2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था। भाजपा ने 282 सीटें जीती थीं लेकिन चार साल में भाजपा की दस सीटें घट गई हैं और अब इन सीटों की संख्या 272 (स्पीकर को छोड़कर) रह गई है। इसके अलावा भाजपा सांसद कीर्ति आजाद पार्टी से सस्पेंड चल रहे हैं और शत्रघ्न सिन्हा लगातार बागी तेवर अपनाए हैं। हैरानी नहीं होगी अगर इन सीटों की संख्या में आगे और कमी आए।
ये संख्या 272 पर तब पहुंची, जब स्पीकर ने बीएस येदियुरप्पा और बी श्रीरामुलु का सांसद के तौर पर इस्तीफा स्वीकार किया।
हालांकि इससे भाजपा सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है लेकिन चार सालों में पार्टी की सीटें घटने के अहम मायने हैं। इससे एनडीए के सहयोगी दलों पर पार्टी की निर्भरता बढ़ गई है। लेकिन एनडीए में भी शिव सेना के सुर बदलते रहते हैं।
भाजपा की सीटें घटने एक कारण स्पष्ट दिखाई दे रहा है। पहला, भाजपा कई लोकसभा उपचुनाव लगातार हार रही है। हाल ही में यूपी के फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव इसके उदाहरण हैं।
28 मई को फिर से 4 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। महाराष्ट्र की भंडारा-गोंदिया, पालघर, यूपी की कैराना और नागालैंड में सीएम नेफ्यू रियो के इस्तीफे से खाली हुई एक सीट पर उपचुनाव हैं। जाहिर है सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए भाजपा इन सीटों पर जरूर पूरी ताकत झोंकना चाहेगी।
भाजपा ने गुजरात, मध्य प्रदेश और असम के उपचुनावों में कई सीटें फिर से हासिल कीं लेकिन यूपी की दो सीटें, मध्य प्रदेश की बीड सीट, पंजाब की गुरदासपुर सीट और राजस्थान की अलवर सीट हार गई।