Advertisement

बिहार चुनाव परिणाम: इन पार्टी प्रमुखों का ‘किला’ हुआ ध्वस्त, अपनी सीट तक नहीं बचा पाए; 53,000 वोट से हारे

मंगलवार का दिन बिहार की सियासत के लिए काफी अहम रहा। करीब 15 घंटे की मतगणना के बाद ये तय हो पाया कि "अबकी...
बिहार चुनाव परिणाम: इन पार्टी प्रमुखों का ‘किला’ हुआ ध्वस्त, अपनी सीट तक नहीं बचा पाए; 53,000 वोट से हारे

मंगलवार का दिन बिहार की सियासत के लिए काफी अहम रहा। करीब 15 घंटे की मतगणना के बाद ये तय हो पाया कि "अबकी बार किसका बिहार"। देर रात के बाद एनडीए पूर्ण बहुमत के साथ फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में सरकार बनाने में कामयाब रही। एनडीए के  खाते में 125 सीटें आई। वहीं, महागठबंधन बहुमत से 12 कदम दूर रहते हुए 110 सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही। हालांकि, इस चुनाव में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी है। पार्टी के खाते में 75 सीटे आई है। इन सब के बीच जनता की नजर कुछ ऐसे चेहरे पर टिके रहें जो खुद को सीएम पद के दावेदार घोषित किए हुए थे। लेकिन, सीएम तो दूर, जहां से ये चुनाव लड़े उस सीट को भी नहीं बचा पाए। 

पप्पू यादव को 53,000 वोट से मात

जनअधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव, जो खुद को समाजसेवी कहलाने का दमखम भरते दिखाई देते हैं और सोशल मीडिया पर अपने सेवा करने के अंदाज को लेकर काफी सुर्खियों में रहते हैं। प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर मैदान में उतारा था। लेकिन, वो अपनी मधेपुरा की सीट भी नहीं बचा पाए। करीब 53,000 वोट से राजद के चंद्रशेखर ने उन्हें मात देने में कामयाब रहे। पप्पू यादव उर्फ राजेश रंजन मधेपुरा लोकसभा से सांसद रह चुके हैं। 

मुकेश साहनी नहीं बन पाए 'वीआईपी'

"सन ऑफ मल्लाह" के नाम से खुद को इंगित करने वाले विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) प्रमुख और सिमरी-बख्तियारपुर से पहली बार विधानसभा में किस्मत अाजमाने वाले मुकेश सहनी को जनता ने सीरे से नकार दिया। चुनाव के दौरान कई बार ये कहते नजर आए थे कि यदि उन्हें अच्छी सीटें मिलती है तो वो क्यों नहीं डिप्टी सीएम पद की दावेदारी करे। लेकिन, दावेदारी तो दूर विधायकी भी नहीं मिल पाई। उन्हें करीब तीन हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा है। राजद के युसूफ सलहुद्दीन को करीब 75,201 वोट मिले जबकि साहनी को 73,731 वोट से संतोष करना पड़ा। वीआईपी एनडीए का सहयोगी घटक दल है। महागठबंधन से नाता तोड़ एनडीए में शामिल हुए हैं। 

'लंदन क्वीन' का नहीं चल पाया जादू

एक और नाम जो काफी सुर्खियों में रहा, वो है पुष्पम प्रिया चौधरी का। पुष्पम प्रिया लंदन से पढ़ाई की हुई हैं और बिहार को नया सपना दिखाते हुए प्लुरल्स पार्टी की स्थापना कर सीएम पद की रेस में थीं। अपने अंदाज और ड्रेसिंग सेंस पर सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं। दो सीटों पर चुनाव लड़ीं लेकिन, जीत तो दूर कुछ हजार वोट हीं खाते में आ पाए। पटना जिले के बांकीपुर और मधुबनी के बिस्फी से चुनाव लड़ा, लेकिन जनता ने इन्हें पसंद नहीं किया। पुष्पम पार्टी की अध्यक्ष हैं। बाराबंकी से एक बार फिर मौजूदा विधायक नितिन नवीन ने जीत दर्ज की और कांग्रेस उम्मीदवार लव सिन्हा भी "खामोश" हो गए। पुष्पम प्रिया को बांकीपुर से करीब पांच हजार वोट मिले जबकि बिस्फी से 1500 वोट हीं खाते में आए। यहां से बीजेपी के हरिभूषण ठाकुर ने जीत दर्ज की है।

चिराग नहीं बचा पाए अपनी पुश्तैनी सीट

लोक जनशक्ति पार्टी के अगुवाई चिराग पासवान, जो चुनाव से ठीक पहले राज्य में एनडीए से अलग होकर 143 सीटों पर चुनाव लड़ा था और नीतीश के खिलाप जमकर बयानबाजी की थी। लेकिन, पार्टी के खाते में महज एक सीट आई। लेकिन, दिवंगत नेता रामविलास पासवान और एलजेपी का गढ़ माने जाने वाली सीट चिराग नहीं बचा पाए। हालांकि, उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था लेकिन, उम्मीदवार रामचंद्र सदा को मैदान में उतारा था और सदा को महज 26,289 वोट से संतोष करना पड़ा। ये सीट राजद के खाते में रामवृक्ष सदा ने 46,806 वोटों के साथ डाल दी है। यानी चिराग अपने पुश्तैनी सीट बचाने में भी नाकाम रहे। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad