बिहार में अभी प्रचार का हल्ला बोल चल रहा है। इस पर भारतीय जनता पार्टी और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सवार है। हर तरफ नरेंद्र मोदी के पोस्टर-प्रचार की वजह से अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं चल रही है। चुनावी समर में अभी सबसे ज्यादा जो सुनने को मिल रहा है (खासतौर से दुकानों-बाजारों से ) वह है, "मोदी का लहर चल रहा है, इस बार मोदी को वोट दे सकते, अभी मोदी आगे चल रहे हैं, बहुत पैसा बहा रहे हैं, मोदी नहीं तो और कौन। मोदी ने पूरा जोर लगा दिया है।" इस तरह के टिप्पणियां चुनाव के बारे में पूछते ही लोग छूटते ही देते हैं। क्या यही सच है, थोड़ा गहरे उतरने पर भेद खुलता है। ये कहने वाले अधिकांश दुकानदार, कारोबारी या नौकरीपेशा है और समाज के एक खास तबके के हैं।
आरा से पहले पड़ता है सक्कडी। यहां का पेड़ा बहुत मशहूर है। एक दो दुकाने हैं, जहां लिट्टी चोखा, चाय और लाल पेड़ा मिलता है। ये सारे राजनीतिक अड्डे बन गए हैं। अलग-अलग दलों के लोगों का यहां जमावड़ा बना रहता है। इसी में से एक दुकान है रंजीत सिंह की, जो राजपूत जाति के है। यहां बतियाने पर पहले लोगों ने महागठबंधन को आगे बताया। दुकान प्रभारी सहित बाकी लोगों का मानना था कि इस बार नीतीश को आगे रहना है क्योंकि वह काम भी बहुत किए है। लड़कियों-बच्चों को साइकिल दिए हैं। शिक्षा का स्तर सुधरा हैं। सड़क ठीक हुई है, लोग देख तो रहा ही है। दुकान पर आए पीरो के रहने वाले असलम और उन्होंने कहा, इन लोगों (भाजपा) का भौकाल बहुत ज्यादा है। हर समय, हर जगह भौंपू की तरह खुद ही बोलते फिरते हैं कि हम जीत रहे हैं, हम जीत रहे हैं। अरे बिहार की जनता को बूरबक ही समझे बैठें हैं। अरे बिहार का चुनाव, बिहार के मुद्दों पर न लड़ा जाएगा, नेता तो यहीं का होना चाहिए न। बिहारी इतना कमजोर है क्या कि उसके सिर पर आप किसी को भी मुख्यमंत्री बनाकर थोप सकते है। चुनाव में टक्कर तो जबर्दस्त है।
एक बात साफ है कि भाजपा के लिए सबसे तसल्ली वाला प्रचार का मसाला है, लालू का तथाकथित जंगल राज। और इसके प्रवक्ता हर जगह खूब मुखर नजर आ रहे हैं। डुमरांव में मोबाइल की दुकान चलाने वाले पिंटू और सुमन पांडे ने पूछते ही कहा, मोदी, इतना पैसा खर्च कर रहा है। कितना रंगीन स्क्रीन पर सब दिखा रहा है, फूल इंटरटेनमेंट कर रहे हैं। हमें कुछ तो मिल हा है न। बोट तो अलग बात है न, उसमें अभी टाइम है। बक्सर में सब्जी बेचने वाली कुसमी को लगता है कि नीतीश की वापसी होगी क्योंकि उनकी सरकार ने औरतों के लिए बहुत किया। सब लोग मर्दों की ही राय से दिमाग सेट करते हैं कोई हमारे दिल की बात नहीं जानना चाहता। बोट तो हमारा भी है न। फिर, हम लोग भी तो कुछ डिसाइड करेंगे।
चुनावों में अभी दिन है, लिहाजा कई स्तर पर प्रचार-प्रसार अपनी जगह बना रहा है। इसी बीच सीटों के बंटवारे के साथ ही तमाम दलों-गठबंधनों में विरोध के स्वर बढ़ रहे हैं। इससे भी चुनावी गणित पर फर्क पड़ेगा।