भाजपा ने भूमिपुत्र का अस्तित्व और अवैध बांग्लादेशी नागरिकों का बढ़ता प्रभाव मुख्य मुद्दा बनाया था। और मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए उसने असम गण परिषद, बोड़ोलैंड पीपुल्स पार्टी तथा दो अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया था। प्रदेश भाजपा के चुनाव व्यवस्था समिति के संयोजक डा हिमंत विश्व शर्मा कहना है कि असम की पहचान, असमिया संस्कृति की रक्षा और विकास के मसौदे के मतदाताओं ने स्वीकार कर लिय, इसलिए भाजपा गठबंधन को सत्ता की चाभी सौंपने का प्रयास किया।
असमिया पहचान का मुद्दा पहली1985 में उठा था। उसके बाद भाजपा ने 2016 के विधानसभा चुनाव में इसे चुना और अन्य क्षेत्रीय दलों को जोड़ा। चुनाव नतीजे से यह साफ हो गया है कि कांग्रेस को अपने परंपरागत चाय मजदूर और अल्पसंख्यकों का वोट भी नहीं मिला। यानी लोकसभा चुनाव के परिणाम का प्रभाव इस विधानसभा चुनाव में दिखा। यह अलग बात है कि अब तक रुझानों के अनुसार भाजपा के सहयोग दल अगप और बीपीएफ का प्रदर्शन उतना बेहतर नहीं हुआ। इसलिए भाजपा को सरकार चलाने में मित्र दलों की तरफ दबाव झेलने की स्थिति नहीं बनी।
चुनाव परिणामों यह साफ हो गया है कि निचले असम में अल्पसंख्यकों का वोट कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल नेतृत्व वाली आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच विभाजित हो गया। चुनाव परिणामों से साफ है कि कांग्रेस चुनावी रणनीति बनाने में विफल रही। बदरुद्दीन अजमल बार-बार कांग्रेस से गठबंधन के लिए आग्रह करते रहे, लेकिन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई अजमल से दूरी बनाए रखने की जि पर अड़े रहे। यदि एआईयूडीएफ के साथ कांग्रेस का गठबंधन होता तो वह सत्ता के करीब पहुंच सकती थी। इसलिए दूसरे चरण के चुनाव में भी भाजपा को आशातीत सफलता मिली है।