिर भी चाहते हैं कि सांप्रदायिक रूप से भड़काने वाले भाषणों पर आयोग पैनी निगाह रखे। उन्होंने खासतौर से सीमांचल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असाउद्दीन ओवैसी की एक ही दिन होने वाली सभाओं पर पैनी निगाह रखने की अपील की है, क्योंकि ये दोनों ही अपने भड़काऊ भाषणों के लिए जाने जाते हैं। यह ध्रुवीकरण सिर्फ बिहार में ही हो रहा हो, ऐसा नहीं है, बिहार के आसपास के राज्यों में भी सांप्रदायिक तनाव अचानक बढ़ने लगा है। बिहार से सटे राज्य झारखंड में एक ही दिन चार जगहों पर मंदिरों में गाय का मांस फेंके जाने की घटना हुई और इसके बाद दंगे जैसे हालात बन गए हैं। उधर, असम में भी इसी तरह की वारदात हुई है।   

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