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कभी ‘दो बैलों की जोड़ी’ से चुनाव लड़ती थी कांग्रेस, फिर क्यों साधु के कहने पर आया 'हाथ का पंजा'

इन दिनों देशभर में चुनावी माहौल है और सभी राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर आरोप लगाने से पीछे नहीं हट...
कभी ‘दो बैलों की जोड़ी’ से चुनाव लड़ती थी कांग्रेस, फिर क्यों साधु के कहने पर आया 'हाथ का पंजा'

इन दिनों देशभर में चुनावी माहौल है और सभी राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर आरोप लगाने से पीछे नहीं हट रहीं हैं। इस माहौल के बीच आज हम बात करने जा रहे हैं कांग्रेस के चुनाव चिन्ह की, जिसका जिक्र आते ही 'हाथ का पंजा' जहन में अपने आप उभरने लगता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि 'पंजा' कांग्रेस का हमेशा से चुनाव चिन्ह नहीं था। कांग्रेस ने कई सालों के इतिहास में चुनाव चिन्ह को लेकर कई तरह के प्रयोग किए।

एनीबेसेंट की थियोसोफिकल सोसाइटी के सक्रिय सदस्यों एलन आक्टोवियन ह्यूम और दूसरे लोगों द्वारा 1885 में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1931 में तिरंगे को अपने पहले झण्डे के रुप में मान्यता प्रदान की थी। देश आजाद हुआ तो तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज बन गया। इसके बाद काफी लम्बे समय तक दो बैलों की जोड़ी कांग्रेस का चुनाव चिन्ह रहा।

दो बैलों की जोड़ी

दरअसल, आजादी के बाद पहले आम चुनाव में कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट , भारतीय जनसंघ, सोशलिस्ट , फारवर्ड ब्लॉक, किसान मजदूर प्रजा पार्टी आदि प्रमुख दल थे। इस दौर में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी तो जनसंघ का चिन्ह दीया और बाती होता था।  करीब दो दशकों तक इन्हीं चुनाव चिन्हों के साथ प्रत्याशी मैदान में उतरे।

ये चिन्ह आम लोगों व किसानों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने में सफल रहा

गाय के साथ दूध पीता बछड़ा

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी थी जो आम लोगों व किसानों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने में सफल रहा। इसके बाद जब कांग्रेस पार्टी का विभाजन 1969 में हुआ तो पार्टी के विभाजन के साथ-साथ चुनाव चिन्ह तिरंगे में चरखा और इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली नई कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह गाय के साथ दूध पीता बछड़ा रहा। प्रचार के दौरान चुनाव चिन्ह से संबंधित 'इंदिरा तेरो चुनाव चिन्ह गोरु दगड़ि बाछ' गीत काफी लोकप्रिय भी हुआ। लेकिन इंदिरा गांधी को ये चुनाव चिन्ह भाया नहीं और उनको रायबरेली के चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।

साल 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद कांगेस की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई। इसी दौर में चुनाव आयोग ने गाय बछड़े के चिन्ह को भी जब्त कर लिया। करारी हार के बाद सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस के हालात देखकर पार्टी प्रमुख इन्दिरा गांधी काफी परेशान हो गईं।

'हाथ का पंजा' पार्टी का चुनाव चिन्ह

कहा जाता है कि परेशानी की हालत में इंदिरा गांधी तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती का आशीर्वाद लेने पहुंची। इंदिरा गांधी की बात सुनने के बाद पहले तो शंकराचार्य मौन हो गए लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया तथा 'हाथ का पंजा' पार्टी का चुनाव चिन्ह बनाने को कहा। उस समय आंध्र प्रदेश समेत चार राज्यों का चुनाव होने वाले थे। इंदिरा ने उसी वक्त कांग्रेस आई की स्थापना की और आयोग को बताया कि अब पार्टी का चुनाव निशान पंजा होगा।

इस नए चुनाव चिन्ह के साथ उन चुनावों में कांग्रेस को बड़ी जीत हासिल हुई, ज्योतिष पर यकीन रखने वाले लोग मानते हैं कि ये जीत नए चुनाव चिन्ह 'पंजे' का कमाल थी। तब से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार इसी चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरते हैं।

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