तिवारी ने कहा कि विचित्र बात इसमें ये है कि राष्ट्रवाद पर बहस कौन कर रहा है, वो पार्टी जिसका भारत की आजादी के आंदोलन में बिल्कुल कोई भूमिका नहीं रही, जिसके नेता साम्राज्यवादियों से माफी मांग-मांग कर जेल से छूटते रहे, जिनकी आजादी के बाद भारत के पुर्ननिर्माण में कोई भूमिका नहीं रही। 1947 के बाद जिस पार्टी का या जिस संगठन से वो पार्टी आती है, उसके किसी कद्दावर नेता की भारत की एकता और अखंण्डता को इकट्ठा रखने के लिए शहादत नहीं हुई।
तिवारी ने कहा कि आज विडंबना ये है कि सूडो नेशनलिस्ट राष्ट्रवाद के ठेकेदार बनके बैठे हुए हैं। ये जो बहस है कि अगर आप "भारत माता की जय” कहो तो आप राष्ट्रवादी हो, लेकिन अगर आप "जयहिंद” कहो, "हिंदुस्तान जिंदाबाद” कहो, "मेरा भारत महान कहो”, "वंदे मातरम्” कहो तो आप राष्ट्रवाद की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। तो इस मापदंड पर फिर भारतीय जनता पार्टी उस महान नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी को कहाँ पर आंकती है, जिन्होंने जयहिंद का नारा दिया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जी का किस तरह से मूल्यांकन करती है जो "हिंदुस्तान जिंदाबाद”, "इंकलाब जिंदाबाद” कहते-कहते फांसी के फंदे पर चढ़ गए। तो इसलिए पिछले 22 महीनों में चाहे साम्प्रदायिक सदभाव हो जिसके परखच्चे उड़ा दिए इन्होंने, चाहे राजनीति स्थिरता हो उसको पूरी तरह से खत्म करने में, चाहे अरुणाचल हो, चाहे उत्तराखंड हो, सरहद से लगे हुए संवेदनशील सूबे, चीन की सरहद से लगे हुए वहाँ पर राजनीतिक अस्थिरता इन्होंने फैलाई।