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भाजपा के तीन चेहरे, जिन्होंने त्रिपुरा के 'लाल गढ़' में सेंध लगा दी

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ऐतिहासिक जीत करती दिख रही है। बीजेपी ने 2013 चुनाव के मुकाबले शानदार...
भाजपा के तीन चेहरे, जिन्होंने त्रिपुरा के 'लाल गढ़' में सेंध लगा दी

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ऐतिहासिक जीत करती दिख रही है। बीजेपी ने 2013 चुनाव के मुकाबले शानदार प्रदर्शन किया है। पिछले चुनाव में बीजेपी एक भी सीट नहीं हासिल कर पाई थी वहीं इस बार पार्टी बहुमत के करीब जा पहुंची। पिछले 25 सालों से सत्तारूढ़ माकपा का गढ़ उसके हाथ से जाता दिख रहा है और इसके पीछे भाजपा के तीन चेहरों का हाथ है, जिन्होंने न सिर्फ त्रिपुरा में बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा की पैठ को मजबूत किया है। कौन हैं ये तीन चेहरे?

सुनील देवधर

नॉर्थ ईस्ट में बढ़े बीजेपी के प्रभाव के पीछे एक ऐसे शख्स का हाथ है जो खुद न तो कभी यहां से चुनाव लड़ा और न ही मीडिया में आया। इस शख्स का नाम है सुनील देवधर। जिन्होंने नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी के लिए नई उम्मीद जगाई है। वाम सरकार को चुनौती देने का सेहरा भी बीजेपी सुनील देवधर के सिर ही बांधती है।

देवधर हैं तो मराठी, लेकिन फर्राटेदार बंगाली भी बोलते हैं। वे लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे हैं और लो प्रोफाइल रखते हैं उन्हें बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट की जिम्मेदारी दी थी। यहां रहते हुए उन्होंने स्थानीय भाषाएं सीख लीं। बताया जाता है कि जब वो मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड में खासी और गारो जैसी जनजाति के लोगों से मिलते हैं तो उनसे उन्हीं की भाषा में बात करते हैं।

कहा जाता है कि देवधर के पास पहले वाराणसी समेत उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी थी। यहां चुनावों में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन के बाद उन्हें नॉर्थ ईस्ट की जिम्मेदारी मिली। आपको याद हो तो विधानसभा के चुनावों से ठीक पहले कई दलों के नेता और विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे।

यही नहीं, उन्होंने ही 'मोदी लाओ' की जगह 'सीपीएम हटाओ', 'माणिक हटाओ' जैसे नारे चुनाव में लाए।

राम माधव

2014 में जब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के प्रवक्ता राम माधव को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी गई तो किसी ने नहीं सोचा था कि वो सिर्फ 4 सालों में पार्टी के मुख्य रणनीतिकार हो जाएंगे। मुश्किल से मुश्किल राज्य जहां बीजेपी का जनाधार नहीं रहा है वहां राम माधव की अगुआई में पार्टी ने कमल का फूल खिलाया है।

2015 में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी में गठबंधन के पीछे राम माधव की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। पार्टी में आने के बाद उन्हें पूर्वोत्तर की जिम्मेदारी दी गई। 53 वर्षीय राम माधव के नेतृत्व में बीजेपी ने असम और मणिपुर में कांग्रेस और त्रिपुरा में लेफ्ट का किला ढहा दिया। साथ ही अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी सरकार में सहयोगी पार्टी है।

आंध्र प्रदेश में जन्मे राम माधव बीजेपी में आने से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में थे। साल 2003 में उन्हें बुज़ुर्ग एमजी वैद्य की जगह संघ प्रवक्ता बनाया गया। सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय राम माधव कठिन मुद्दों पर भी संघ और पार्टी का बचाव बड़े विश्वसनीय ढंग से करते हैं।

राम माधव ज्यादातर काम खामोशी से करते हैं। पार्टी महासचिव और पूर्वोत्तर के प्रभारी पद जिम्मेदारी में उन्होंने जबरदस्त तरीके से काम किया है। पार्टी ने उन्हें असम की जिम्मेदारी दी और असम में कांग्रेस के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का किला ध्वस्त करने में वह कामयाब रहे। उन्होंने चुनाव से पहले ही असम के सबसे मजबूत कांग्रेस नेता हेमंत बिस्वा सरमा को अपने पाले में खींचकर राज्य में पार्टी की सरकार बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मणिपुर में एक भी सीट नहीं मिली थी। तब मणिपुर में बीजेपी का वोट प्रतिशत भी 2.1 फ़ीसदी था जो इस चुनाव में 36.3 फ़ीसदी पहुंच गया। 

त्रिपुरा के 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 50 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई थी। 60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा के चुनाव में बीजेपी 51 सीटों पर और सहयोगी पार्टी इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। बीजेपी 31 और आईपीएफटी 8 सीटों पर आगे चल रही है। पिछले चुनाव में 50 सीट हासिल करने वाली लेफ्ट पार्टी सिर्फ 19 सीटों पर आगे चल रही है।

हेमंत बिस्वा सरमा

हेमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस से नाराज होकर 2015 में बीजेपी में आए थे। वह असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कंग्रेसी नेता तरुण गोगोई के बेहद करीब माने जाते थे। प्रदेश सरकार की कैबिनेट में भी वो सबसे ताकतवर माने जाते थे लेकिन असम में विधानसभा चुनाव होने से काफी पहले सरमा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।

सरमा को उत्तरपूर्वी राज्यों में कांग्रेस पार्टी की ताकत और उसकी कमियों के बारे में पूरा अंदाजा था। 2016 में हुए असम विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी। इसके अलावा उन्हीं की मदद से ही बीजेपी असम के अलावा उत्तर पूर्व के दो और राज्य अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी सरकार बनाने में कामयाब हो पाई थी।

कांग्रेस छोड़ते समय उन्होंने आरोप लगाया था कि वह दिल्ली में असम कांग्रेस की मुश्किलों पर चर्चा करने के लिए राहुल गांधी से मिले तो वह उनसे बातचीत करने करने के बजाए अपने कुत्ते से खेलने में ही व्यस्त रहे।

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