प्रस्ताव में कहा गया है कि लगभग 130 वर्षों के इतिहास और पांच दशकों से अधिक समय के लिए देश पर शासन करने का रिकार्ड का दावा करने वाली कांग्रेस अब भी 2014 के आम चुनावों में अपनी शर्मनाक हार को पचा नहीं पा रही है। इसका कारण साफ है कि एक वर्ष की छोटी सी अवधि में एनडीए सरकार ने देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण पहलें की हैं। एनडीए सरकार द्वारा समाज के सभी वर्गों के सशक्तिकरण, सामाजिक कल्याण और इसके साथ ही देश को विकास के रास्ते पर ले जाने की मजबूत नींव रखने से संबंधित नीति और कार्यक्रम संबंधी पहल की देश के बाहर भी प्रशंसा हुई है।
बैठक में कहा गया कि कांग्रेस ने एक रचनात्मक विपक्ष की जिम्मेदारियों को त्याग कर, संसद और विशेषकर राज्यसभा में अपने संख्या बल का प्रयोग करते हुए नकारात्मक रणनीति का सहारा लेने का फैसला किया है। प्रस्ताव में कहा गया कि पिछले एक वर्ष के दौरान संसद के पिछले सत्रों ने उच्च उत्पादकता प्राप्त की है जिसे सभी हितधारकों से प्रशंसा प्राप्त हुई है। इन सब से दंग रह गयी कांग्रेस ने देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक प्रमुख सुधारों को रोकने और अन्य कल्याणकारी एवं विकास परक प्रयासों को बाधित करने की नीति तैयार की है। यह नीति कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक रणनीति बन गयी है जो कि मानसून सत्र में देखने को मिल रही है।
निलंबित सांसदों के बारे प्रस्ताव में कहा कि कांग्रेस पार्टी ने इस निष्कासन को प्रजातंत्र का काला दिन माना है। यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि कांग्रेस पार्टी ने 1975 के आपातकाल द्वारा देश में प्रजातंत्र का दमन किया और नागरिकों की स्वतंत्रता को छीना फिर भी वह इस तरह की बेबुनियाद बातें कर रही है। प्रस्ताव में कहा गया है कि कांग्रेस ने भी कई मौकों पर सत्ता में रहते हुए कई सारे सदस्यों का निष्कासन उचित माना था। उदाहरण के तौर पर 15 मार्च, 1989 को 63 विपक्षीय सदस्यों को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या से संबंधित जस्टिस ठक्कर की रिपोर्ट को प्रस्तुत करने की मांग करने पर निष्कासित कर दिया था।