झारखंड में दुमका और बेरमो विधानसभा सीटों पर उप चुनाव के लिए मंगलवार को मतदान सम्पन्न हो गया। कोरोना के भय को धत्ता बताते हुए वोटर उत्साह के साथ बूथों पर उमड़े। मतदाताओं ने दुमका में 65.27 बेरमो में 60.20 फीसद वोटिंग कर उम्मीदवारों का भविष्य वोटिंग मशीन में कैद कर दिया। चुनाव नतीजा दस नवंबर को आयेगा। दुमका में रघुवर सरकार में समाज कल्याण मंत्री रहीं भाजपा की लुईस मरांडी और हेमंत सोरेन के छोटे भाई झामुमो उम्मीदवर बसंत सोरेन के बीच सीधा मुकाबला है, हालांकि उम्मीदवार तो 12 हैं। वहीं बेरमो में पूर्व मंत्री वरिष्ठ कांग्रेस नेता व इंटक के केंद्रीय महासचिव रहे राजेंद्र सिंह के पुत्र जयमंगल सिंह उर्फ अनुप सिंह और यहां से भाजपा के पूर्व विधायक योगेश्वर महतो बाटुल के बीच तीखा संघर्ष है। यहां मैदान में 16 उम्मीदवार हैं। दुमका सीट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के त्यागपत्र से रिक्त हुआ है तो बेरमो सीट यहां से छह टर्म विधायक रहे राजेंद्र सिंह के निधन से रिक्त हुआ है। 2014 के चुनाव में लुईस मरांडी और बाटुल दोनों जीते थे मगर 2019 के चुनाव में दोनों हार गये।
भाजपा विधायक दल नेता और प्रदेश अध्यक्ष का टेस्ट
दोनों सीट अभी सत्ताधारी पार्टी के कब्जे में है। दुमका जेएमएम तो बेरमो कांग्रेस के पास। हार-जीत कुछ भी हो असल टेस्ट से भाजपा को गुजरना पड़ रहा है। झारखंड के गठन के बाद से अधिकांश समय भाजपा का ही शासन रहा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के लिए खुद को साबित करने का मौका है। पार्टी का असल नेतृत्व इन्हीं के कंधे पर रहता है। और दोनों को नई जिम्मेदारी के बाद चुनाव का पहला मौका है। झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भाजपा से 14 साल अलग रहने के बाद 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय किया। आजसू भी पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से अलग लड़ी थी, इस बार साथ है। ऐसे में परीक्षा भाजप गठबंधन का भी है। यह परिवर्तन भाजपा के पक्ष में कितना वोट जोड़ पाता है यह मतगणना के बाद ही पता चलेगा।
दो घरानों की प्रतिष्ठा का सवाल
दोनों सीट सत्ताधारी दल के पास है। दुमका सीट बचाना सोरेन परिवार के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। दुमका सहित संताल झामुमो का गढ़ रहा है। हेमंत सोरेन 2019 के विधानसभा चुनाव में दुमका और बरहेट दोनों से जीते थे। दुमका में लुईस मरांडी को 13 हजार से अधिक वोट से हराया था। वे मुख्यमंत्री हैं और उनकी खुद की छोड़ी हुई सीट है। और छोटे भाई यानी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के पुत्र बसंत चुनाव लड़ रहे हैं। जहां तक बेरमो का सवाल है तो यह कांग्रेस के राजेंद्र सिंह की परंपरागत सीट रही। छह टर्म यहां से विधायक रहे। इनके निधन के बाद इनके बड़े पुत्र जयमंगल सिंह मैदान में है। युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। पिताजी के श्रमिक संगठन की विरासत भी संभाल रहे हैं। पिछले चुनाव में राजेंद्र सिंह ने योगेश्वर सिंह बाटुल को 25 हजार से अधिक वोटों से हराया था। इस हिसाब से टेस्ट मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन या कहें दोनों परिवारों का है। देखना होगा कि वोट का अंतर क्या रहता है।
कई रंग दिखाये चुनाव ने
दोनों सीटों पर हार-जीत से हेमंत सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। इसके बावजूद खुद को साबित करने के चक्कर में चुनावी रंग बड़ा तीखा रहा। अवैध धनार्जन के आरोप, चोट्टा, दलाल जैसे शब्दों का इस्तेमाल होता रहा तो हेमंत सोरेन का वीडियो वायरल हुआ कि जय श्रीराम, जय श्रीराम का नारा सुनते-सुनते उनके कान पक गये। तीन माह के भीतर अंतर्विरोध से हेमंत सरकार के गिर जाने संबंधी भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश के बयान ने बवाल मचाया तो झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य भी बोल पड़े कि वे डेढ़ विधायकों का भी नाम बता दें तो मैं बता दूंगा कि भाजपा के 25 में 22 विधायक झामुमो के संपर्क में है। भाजपा अध्यक्ष पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा हुआ तो उन्होंने भी गिरफ्तार करने की खुली चुनौती दे दी। दूसरी तरफ भाजपा की ओर से भी महागठबंधन के लोगों के खिलाफ दुमका में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। आरोप का तीखापन बढ़ा तो पूर्व की भाजपा सरकार को घेरने के लिए तीन मामलों की एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच का आदेश दे दिया गया। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन छात्रवृत्ति घोटाला ने हेमंत सोरेन को भाजपा सरकार और पूर्व कल्याण मंत्री दुमका से उम्मीदवार लुईस मरांडी को घेरने का एक और मौका दे दिया। बीच में दुष्कर्म तथा दुष्कर्म के बाद हत्या के मामलों ने भी चुनावी माहौल को गरमाये रखा। अब 10 नवंबर को ही पता चलेगा कि सारे आरोप-प्रत्यारोप का वोटरों और वोट पर क्या असर पड़ा।