महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे गुरुवार को सामने आएंगे। वैसे तो सत्ताधारी भाजपा-शिवसेना गठबंधन बिखरे विपक्ष से काफी आगे दिखाई देता है लेकिन नतीजों में मिलने वाली सीटों की संख्या से ही इन दोनों दलों के बीच ‘बड़े भाई, छोटे भाई’ के रिश्ते तय होंगे। पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की मजबूत स्थिति को देखकर शिवसेना ने कम सीटें लेकर भी गठबंधन में बने रहने में भलाई समझी लेकिन कार्यकर्ताओं के स्तर पर ऐसा मेलमिलाप नहीं दिख रहा है। यही वजह से है कि करीब 40 सीटों पर बागी उम्मीदवारों की तपिश भी भगवा गठबंधन को झेलनी पड़ सकती है।
सर्वेक्षणों में शिवसेना से बहुत आगे भाजपा
इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल के अनुसार महाराष्ट्र में भाजपा को 109-124 सीटें मिलने की संभावना है। उसके सहयोगी दल शिवसेना को भी 57-70 सीटें मिलने की उम्मीद जताई गई है। इस तरह दोनों दलों को 288 सदस्यों वाली विधानसभा में 167 सीटें मिल सकती है जो बहुमत से ज्यादा होंगी। दूसरे सर्वेक्षणों ने भी भगवा गठबंधन को 230 तक सीटें मिलने की संभावना जताई है। सभी सर्वेक्षणों में शिवसेना को भाजपा से कम ही सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। गठबंधन में भी भाजपा को ज्यादा 164 सीटें मिली हैं जबकि शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
इस वजह से भाजपा के पीछे चलने को मजबूर शिवसेना
2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा तो भाजपा को फायदा हुआ और शिवसेना को नुकसान। शिवसेना को सिर्फ 63 सीटों पर संतोष करना पड़ा था जबकि भाजपा करीब दोगुनी यानी 122 सीटें जीतने में सफल हो गई। चुनाव के बाद शिवसेना को भाजपा के साथ आना पड़ा और दोनों के बीच गठबंधन हो गया। इस साल लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के नेतृत्व वाली पिछली मोदी सरकार ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक किया। लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार जोरदार बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रखने में सफल रही। इसके बाद जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर एक और बड़ा कदम उठा लिया। केंद्र की सत्ता में होने के कारण भाजपा महाराष्ट्र की राजनीति में हावी है और इसी वजह से शिवसेना को कम सीटें स्वीकार करनी पड़ीं।
बागियों ने खेल बिगाड़ दिया तो
लेकिन कार्यकर्ताओं के स्तर पर ऐसा मिलमिलाप नहीं दिखाई दे रहा है। यही वजह है कि गठबंधन के प्रत्याशी से नाराज होकर करीब 40 बागी उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। कार्यकर्ताओं के स्तर की नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुणे में शिवसैनिकों ने पार्टी छोड़ दी क्योंकि वहां शिवसेना का कोई उम्मीद खड़ा नहीं हुआ था। अगर चुनाव परिणाम संकेतों के अनुरूप ही रहे यानी भाजपा को शिवसेना से ज्यादा सीटें मिली तब तो उनके रिश्तों में कोई अंतर नहीं आएगा लेकिन अगर शिवसेना की सीटें भाजपा के बराबर आ गई या अंतर कम हो गया तो उनके रिश्तों में उलटफेर हो सकता है। शिवसेना सत्ता में ज्यादा भागीदारी और अधिकार मांग सकती है।
सबकी नजर चुनाव नतीजों पर
जहां तक विपक्ष की बात है तो इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल के अनुसार कांग्रेस को 32-40 सीटें मिल सकती हैं। जबकि उसके सहयोगी दल एनसीपी को 40-50 सीटें मिलने की उम्मीद है। किसी भी सर्वेक्षण ने कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को बहुत अच्छी स्थिति में नहीं बताया है। लोकसभा चुनाव के नतीजों में करारी हार के बाद से कांग्रेस और एनसीपी उबर नहीं पाई है। अनुच्छेद 370 के शोर में स्थानीय मुद्दे भी दब गए। गुरुवार को आने वाले महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे क्या कहते हैं, आज इसी पर सबकी नजरें टिकी हैं।