उत्तराखंड के चुनावों में कई मिथकों का प्रभाव रहता है। इस बार अब तक सरकार रिपीट न होने के मिथक टूटता दिख रहा है। अलबत्ता सीएम पुष्कर सिंह धामी उस मिथक को नहीं तोड़ सके, जिसके अनुसार सिटिंग सीएम अपने चुनाव में विधायक नहीं बनता है।
2007 के चुनाव में कांग्रेसी सरकार के मुखिया एनडी तिवारी ने चुनाव ही नहीं लड़ा था। 2012 के चुनाव में तत्कालीन सरकार के मुखिया मेजर जनरल भुवन चंद खंड़ूड़ी चुनाव तो लड़े लेकिन उन्हें कोटद्वार सीट से हार का सामना करना पड़ा था। 2017 के चुनाव में उस समय की कांग्रेस सरकार के मुखिया रहे हरीश रावत दो सीट हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन दोनों ही सीटों से उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
इस मिथक के बाद से ही मौजूदा सीएम पुष्कर सिंह धामी की खटीमा सीट पर सबकी नजरें था। वजह यही थी कि क्या इस बार मिथक टूटेगा। लेकिन नतीजा सामने आया तो मुख्यमंत्री धामी को इस सीट से हार का सामना करना पड़ा। इस लिहाज से यह मिथक और भी पुख्ता होता दिख रहा है।
हां, इस बार के चुनाव में अब तक एक मिथक जरूर टूट चुका है। मिथक यह था कि उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद से किसी भी सियासी दल की सरकार रिपीट नहीं हुई। राज्य गठन के वक्त भाजपा की अंतरिम सरकार थी तो 2002 के पहले आम चुनाव में सत्ता कांग्रेस के हाथ आई। 2007 में भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया तो 2012 में कांग्रेस ने सरकार बनाई। 2017 के चुनाव में भाजपा को फिर से सत्ता मिली। अब 2022 के चुनाव में भाजपा एक बार फिर से सरकार बनाने जा रही है।