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आम चुनाव ’24/आवरण कथा/राजनैतिक पीआर: चुनाव बना कंसल्टेंसी प्रोजेक्ट

द इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में छपे लेख ‘द इमर्जेंस ऑफ पॉलिटिकल कंसल्टिंग’ के मुताबिक 2014 में यह...
आम चुनाव ’24/आवरण कथा/राजनैतिक पीआर: चुनाव बना कंसल्टेंसी प्रोजेक्ट

द इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में छपे लेख ‘द इमर्जेंस ऑफ पॉलिटिकल कंसल्टिंग’ के मुताबिक 2014 में यह इंडस्ट्री करीब 350 करोड़ रुपये की थी

लोकसभा चुनाव 2024 भाजपा, कांग्रेस समेत क्षेत्रीय पार्टियों के साथ काम कर रही कंसल्टेंसी फर्मों के व्‍यापक इस्‍तेमाल के लिए भी जाना जाएगा। ‘पोलटेक कंसल्टेंसी’ चलाने वाले आइआइटी ग्रेजुएट और तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल तथा मध्य प्रदेश में विभिन्न पार्टियों के साथ काम कर चुके पराग जैन आउटलुक से कहते हैं, ‘‘आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी को जो सफलता मिली, उसमें पॉलिटिकल कंसल्टेंसी का बहुत बड़ा हाथ रहा है। ममता बनर्जी हों या अरविंद केजरीवाल या दक्षिण भारत के नेता, सभी पॉलिटिकल कंसल्टेंसी की मदद ले रहे हैं।’’ ‘पॉलिटिकल मित्र’ नाम से कंसल्टेंसी चलाने वाले मुकुंद ठाकुर कहते हैं, ‘‘2014 के बाद यह फर्क आया है कि अब नेता चुनाव को एक प्रोजेक्ट के तौर पर देखते हैं।’’

पराग जैन कहते हैं, ‘‘अब कैंपेन डिजाइन, सर्वे, डेटा माइनिंग, ट्रेंड एनालिसिस और मास आउटरीच प्रोग्राम भी बनने लगे। नेताओं को लगता है इससे उन्हें फायदा हो रहा है। इसी के साथ यह इंडस्ट्री भी आगे बढ़ी।’’

दस साल पहले भारत के शीर्ष स्कूलों और कंपनियों के सैकड़ों पेशेवरों ने मिलकर सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (सीएजी) का गठन किया था। सीएजी ने ही नरेंद्र मोदी के 2014 के लोकसभा चुनाव अभियान को ‘एमबीए स्टाइल’ में चलाया था। इस टीम में 200 युवा काम कर रहे थे और जमीनी स्तर पर करीब एक लाख वालंटियर शामिल थे। प्रशांत किशोर के जन सुराज कार्यक्रम से जुड़े एक कंसल्‍टेंट ने नाम न छापने की शर्त पर आउटलुक को बताया, ‘‘2014 में अभियान के जोर पकड़ने से कई महीने पहले सीएजी ने चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण किया था। 450 सीटों के लिए 200 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की गई थी। जब सर्वेक्षणों ने संकेत दिया कि झारखंड में मोदी की लोकप्रियता कम है, तो वहां उनकी कई रैलियां आयोजित की गईं। यूपी में ‘मोदी आने वाला है’ का नारा भी यहीं से आया, जिसका भाजपा को फायदा हुआ।’’

सीएजी से जुड़े सभी लोग अलग-अलग पॉलिटिकल कंसल्टेंसी चला रहे हैं। 2014 के बाद प्रशांत किशोर ने ‘आइ-पैक’, सुनील कनुगोलू ने ‘माइंडशेयर एनालिटिक्स’, ‘इनक्लूसिव माइंड्स’, हिमांशु सिंह ने ‘एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड्स’ और रॉबिन शर्मा ने ‘शो टाइम कंसल्टिंग’ शुरू की। द इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में छपे लेख ‘द इमर्जेंस ऑफ पॉलिटिकल कंसल्टिंग’ के मुताबिक 2014 में यह इंडस्ट्री करीब 350 करोड़ रुपये की थी। विशेषज्ञों के मुताबिक 2024 में यह करीब 3000 करोड़ रुपये की हो गई है।

सबसे पुरानी पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में से एक ‘लीड-टेक’ के डायरेक्टर विवेक सिंह बागड़ी कहते हैं, “सर्विस करीब एक साल की होती है। चार्जेज 5 लाख से लेकर 50 लाख होते हैं। इस चुनाव में हम 70 सीटों पर काम कर रहे हैं।”

पॉलिटिकल मित्र के संस्थापक मुकुंद ठाकुर कहते हैं, ‘‘पार्टियों के पास अब खुद की प्राइवेट पॉलिटिकल कंसल्टेंसी फर्म हैं। भाजपा इसमें सबसे आगे हैं। उसके साथ ‘नेशन विद नमो’ और ‘वराह एनलिटिक्स’  हैं। कांग्रेस के साथ ‘इन्क्लूसिव माइंड’ काम करती है।

तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भाजपा और बीआरएस पर हमला करते हुए कांग्रेस ने ‘शादी कार्ड’ वाला पोस्टर जारी किया। पोस्टर का मकसद संदेश देना था कि भाजपा और बीआरएस मिले हुए हैं, हालांकि इसके जवाब में भाजपा ने एक ‘निकाहनामा’ जारी किया जिसमें बीआरएस और कांग्रेस का गठबंधन दिखाया गया। इसमें मेजबान के तौर पर ओवैसी की तस्वीर लगी हुई थी। निकाहनामा छापने का सुझाव भाजपा को ‘पोलटेक’ कंसल्टेंसी ने दिया था। इसके फाउंडर पराग जैन के अनुसार ऐसा करके वे विपक्ष के हमले का जवाब देते हैं।

 

 

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