इन रुझानों से साफ हो गया है कि बिहार की जनता ने इन चुनावों को सांप्रदायिक रंग देने की भाजपा की कोशिशों को बुरी तरह नकार दिया। बिहार के विशेष पैकेज और विकास के दावों से शुरू हुआ भाजपा का चुनाव अभियान गोमांस विवाद के प्रचार, पाकिस्तान संबंधी अमित शाह के जुमलों और मोदी के चेहरे पर केंद्रित हो गया था। लेकिन जिस तरह के अप्रत्याशित परिणाम आए हैं उससे बिहार की जनता ने भाजपा को बड़ा सबक सिखाया है। बिहार में भाजपा और सहयोगी दलों की दुर्दशा ने अमित शाह के चुनावी मैनेजमेंट की हवा भी निकाल दी है।
राम विलास पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाह जैसे सहयोगियों के जरिए सामाजिक समीकरणों को साधने का भाजपा का प्रयास बुरी तरक विफल रहा। महागठबंधन के मुकाबले एनडीए के पिछड़ने की एक वजह भाजपा के सहयोगी दलों का खराब प्रदर्शन भी रहा है। जबकि दूसरी तरह नीतीश कुमार का चेहरे और लालू के वोट बैंक का जादू चल निकला।
सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली आरजेडी के अध्यक्ष लालू यादव ने कहा है अगले पांच साल तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहेंगे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने महागठबंधन की इस जीत को ऐतिहासिक करार दिया है। भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने इसे नीतीश कुमार की बड़ी जीत करार देते हुए कहा है कि वह महानायक के तौर पर उभरे हैं।